देश की सर्वोच्च सेवा के लिए अधिकारियों की नई जमात चुन ली गई है। इस समय हर तरफ देश के होनहार युवाओं की चर्चा हो रही है। इन युवाओं में कुछ ऐसे भी हैं जो दिल में गांव की माटी की महक संजोए हैं। बात ऐसी ही एक शख्सियत की, जो यूपीएससी की परीक्षा में हिन्दी मीडियम के छात्रों के लिए एक आदर्श बनकर उभरे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ के रिठानी गांव के रहने वाले निशांत जैन ने न सिर्फ यूपीएससी की परीक्षा में 13वीं पॉजिशन हासिल की बल्कि हिंदी मीडियम के छात्रों में पहले पायदान पर रहे। निशांत ने सरस्वती शिशु मंदिर से शुरुआती पढ़ाई की है। दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए और एमफिल हिंदी। कवि के समान कोमल मन वाले निशांत जैन की तमन्ना गांव के लिए कुछ बेहतर करने की है। निशांत जैन ने बदलाव डॉट कॉम की टीम से बातचीत में अपने जीवन से जुड़े संघर्षों को साझा किया…पेश है निशांत से बातचीत के कुछ अंश।
बदलाव- आपको यूपीएससी की परीक्षा में कामयाबी के लिए बधाई ।
निशांत जैन- जी शुक्रिया
बदलाव- आपको यूपीएससी में सफलता की सूचना कैसे मिली?
निशांत जैन- यूपीएससी का रिजल्ट आया तो मैं अपने परिवार के साथ घर पर था। तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी, नंबर मेरे एक करीबी दोस्त का था, मैने जैसे ही हैलो किया दोस्त ने बोला भाई अपना रोलनंबर बता। मैंने पूछा -बताओ क्या हुआ, दोस्त ने कहा, निशांत नाम के लड़के ने यूपीएससी की परीक्षा में तेरहवीं रैंक हासिल की है। नंबर मिलाया तो मेरा ही था, फिर क्या था, बधाई का सिलसिला शुरू हो गया।
बदलाव- आप अपनी सफलता को लेकर कितने आश्वस्त थे ?
निशांत जैन- अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा था, लेकिन ऑल इंडिया 13वीं रैंक के साथ हिंदी मीडियम में टॉप करूंगा ये नहीं सोचा था। मुझे तो हिंदी मीडियम में टॉप करने वाली जानकारी मीडिया से मिली। हिंदी मीडियम के छात्रों का इससे उत्साह बढ़ेगा ।
बदलाव-आप एक सामान्य परिवार में पले बढ़े हैं, ऐसे में आपको यहां तक पहुंचने में किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा ?
निशांत जैन- मुश्किलें बहुत आईं, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। एक दो बार ऐसा वक़्त भी आया जब हिम्मत साथ छोड़ने लगी थी। सामान्य घर में पला, पिताजी छोटी सी नौकरी करते थे और पूरे परिवार का खर्च चलाते थे। मैंने पिताजी को कभी हार मानते नहीं देखा, उन्हीं से मुश्किल दौर में चुनौतियों से लड़ना सीखा, जो सिविल सर्विसेज के सफ़र में बहुत काम आई। आमदनी कम थी पारिवारिक जिम्मेदारियां बहुत ज़्यादा, लिहाजा हिंदी में एमफिल के बाद दिल्ली में लोकसभा सचिवालय में राजभाषाहिंदी से जुड़ी नौकरी करने लगा। साथ ही सिविल सर्विसेज की तैयारी नहीं छोड़ी, और आज नतीजा आपके सामने है।
बदलाव- सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे?
