ऐ पटना, चंचल ने छोड़ दिया तेरा हर ‘मोहल्ला’

ऐ पटना, चंचल ने छोड़ दिया तेरा हर ‘मोहल्ला’

पुष्यमित्र

एसिड हमले की शिकार चंचल पासवान नहीं रही। एक खबर मेरे लिए किसी झटके से कम नहीं थी। वैसे तो पिछले दो साल में बिहार के एसिड हमले की शिकार चार लड़कियों की मौत हो चुकी है। दो ने खुदकुशी कर ली, एक की इलाज के अभाव में मौत हो गयी। मगर मनेर की चंचल का नहीं रहना इन सबसे ज्यादा दुखद है, क्योंकि बिहार जैसे राज्य में जहां एसिड हमले की पीड़िता सरकार से लेकर समाज तक की प्रताड़नाओं का लगातार शिकार हो रही हैं,  चंचल इन सबके ख़िलाफ़ डट कर खड़ी हुई थी।

चंचल ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ा और देश भर की एसिड हमले की शिकार लड़कियों के लिए उन्हें दिव्यांगों की श्रेणी में रखने,  सरकारी और निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज कराने और बर्न परसेंटेज के आधार पर मुआवजा हासिल करने का हक हासिल किया था। इसके अलावा वे समय-समय पर सरकारी महकमों से अपना और दूसरों का हक मांगने पहुंच जाती थी। उसने विपरीत हालात में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी। रेगुलर कॉलेज जाकर बीए फर्स्ट पार्ट की परीक्षा पास की और मॉडलिंग करने के अपने सपने को जिंदा रखा।

पिछले साल जब वैशाली जिले के अनवरपुर गांव में एक तेजाब पीड़िता किशोरी ने बिजली का तार पकड़ कर जान दे दी थी तो उसी सिलसिले में मैं चंचल से मिलने उसके घर गया था। उसने बताया कि उसके मामले के सारे आरोपी जमानत पर रिहा हो गये हैं। वे लोग उसके घर के सामने खड़े होकर उसका मजाक उड़ाते हैं, गालियां देते हैं। चूंकि चंचल को सरकार से ठीक-ठाक मुआवजा मिला है और सामाजिक संस्थाओं के लोग भी अक्सर उनसे मिलने आते हैं, इसलिए समाज में यह बात फैला दी गयी है कि चंचल अपने जख्मों को दिखा कर माल बटोर रही है। आसपास की महिलाएं पीठ पीछे कहती थीं कि इन लोगों ने अब इसे धंधा बना लिया है। उसका समाज में आना-जाना बंद कर दिया गया है। कोई कहीं बुलाता नहीं है। लोग कहते हैं, मुहल्ला छोड़ कर कहीं और चली जाओ।

इसके बावजूद चंचल डटी हुई थी और उसका पूरा परिवार उसका साथ खड़ा था। चंचल ने मुझसे कहा था कि  समाज का बर्ताव तो कहने लायक नहीं है। पिछले महीने में उसके मामले के एक आरोपी की शादी हुई। शादी काफी धूम-धाम से हुई और पूरा मोहल्ला उसकी शादी में शामिल हुआ। जबकि हमें इस घटना के बाद किसी समारोह में नहीं बुलाया जाता है कि लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। इसका मतलब तो यही न हुआ कि कसूरवार हमलोग हैं और अन्याय उनके साथ हुआ कि उन्हें जेल जाना पड़ा। हैरत की बात तो यह है कि किसी लड़की के परिवार वालों ने कैसे ऐसे लड़के के साथ अपनी बेटी का ब्याह कर दिया, जो किसी और लड़की के साथ ऐसा व्यवहार कर सकता है। क्या उन्हें इस बात का भय नहीं लगता कि उनकी बेटी से भी एक दिन वह ऐसा ही व्यवहार कर सकता है।

चंचल ने मुझसे कहा, सरकार का भी वही हाल है। पिछले दिनों जब वे अपना मामला लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार में गयीं, तो उसे यह कह कर लौटा दिया गया कि आज इस मुद्दे पर शिकायतें नहीं सुनी जायेंगी। एक तरफ लक्ष्मी जैसी युवती है, जो तेजाब पीड़ितों के लिए लड़ाई लड़ कर समाज में अपनी पहचान बना रही है, सरकार और समाज उसे सम्मान देता है। दूसरी तरफ मैं हूं, जिसने अदालत में एक बड़ी लड़ाई जीती है और सभी पीड़ितों के लिए हक हासिल किया है, मगर मुझे न सरकार नोटिस करती है, न समाज। उल्टे लोग कहते हैं, मोहल्ला छोड़ कर चली जाओ।

चंचल पासवान। एसिड से खाक हुए जिंदगी के कई अरमान। संघर्ष की दास्तान, श्मशान तक।

इतना कुछ होने के बावजूद मैंने उसके मन में निराशा का कोई भाव नहीं देखा। वह इस घटना से पहले मॉडलिंग करना चाहती थी। घटना से उबरने के बाद भी उसने इस शौक को जिंदा रखा था। वह खाली समय में खुद को संवारती और सेल्फी लेकर तसवीरें अपने कंप्यूटर में रखती रहती। उसने वे तमाम तसवीरें मुझे दिखाई थी। उसे उम्मीद थी कि अगली प्लास्टिक सर्जरी के बाद उसका चेहरा कुछ और बेहतर हो जायेगा। फिर वह मॉडलिंग के लिए कोशिश करेगी। उसके इलाज में जॉन अब्राहम की संस्था उसकी मदद कर रही थी। वह जॉन की दीवानी थी और उसकी तसवीर उसके कमरे में टंगी रहती थी।

उससे मिल कर लौटने के बाद मुझे लगा था कि चंचल को अगर लोगों का सहयोग मिले तो वह भी लक्ष्मी की तरह बिहार की एसिड विक्टिम युवतियों की रोल मॉडल हो सकती है। दुर्भाग्य से बिहार में सरकार और समाज दोनों स्तर पर एसिड हमले की शिकार लड़कियों के साथ बहुत ही संवदेनहीन व्यवहार हो रहा है। वे लगातार तनाव में रहती हैं। इसी वजह से पिछले दो सालों में दो लड़कियों ने खुदकुशी कर ली है।

चंचल में एक जोश था, एक सकारात्मकता थी, हौसला था। वह कुछ कर सकती थी। उसे लोगों की निगाहों का सामना करने में झिझक नहीं होती थी। वह इन तमाम लोगों के लिए हौसला बन सकती थी। मगर अफसोस वह असमय चली गयी। अचानक, बिना किसी माकूल वजह से। अभी उसे नहीं जाना था। तुम्हारी अभी हमें काफी जरूरत थी चंचल।

साभार- प्रभात ख़बर.COM


PUSHYA PROFILE-1पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।