प्रेमचंद की जयंती (31 जुलाई) पर कवि नवीन सी चतुर्वेदी की ये कविता।
क़लम के जादूगर!
अच्छा है,
आज आप नहीं हो।
अगर होते,
तो, बहुत दुखी होते।
आप ने तो कहा था –
कि, खलनायक तभी मरना चाहिए,
जब,
पाठक चीख चीख कर बोले,
मार–मार–मार इस कमीने को।
पर,
आज कल तो,
खलनायक क्या?
नायक–नायिकाओं को भी,
जब चाहे,
तब,
मार दिया जाता है।
फिर जिंदा कर दिया जाता है।
और फिर मार दिया जाता है।
और फिर,
जनता से पूछने का नाटक होता है–
कि अब,
इसे मरा रखा जाए?
या जिंदा किया जाए?
सच,
आप की कमी,
सदा खलेगी–
हर उस इंसान को,
जिसे –
मुहब्बत है,
साहित्य से,
सपनों से,
स्वप्नद्रष्टाओं,
समाज से,
पर समाज के तथाकथित सुधारकों से नहीं।
नवीन सी चतुर्वेदी। मथुरा में पले बढ़े नवीन इन दिनों मुंबई में कारोबार कर रहे हैं। ‘साहित्यम’ के संपादक।