आशीष सागर दीक्षित
बुंदेलखंड के बाँदा जिले की नरैनी तहसील के ग्राम पंचायत खलारी- मोहनपुर में गौरैया का ब्याह हुआ । वर पक्ष से यशवंत पटेल ( अध्यापक) और प्रधान सुमनलता पटेल, कन्या पक्ष से रामप्रसाद और अनीता ने चिड़िया- चिरुआ को ‘ ननकी संग प्यारेलाल ‘ नाम दिया। पिछले साल विश्व गौरया दिवस बीस मार्च को इसी गांव में गौरेया ब्याह का उत्सव हुआ था। इस साल भी यहाँ बीस मार्च को गौरया चौपाल लगाई जाएगी।
इस मौके पर गांव वालों को ‘ गौरेया घर’ भी बांटे गए। वर्षो से प्रकृति की सुन्दरता की सहभागी रही ची- ची जब घर, मुंडेर, छप्पर या बखरी, खेत – खलिहान और पेड़ों में बसर करती थी तब यह किसने सोचा था कि एक दिन इसी के लिए ‘ विश्व गौरेया दिवस’ मनाया जायेगा ?
विकास के अंधे कैनवास ने धरती को बदरंग कर दिया है। तितली, जुगनू, बुन्देली सोन चिरैया और अन्य अब दिवस के लिए ही जाने जायेंगे। इस अद्भुत ब्याह का मकसद यह था कि जैसे हमने बचपन में गुड्डा- गुडिया के ब्याह, माँ और नाना- नानी की कहानी के साथ रिश्तों को जिया, उसके ताने- बाने को समझा वैसे ही इस ननकी (गौरेया चिड़िया) के संवेदनाजनक पहलू को भी समझें। इसको बचाएं इसलिए नहीं कि यह अब विलुप्त होकर ‘रेड लिस्ट ‘ में जा चुकी है। बल्कि इसलिए भी की अगर यह कुदरत के परिंदे, पक्षी नहीं बचे तो हमारे विकास के उजाले में ही सबकी हत्या करने का दाग लग चुका होगा।
क्या धरती पर सिर्फ़ मानव मात्र रहने का हकदार है। खेतों में दिन -रात पड़ते केमिकल और खाद ने इस मासूम चिड़िया की सांसें कम करने का काम किया। आपके मोबाइल टावर, बिजली के तार और अन्य उपकरणों से निकले रेडियेशन आज इसके क़ातिल बन गए हैं। आपने अपना विकास किया लेकिन औरों का प्रवास जमीदोज कर दिया। कंकरीट सोपान पर खड़ी आपकी विकसित सभ्यता आज देशभक्ति और देशद्रोही का विलाप कर रही हैं लेकिन यह पक्षी तो आपसे कोई जाति, मजहब नहीं पूछते, इर्ष्या नही करते।
लोक रस्मों के बीच यह अनोखा विवाह एक बार फिर वैसे ही उत्साह से बाँदा प्रभागीय वन अधिकारी प्रमोद गुप्ता, वनरेंजर जेके जयसवाल, उप जिला अधिकारी महेंद्र सिंह, एसो नरैनी, वन दरोगा आफ़ताब खान, सीबी सिंह कार्ययोजना प्रभारी, अन्नदाता की आखत से शैलेन्द्र मोहन श्रीवास्तव नवीन, सामाजिक कार्यकर्ता दिनेशपाल सिंह राघवेन्द्र मिश्र सहित तमाम गाँव वालो की मौजूदगी में आयोजित किया गया।उपस्थित अधिकारियों ने गाँव के बच्चों, महिला-पुरुष को अपने संबोधन में गौरेया को सुरक्षित-सुन्दर घर देने की बात कही और संकल्प लिया कि अपने घर के एक कोने में भी इसको माकूल जगह देंगे। मित्रों, अगर ऐसा होता है तो शायद ये प्रकृति आपका कुछ धन्यवाद करे क्योकि खाली आदमी के रहने से दुनिया में रक्त, जंग, नफरत और उजाड़ ही बचेगा, सुन्दरता नहीं। ची-ची का फुदकना मानव के लिए हमेशा हितकारी ही रहेगा।
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] पर संवाद कर सकते हैं।
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