आंदोलन की पहाड़ सी मुश्किलें !

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पुरुषोत्तम असनोड़ा

अल्मोडा जिला का डीडा नैनीसार 6 महिने पहले तक एक मालूम सा गांव- तोक रातों-रात देश- दुनिया में मसहूर हो गया। अनजान से गांव की जमीन पर माफिया की नजर पडी और सरकार ने युद्ध स्तर पर उसे जिन्दल ग्रुप के हिमांशु इण्टर नेशनल स्कूल के नाम आवंटित कर दिया। सैया भये कोतवाल तो डर काहे का, की तर्ज पर बिना लीज पट्टे के 22 अक्टूबर 15 को मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जन विरोध के बावजूद हिमांशु इण्टरनेशनल स्कूल का उद्घाटन कर दिया । नैनीसार के ग्रामीणों व उत्तराखण्ड परिवर्तंन पार्टी ने भूमि आवंटन का विरोध करते हुए आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। स्कूल में मुख्यमंत्री के इन्वॉलमेंट ने प्रशासन को इतना पक्षपाती बना दिया कि उसने भूमि के कब्जे में स्कूल को पूरी छूट दे दी । यहां तक कि कानून-व्यवस्था की परवाह किये बिना कि वहां जिन्दल ने किस प्रवृति के लोगों को रखा है, पूरी छूट दे दी । ग्रामीणों और बार संघ अल्मोडा द्वारा नैनीसार में जिन्दल के लोगों का वेरीफिकेशन कराये जाने का ज्ञापन बेअसर रहा । 2 नवम्बर 15 को आन्दोलित ग्रामीणों और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी ने गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान भूमि आवंटन के विरोध में प्रदर्शन किया और नेता प्रतिपक्ष ने सदन में भी हो हल्ले के बीच नैनीसार भूमि आवंटन का उल्लेख कर सरकार को आरोपित किया । 3 अक्टूबर 15 को सरकार ने सचिव राधा रतूडी व शैलेश बगोली को नैनीसार भूमि आवंटन की जांच सौंपी । लेकिन नैनीसार के ग्रामीणों अथवा परिवर्तन पार्टी के आन्दोलन को सरकार व प्रशासन ने पूरी तरह अनदेखा कर दिया।

आन्दोलन की अनदेखी पर उपपा अध्यक्ष पीसी तिवारी ने सिविल जज की अदालत से स्टे ले लिया जिसे कोर्ट के मैसेन्जर के साथ पी सी तिवारी व उपपा महिला संगठन की सह संयोजक रेखा धस्माना 23 जनवरी 16 को नैनीसार गये तो जिन्दल के बाउन्सरों ने उन्हें घेर कर पकडा और बूरी तरह पिटाई कर दी। बंधक बनाने, जान लेवा हमले और लूट की तहरीर को तो अल्मोडा प्रशासन पचा गया लेकिन पी सी तिवारी, रेखा धस्माना और 11 अन्य आन्दोलनकारियों को आईपीसी की धारा 147, 323, 447, 504 व 506 में अल्मोडा जेल भेज दिया ।  शांति भंग में जमानत के बाद 11 आन्दोलनकारी तो रिहा हो गये लेकिन पीसी तिवारी व रेखा धस्माना पर एससी एसटी कानून की धारा 3-1-10 लगा कर जेल से रिहाई नहीं हो पायी और 12 दिन जेल में रहने के बाद सशर्त जमानत पर वे 4 फरवरी को रिहा हुए।

नैनीसार के मुद्दे ने उत्तराखण्ड के 15 साल के पन्ने पलट दिये हैं बल्कि 15 साल ही नही उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन और उत्तराखण्ड की परिकल्पना तक के पन्ने भी । उत्तराखण्ड की मांग को पं जवाहरलाल नेहरु की 1939 की उत्तराखण्ड यात्रा से जोडें अथवा सन् 1952 के भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के बम्बई अधिवेशन में सचिव पीसी जोशी के अलग राज्य प्रस्ताव या फिर 1963 पर्वतीय राज्य परिषद्, उत्तराखण्ड का कांसेप्ट यदि पूरी तरह सामने आया तो वह सन् 1974 की अस्कोट-आराकोट यात्रा थी । वन आन्दोलन, विश्वविद्यालय आन्दोलन, उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी उत्तराखण्ड क्रांन्ति दल, पृथक राज्य का आन्दोलन, नशा नही रोजगार दो आन्दोलन, सन् 1994-96 का वह ज्वार और उप्र राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000 जिसे संवैधानिक रुप से उत्तराखण्ड भारत संघ का 27 वां राज्य बना । 15 साल के 8 मुख्यमंत्री, 4 सरकारें और मंत्री, विधायक, लाल-नीली बत्ती और उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य ।

