पुष्यमित्र
सोशल मीडिया ने आज पूरी दुनिया को एक सूत्र में बांध दिया है, किसी को पुराने दोस्त की तलाश करनी हो तो फेसबुक, किसी को अपने मन की बात करनी हो तो फेसबुक यानी ‘फेसबुक बाबा’ ने हर किसी के लिए एक खुला मंच दे रखा है । इसका इस्तेमाल अब सामाजिक, प्रशासनकि काम और समस्याएं सुलझाने के लिए भी होने लगा है । बिहार के मेधपुरा में तत्कालीन एसपी कुमार आशीष ने लव योर पुलिस नाम से फेसबुक पेज बनाकर जनता से सीधे संवाद बनाये रखा तो वहीं बिहार के सीमांचल में फेसबुक के जरिए लोग उन अफसरों की आंखें खोल रहे हैं जो जन सरोकार से जुड़े मुद्दे पर आंखे मूंदे रहा करते थे ।
सीमांचल कभी देश के सबसे पिछड़े और अशिक्षित इलाका माना जाता था । ना तो सरकार यहां के रहने वालों की सुध लेती ना प्रशासन लेकिन आज यहां के लोग मजबूर नहीं है और इसकी वजह है सोशल मीडिया पर चलने वाली एक क्रांति जिसका नाम है ‘कॉल फॉर चेंज’ जो यहां के लोगों के लिए बदलाव की नई इबारत लिख रही है । अररिया और किशनगंज जिले के 50 हजार से अधिक लोगों के फेसबुकिया ग्रुप ने इस इलाके में प्रशासकीय मशीनरी की जंग को छुड़ा दिया है। लोगों ने सोशल मीडिया के जरिये प्रशासकों को मजबूर कर दिया है कि वह उनकी हर छोटी बड़ी समस्या पर क्विक एक्शन ले। फिर चाहे वह स्कूल के बच्चों के प्रोत्साहन राशि का मसला हो, टूटी पुल-पुलिया की मरम्मत का सवाल हो या सीमा पर बीएसएफ से झड़प की बात। यह मंच लोगों की बड़ी बड़ी समस्याओं को चुटकियों में हल कर रहा है। इसका फार्मूला है कॉल फॉर एक्शन। यानी हर परेशानी के लिए ग्रुप सभी लोग बारी बारी से सम्बंधित अधिकारी को फोन करते हैं। हर महीने 10-15 मसले पेश होते हैं और उसका नतीजा निकलता है।
यह ग्रुप पिछले तीन-चार सालों से लगातार जमीनी और जरूरी मुद्दों पर ऐसे मुहिम चलाता रहा है और इसका सकारात्मक परिणाम भी निकलता रहा है. ग्रुप के एडमिन हसन जावेद जो एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, कहते हैं. खबर सीमांचल पहले एक सिंपल फेसबुक ग्रुप था. 2011 से चल रहे इस ग्रुप का मकसद वैसा ही था, जैसा फेसबुक के दूसरे समूहों का होता है. खबरों का आदान-प्रदान, विचारों की अभिव्यक्ति, हंसी-मजाक और अपनी तसवीरों की शेयरिंग. इस ग्रुप में सीमांचल के चार जिलों पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और कटिहार के लोग जुड़े थे, किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के लोगों की बहुतायत थी. हां, ग्रुप में स्थानीय सूचनाओं की भरमार होती थी, जिस वजह से किशनगंज के स्थानीय लोग और वहां के लोग जो बाहर रहा करते थे, उनका स्वभाविक आकर्षण इस ग्रुप के प्रति था और सदस्यों की संख्या हजारों में पहुंच गयी थी.
तभी बलिया के एक स्कूल में छात्रवृत्ति और प्रोत्साहन राशि के गबन का मामला सामने आया. और राय बनी कि इन बच्चों को इनका हक दिलाया जाये. जब अधिकारी को शिकायत की गयी तो उन्होंने लिखित आवेदन देने कहा, आवेदन मिलने पर भी काम नहीं हुआ तो कॉल फॉर चेंज की रणनीति का जन्म हुआ. ग्रुप के लोगों ने सोचा कि हमलोग इतने सारे लोग हैं, अगर सारे लोग फोन करेंगे तो जरूर दबाव बनेगा. अधिकारी का नंबर पोस्ट किया गया. ग्रुप के सदस्य जो एक सामान्य नागरिक से विदेशों में बड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोग तक थे, ने उक्त अधिकारी को फोन करना शुरू कर दिया. उस अधिकारी ने एक सार्वजनिक बैठक में स्वीकार किया कि उनके पास इतने फोन आये कि रिसीव करते-करते उनका हाल बुरा हो गया था. उन्हें नहाने-खाने तक का वक्त नहीं मिल पाता था। अगले दिन सुबह सात बजे ही वे स्कूल पहुंच गये और पूरे दिन बैठ कर उन्होंने मामले की जांच की. दो-तीन दिन के अंदर बच्चों को उनके हक का पैसा मिल गया ।
इस रणनीति की सफलता ने ग्रुप के लोगों को कॉल फॉर चेंज को एक मुहिम का रूप देने में मदद की. एडमिन हसन जावेद कहते हैं, तब से लेकर अब तक दर्जनों मामलों में इस मुहिम को अपना कर लोगों को उनका हक दिलाने में हमने मदद की है. इनमें मलेशिया में फंसे कोचाधामन के युवक को वापस लाना, स्कूलों में शिक्षकों को समय से पहुंचने पर मजबूर करना, स्वास्थ्यकर्मी और बिजली विभाग की कर्मियों की लापरवाही उजागर कर उन्हें ढंग से काम करने पर विवश करना, मिड-डे मील में कमीशनखोरी पर रोक लगाना जैसे कई जमीन मामले हैं, जिनमें उन्हें अनापेक्षित सफलता मिली. इसका नतीजा यह हुआ कि हमारे ग्रुप में जुड़ने के लिए लोगों में होड़ मच गयी. रोज दर्जनों रिक्वेस्ट आने लगे।
कॉल फॉर चेंज से निकला रास्ता
सीमा पर स्थानीय लोगों और एसएसबी के बीच टकराव को खत्म किया ।
टहलटपुर मदरसा के शिक्षकों को बकाया वेतन और पेंशन दिलवाया ।
कई स्कूलों में बच्चों को छात्रवृत्ति और प्रोत्साहन राशि दिलवाया ।
स्कूल देर से पहुंचने वाले टीचरों को वक्त की पाबंदी का पाठ पढ़ाया ।
स्वास्थ्य और बिजली कर्मचारियों को उनका काम याद दिलाया ।
जावेद और उनकी टीम अपनी मुहिम को दिन रात आगे बढ़ा रही है और इसका फायदा समाज के हर तबके को मिल रहा है । यहां ना कोई हिंदू है और ना कोई मुसलिम बस ग्रुप में जुड़ा हर शख्स हिंदुस्तानी है । जावेद और उनकी टीम की मुहिम का ही असर है कि आम लोग तो इस ग्रुप में हैं ही चारों जिले के डीएम, एसी, पूर्णिया के डीआइजी समेत बड़ी संख्या में अधिकारी, नेता और व्यवसायी भी इसके सदस्य हैं । साभार प्रभात ख़बर
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।