निशांत जैन- – माता-पिता, गुरुजन और दोस्तों को। खासकर बड़े भाई को, जिन्होंने मुझे हर मुश्किल वक़्त में संभाला। प्रशांत भैया हर कठिन वक़्त में मेरे साथ खड़े रहते। बड़े भैया मीडिया से जुड़े हैं लिहाज उनसे बहुत कुछ सीखने को भी मिला।
बदलाव- आप शहर में पले-बढ़े हैं, लेकिन गांवों में बदलाव की ज़रूरत कहीं ज़्यादा है। जो बिना भावनात्मक लगाव के मुमकिन नहीं लगता?
निशांत जैन- पिताजी शहर में नौकरी करते थे लिहाजा मेरा बचपन शहर में बीता लेकिन गांव की माटी की खुशबू आज भी हमें अपनी ओर खींचती है। यही वजह है कि मैं आज भी महीने-दो महीने में एक बार गांव ज़रूर जाता हूं। दादा जी से काफी जुड़ाव रहा है। ननिहाल जाने का मौका भी कभी नहीं गंवाता।
बदलाव- गांव की ज़िंदगी बारे में आप क्या सोचते हैं?
निशांत जैन- मेरा मानना है कि गांव को लेकर लोगों के जेहन में बेवजह कुंठा है जबकि गांवों में बहुत संभावनाएं हैं। गांव में एक सिम्पलीफाइड लाइफ़ है, जिसमें आप एक अच्छी दिनचर्या बनाकर बेहतर जीवन बिता सकते हैं। एक समस्या है, रोजगार की। कृषि के अलावा वैकल्पिक रोजगार के अवसरों के बारे में सोचना होगा। जैसे फूड प्रॉसेसिंग या हस्तशिल्प जैसे काम गांवों में विकसित किए जाएं तो रोजगार की समस्या कम हो सकती है और गांवों से पलायन रुक सकता है।
बदलाव- आपकी नजर में एक आदर्श गांव कैसा होना चाहिए ?
निशांत जैन- मेरी नज़र में एक आदर्श गांव में तीन चीजों को होना बेहद ज़रूरी है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार। इन तीनों के बिना कोई भी गांव आदर्श नहीं बन सकता।
बदलाव-शिक्षा और स्वास्थ्य से क्या मतलब है, किस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए ?
निशांत जैन- शिक्षा का मतलब ये नहीं कि वहां आईआईटी खोल दो…शिक्षा का मतलब है 100 फ़ीसदी शिक्षित हमारा गांव हो। लड़के-लड़कियों को शुरुआती शिक्षा के लिए दूर न जाना पड़े। इसके लिए प्राथमिक विद्यालय का होना ज़रूरी है। यही नहीं पढ़ाई का स्तर भी बेहतर करना होगा। कम से कम 8वीं तक छात्र और छात्राओं को पढ़ने के लिए गांव से बाहर नहीं जाना चाहिए। यही नहीं तीन-चार गांवों पर एक इंटर कॉलेज भी होना ज़रूरी है। स्वास्थ्य की बात करें तो सबसे पहले डॉक्टरों की अच्छी टीम बनाई जानी चाहिए । डॉक्टरों को गांव की ओर रुख करने के लिए जरूरी हो तो उनके वेतन में बढ़ोतरी करनी चाहिए। गांवों में तैनात डॉक्टरों के लिए अवॉर्ड की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि उन्हें एक्सपोजर मिल सके।
बदलाव- आपको नहीं लगता की पंचायतों को और अधिकार दिए जाने की ज़रूरत है?
निशांत जैन- मैं ऐसा नहीं मानता। केवल नियम बना देने से कुछ नहीं होता। संविधान ने पहले से ही पंचायतों को काफी अधिकार दे रखा है। ज़रूरत है तो लोगों को जागरूक करने की जिससे लोग अपने अधिकारों को समझें और कोई उन्हें बेवकूफ न बना सके। गांव का हर नागरिक पंचायत का हिस्सा होता है लिहाजा पंचायत के हर फ़ैसले में गांव के लोगों की भागीदारी ज़रूरी है। समय-समय पर ग्रामसभा होनी चाहिए। वैसे अमूमन ऐसा होता नहीं, चंद लोग मिलकर गांव का फ़ैसला कर लेते हैं, लोगों से संवाद नहीं हो पाता। और लोग ठगा सा महसूस करते हैं।
बदलाव- डिजिटल इंडिया से गांव के लोगों को कितना फायदा होगा ?