वन आन्दोलन से ही देखें तो 15 साल का शासक वर्ग उसमें कही नही था । वह ठेकेदारों का पक्षधर था। अस्कोट-आराकोट के कांसेप्ट बनाने केutt बजाय वे बांटने में महारत लिए थे, वाहिनी का सदस्य होने की बात एक बार मुख्य मंत्री हरीश रावत ने की थीं लेकिन पिछले 40 साल से वे किसी कार्यक्रम अथवा आन्दोलन में तो दिखे नहीं । उत्तराखण्ड क्रान्ति दल राजनैतिक पार्टी है और कोई कांग्रेसी अथवा भाजपाई उसके साथ किसी आन्दोलन में कैसे हो सकता है? नशा नही रोजगार में माफिया पर किसका बरदहस्त था लोग जानते हैं। अब रहा उत्तराखंड राज्य आन्दोलन 2 अक्टूबर 1994 को मंच हथियाने की होड में कौन लोग शामिल थे और राजेश पायलट से वार्ता में रातों-रात 58 संगठनों को बनाने में किसका योगदान था, लोग समझते हैं। उत्तराखण्ड के आन्दोलन की शक्तियों का एक इतिहास है। वे लडें हैं । वन आन्दोलन, विश्वविद्यालय आन्दोलन, नशा नही रोजगार दो आन्दोलन, उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन सबके जेल यात्री रहे हैं वे, उत्तराखण्ड नहीं तो कार रैली नहीं आन्दोलन में खिसियाये प्रशासन ने जिस तरह पी सी और उनके साथियों को पीटे जाने के बावजूद वह रैली रोक कर दिखाने का नायकत्व ही था।

नैनीसार केवल एक गांव या तोक नहीं रह गया है यह प्रतीक हो गया है सत्ता के स्वेच्छाचार का, प्रशासन के लुंज-पुंज होने और आन्दोलनों के दमन का। आप उत्तराखण्ड में भूमाफिया के द्वार नैनीसार से खोल चुके थे आपने कुछ जमीनें और चिन्हित की है जो दूसरे जिन्दलों के लिए होंगी, यह उन जिन्दलों के लिए है जो वन आन्दोलन से लेकर आज तक के आन्दोलनों के अगुवा पी सी तिवारी को जान से मारने की कोशिश करते हैं। ये वे जिन्दल हैं जिनके लिए राष्ट्रध्वज का कोई सम्मान नही है और वे जिन्दल हैं जो सरकार और प्रशासन को जेब में रखते हैं ।

nainisar village15 साल में हमने सत्ता उन लोगों को दी जिनका राज्य अवधारणा से कोई संबन्ध नहीं, जो 15 साल उत्तराखण्ड में राज्य करने के बाद इसे केन्द्र शासित होने में भलाई देखते हैं । उत्तराखण्ड के सिर 26 संशोधनों की गठ्ठर लादने और जल विद्युत परियोजनाओ का एमओयू उत्तराखण्ड के बजाय कम्पनियों के पक्ष करने वाले, मुजफ्फरनगर के अपराधियों को प्रमोशन देने, राज्य आन्दोलनकारियों को उपद्रवी बताने की हद तक जाने वाले लोग-पार्टियां उत्तराखण्ड के हितैषी हो कैसे सकती है? जिन लोगों के सिर उत्तराखण्ड के गांधी इन्द्रमणी बडोनी का सिर फोड़ने का पाप हो वे कितने ही कुम्भ नहा लें उनके पाप जाने वाले नही हैं । उत्तराखण्ड के जल-जंगल-जमीन पर कुदृष्टि केदारनाथ के बन्द कपाटों के दर्शन से भी मुक्ति नहीं देगी ।

जो प्रशासन व सरकार तिरंगे की शान में गुस्ताखी बर्दास्त करे उससे बडा नपुंसक कोई नही है । हमारे जवान सियाचिन में माइनस 41 डिग्री सेलसियस पर जिस तिरंगे की शान-बान के लिए अपना खून सुखा रहे हों और जिस तिरंगे पर करोडों करोड बलिदान हुए हों उसे अपमानित करने वालों को जो प्रशासन नजरअंदाज कर दे वह कम से कम देश व उत्तराखण्ड के काबिल तो नही है । जनमत जाग रहा है। 8 फरवरी की अल्मोडा में हुई जबाब दो रैली में पुराने आन्दोलनकारियों के साथ युवा और बडी संख्या में महिलाओं की भागीदारी बता रही है कि अब दलाली के दिन समाप्त होने वाले हैं । जैता इक नि त आलौ उ दिन य दूनी में गिर्दा वह दिन आयेगा जरुर । माफिया की हिमायती सरकार के दिन बूरे होगें ।


पुरुषोत्तम असनोड़ा। आप 40 साल से जनसरोकारों की पत्रकारिता कर रहे हैं। मासिक पत्रिका रीजनल रिपोर्टर के संपादक हैं। आपसे  purushottamasnora @gmail.com या मोबाइल नंबर– 09639825699 पर संपर्क किया जा सकता है ।

One thought on “आंदोलन की पहाड़ सी मुश्किलें !

  1. सरकार का संरक्षण माफिया को और मीडिया बना धृतराष्ट्र…

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