पत्रकारिता में रहते हुए पत्रकारिता धर्म निभाने की ललक पता नहीं कितने पत्रकारों में बची रह गई है? लेकिन ऐसे में जब कोई तल्खी से आईना दिखाता है तो अच्छा लगता है। चेन्नई में तबाही के बीच मीडिया के मूल्यों पर दैनिक भास्कर के 5 दिसंबर के अंक में कल्पेश याग्निक ने ‘असंभव के विरुद्ध’ कॉलम में जिन मुद्दों को छेड़ा है, उसे याद रखा जाना चाहिए। केदारनाथ के बाद कश्मीर, बिहार के बाद चेन्नई की तबाही के इंतज़ार में नहीं, बल्कि सतत सजग रहने के लिए ये बेहद जरूरी है। पेश है कॉलम का कुछ अंश
कल्पेश याग्निक
किन्तु चेन्नई वासियों ने समूचे संसार को दिखा दिया कि भीषण त्रासदी में डटे कैसे रहना। कैसे जीना। कैसे जीत जाना।
प्रथम भारतीय जो ठहरे- द्रविड़। इसी तरह देश ने भी दिखा दिया। कि कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होना किसे कहते हैं। सेना किसे कहते हैं। किन्तु एक अपराध बोध मुझ में है। पत्रकार के रूप में। और उसे पाठकों के कन्फेशन बॉक्स के सामने स्वीकार करने का साहस जुटा पाने का कारण है। कारण यह है कि मेरा भी दिल चेन्नई वासियों के लिए धड़कता है। मेरी भावनाएं भी उनके लिए उतनी ही अधिक हैं जितनी उन लोगों की जो वहां उनकी सहायता में अपने आप को झोंके हुए हैं। मैं भी इस महाजलप्लावन में समय पूर्व समाधि ले चुके अनेक माता-पिता, भाई-बहनों के दु:ख से हिला हुआ हूं। मैं, सारा मीडिया, सभी पत्रकार आपके लिए कुछ करना चाहतेे हैं।
1. मैंने पहले दिन तो इस भीषण अतिवृष्टि को कवर तक नहीं किया।
2. दूसरे दिन भी मैंने भारी वर्षा तो कवर की -किन्तु ‘नेशनल मीडिया’ में इसे अधिकतर ने पहले दिन प्रमुखता नहीं दी- यह कहकर बचता रहा।
3. फिर पत्रकारिता जाग गई। गंभीरता से। गहराई से।4. इस बीच सोशल मीडिया ने पहले 24 घंटे मीडिया की चुप्पी पर तीखे प्रहार शुरू कर दिए। तब मेरी आंखें और खुलीं। चेन्नई के नागरिक सुजीत कुमार ने गिनाया कि इस दौरान मीडिया के लिए क्या प्राथमिकता रही (अ) कांग्रेस-भाजपा के बीच छापों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप, (ब) संसद में मंत्रियों के भाषण (स) आमिर खान का बयान उस पर बहस और (द) पूरा पिछला सप्ताह असहिष्णुता पर समाचार-विचार।5. फिर मैंने देखा चेन्नई की त्रासदी पर समूचा राष्ट्र बात कर रहा है। कोने-कोने में महिलाएं फोन पर पारिवारिक बातें करते-करते चेन्नई में ऐसा हो गया, वो एक सड़क पूरी नदी बन गई, बच्ची को कितनी मेहनत से बचाया-ऐसी बातें करने लगीं।6. ट्विटर पर एक और तरह से अाक्रोश फूटा। लिखा गया:- ”धन्यवाद। हमारे संकट को कवर करने का। छि। शेम ऑन यू।”
1. खाने के पैकेट पहुंचाए जा रहे हैं – मैं इसके फोटो छाप रहा हूं। इसके फुटेज दिखा रहा हूं। इसके समाचार चला रहा हूं। क्यों? क्यों कर रहा हूं मैं ऐसा?
2. सरकार ने ये नहीं किया, वो नहीं किया – मैं यह प्रश्न उठा रहा हूं। पुराने पापों का ब्योरा दिखा रहा हूं। क्यों? क्या हो जाएगा आज ऐसा दिखाने से?3. नदियों की जमीन पर, तालाबों पर, पोखर पर बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं तान दी गई हैं। खुली जमीनों पर कल-कारखाने लगा दिए गए हैं। पर्यावरण को भारी हानि पहुंचाई है। इसलिए बाढ़ आई चेन्नई में। ये बता रहा हूं मैं। क्यों?4. विदेशों में हो – तो मुझे अच्छा लगता है। आदर्श लगता है। मेरे वतन में होते ही, अवसर संवेदना व संवेदनशीलता दिखाने का आते ही -मैं गांभीर्य त्याग कर- खाने के पैकेट ढूंढ़ने लगता हूं। कमियां, आरोप सब ले आता हूं।