निशांत जैन- डिजिटल इंडिया से गांवों में बड़ा बदलाव आ सकता है। गांव में रहते हुए ही लोगों को अपनी समस्याओं को सुलझाने का मौका मिल जाएगा। जन शिकायतों की सुनवाई में बड़ी भूमिका डिजिटल इंडिया निभा सकता है।
बदलाव- गांव के बारे में आप इतना सोचते हैं, क्या आप चाहेंगे कि आपकी पहली पोस्टिंग ऐसे जिले में हो, जिसमें गांवों की अच्छी तादाद हो और आप बदलाव की शुरुआत कर सकें।
निशांत जैन- बिल्कुल, ये मेरा सौभाग्य होगा। मैं ज़मीन से जुड़ा व्यक्ति हूं और मिट्टी से जुड़े लोगों के लिये काम करने का मज़ा ही कुछ और होगा। मैं तो चाहूंगा कि मेरी पोस्टिंग ऐसी जगह हो जहां मैं कम से कम हफ़्ते में एक दिन गांव में गुजार सकूं।
बदलाव- सुना है आपको कविताएं लिखने का शौक है, पहली कविता कब लिखी।
निशांत जैन- इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है । बचपन से मुझे लिखने पढ़ने का शौक है, जब मैं 8वीं कक्षा में था तो कुछ कविताएं लिखीं। उन दिनों अखबारों में बच्चों की कविताएं छपा करती थीं। मैने भी ऐसे ही एक अखबार को कविताएं भेजनी शुरू की, लेकिन कोई नहीं छपी। मैं हार मानने वालों में नहीं था, अखबार से जुड़े एक साहब को मेरी सिस्टर पहचानती थी, लिहाजा उन्होंने मेरी कविता का जिक्र जब उन महाशय के सामने छेड़ा तो उनका जवाब था, हां कविता आई तो थी लेकिन मुझे लगा ये कविता बच्चे ने कहीं से चुराई होगी। इतनी छोटी उम्र में इतनी ऊंची कल्पना कोई कैसे कर सकता है, दीदी ने मुझे इस बारे में बताया तो मेरा हौसला और बढ़ा…इस तरह कविता लिखने का सिलसिला चलता रहा और आगे चलकर मैने हिंदी से एमए किया और एमफिल भी। जिसने आईएएस की तैयारी में मेरी काफी सहायता की ।
बदलाव- अगर आप आईएएस न बनते तो क्या होते?
निशांत जैन- सच बताऊं तो अगर मैं आईएएस न बनता तो निश्चित ही पत्रकार होता।
बदलाव डॉट कॉम की ओर से आपको ढेरों शुभकामनाएं और हमसे बात करने के लिए धन्यवाद।
Shalu Agrawal -Baddhai nishant kavi, patrkar k alava ye cartonist b hai kai baar inke cartoon hamne prkashit kie hain. (फेसबुक से)
Congrachulation nishant ji
Aapne bata diya ki hindi medium wale student bhi upsc me achhe ank prapt kar sakte hai
निशांत जी आपका यह प्रयास सराहनीय है । कि बदलाव के माध्यम से आप हम लोगो को उन पहलुओ से जोड़ रहे है जो आम लोगो से अनजान है ।और उन विशिष्ट व्यक्तिओ से भी परिचित करा रहे है जो सामाजिक उत्थान के लिये ततपर है। और इसके माध्यम से हम ग्रामीण संस्क्रति से भी परिचित हो रहे है।
congratulation Nishantji gaidance dene ke liye apka dhanyavad ada karta hu
Esta interesante este post. No sabes el tiempo que llevaba buscando. Thank you !! Besos !!