‘काली नज़रों’ से घर नहीं जलते, बकरी नहीं मरती…

सत्येंद्र कुमार यादव की रिपोर्ट

झारखंड में डायन बता कर 5 महिलाओं की हत्या। किस युग में है हमारा समाज कौन जाने?
झारखंड में डायन बता कर 5 महिलाओं की हत्या। किस युग में है हमारा समाज कौन जाने?

छोटी-छोटी बातों पर महिलाओं को टोनहिन, डायन, नज़र की ख़राब कहना, कई इलाकों में एक चलन बन गया है। गाय दूध नहीं देती, बकरी मर गई, किसी के बेटे की तबीयत ख़राब हो गई तो बेवजह किसी को डायन कह दिया जाता है। महिलाओं को पहले डायन घोषित कर उन्हें समाज से अलग-थलग किया जाता है, फिर पाश्विक बर्ताव, रेप, बाल काट देना, मुंडन कर देना और कपड़े उतार कर गांव से बाहर कर देने जैसी अमानवीय हरकतों का सिलसिला शुरू हो जाता है। हाल ही में झारखंड की राजधानी रांची से 45 किलोमीटर दूर एक गांव में 5 महिलाओं को कथित तौर पर डायन बताकर मार डाला गया। हत्या का कारण एक परिवार में एक बच्चे का बीमार होना था। इलाज कराने की जगह बीमारी का जिम्मेदार इन महिलाओं को बताया गया और एक-एक कर पांच महिलाओं की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। ये दर्द भरी कहानी सिर्फ झारखंड की महिलाओं की नहीं है, ओडिशा छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों की सैंकड़ों महिलाओं को कभी न कभी कथित तौर पर डायन करार दिए जाने का दंश झेलना पड़ा है।

तथाकथित ‘डायन’ पर ख़ूनी हमले

1- अप्रैल 2015 में राजस्थान के चितौड़गढ़ के पालका गांव में एक महिला को डायन बताकर मारा-पीटा गया। महिला की नाक तोड़ दी।

2- असम के सोनितपुर जिले में गांव के लोगों ने एक 63 साल की महिला का सिर काट डाला।

3- झारखंड के गुमला जिले के सुरसांग अंबाटोली गांव में डायन बिसाही के आरोप में 75 साल के बंधु नगेशिया और उनकी पत्नी 65 वर्षीय परी देवी की धारदार हथियार से हत्या कर दी गई।

4- ओडिशा-झारखंड के सीमावर्ती बड़बिल के जोड़ा स्थित लोहंडा गांव में एक ही परिवार के छह लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी गई।

5- पश्चिम बंगाल के मालदा में एक आदिवासी महिला की दोनों आंखें निकाल कर उसकी हत्या कर दी गयी

अंधविश्वास के चलते महिलाओं को डायन बताकर मार डालने का चलन झारखंड में नया नहीं है। किसी के घर में कोई भी घटना घट गई तो जिम्मेदार या तो घर की किसी महिला या पड़ोस की महिला को मान लिया जाता है। हर बीमारी में इलाज के पहले झाड़ फूंक, तंत्र-मंत्र का इस्तेमाल किया जाता है। तंत्र-मंत्र से बीमारी ठीक नहीं हुई तो माना जाता है कि डायन का प्रकोप ज़्यादा है। फिर ग्रामीण एक साथ मिलकर तथाकथित डायन पर हमला कर देते हैं। उसका नसीब अच्छा रहा तो जान बच गई वरना सांसें टूट जाती हैं।

दादा और अम्मा ने मुझे न टोका, न रोका

मुझे याद है कि बचपन में मैं पूरे गांव में घूमा करता था। कभी-कभी पड़ोसी महिलाएं किसी के घर मुझे देख लेतीं तो मेरी माताजी से शिकायत करती थीं कि आपका बेटा फलाना के घर गया था और खाना भी खाया। लेकिन मेरी मां मुझे कुछ नहीं कहती थीं, सिर्फ पूछ लेती थीं कि कहां गए थे? उन्होंने मुझे कभी मना नहीं किया कि फलां के घऱ जाओ या मत जाओ, खाओ या मत खाओ। किसी के बारे में पहले से कोई धारणा मेरे मन में नहीं डालती थीं। पड़ोस में रहने वाली कई महिलाएं मुझे कहा करती थीं कि फलां की पत्नी टोनहिन (डायन) है, उसके घर मत जाया करो और ना कुछ खाया करो। एक तरह से मुझे डराया जाता था। गांव के कुछ परिवारों को निगेटिव बताकर उनसे दूर रहने की हिदायत दी जाती थी। दादा जी और माता जी की अच्छी सोच ने मुझे इस नकारात्मक सोच से दूर रखा। अगर मैं बचपन में ही मान लेता कि ये परिवार ग़लत है या ये महिला डायन है तो शायद मैं भी उन्हीं लोगों में शामिल होता, जिनके अंधविश्वास पर आज लिख रहा हूं। आपके आसपास जब भी ऐसे मामले देखने-सुनने में आए तो आप अपने विवेक से काम लें। किसी के कहने और बहकावे में आकर न आएं।

नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड्स के मुताबिक साल 2000 से 2012 के बीच झारखंड में 363 महिलाओं की हत्या डायन बताकर की गई। देशभर में ये आंकड़ा 2097 हत्या का था। NCRB के आंकड़े के मुताबिक साल 2008-13 तक झारखंड में 220, ओडिशा में 177, आंध्र प्रदेश में 143, हरियाणा में 117, मध्यप्रदेश में 94, छत्तीसगढ़ में 61 और राजस्थान में 4 महिलाओं की हत्या की गई। झारखंड में ये समस्या विकराल रूप में है। ओडिशा, आंध्र प्रदेश भी इस तरह की हत्याओं के मामले में ज्यादा पीछे नहीं हैं। dian data ऐसा नहीं है कि सरकार ने इसे रोकने के लिए क़ानून नहीं बनाए। सरकार ने अपने तरफ से कोशिश की और कर रही है लेकिन लोगों की मानसिकता में अभी भी नकारात्मक बातें भरी पड़ी हैं। तंत्र-मंत्र, जादू-टोना पर विश्वास अब भी कायम है। अपने साथ हो रही घटनाओं का जिम्मेदार दूसरों को ठहराना अब भी जारी है। ये ख़तरनाक सोच समाज को खोखला कर रही है। अंधविश्वास के ख़िलाफ़ अभियान चलाए जा रहे हैं। झारखंड में डायन प्रथा विरोधी कानून साल 2001 से ही लागू है। इसके बाद भी समाज में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है। राजस्थान सरकार ने of Witch-Hunting Act, 2015 पास करके इस तरह की हत्याओं पर रोक लगाने की कोशिश की है। असम में भी हाल में ही इससे संबंधित बिल सदन में पेश किया गया है।

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सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।


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3 thoughts on “‘काली नज़रों’ से घर नहीं जलते, बकरी नहीं मरती…

  1. बहुत अच्छे सत्येंद्र जी…देश में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है…धर्म के नाम पर भी बहुत अंधविश्वास फैले हैं. उन्हें भी दूर करने की जरूरत है. इसके लिये दिल के साथ ही दिमाग के दरवाजे भी खोलने होंगे. तभी ये आदम जमाने की बुराइयां दूर हो सकेंगीं.

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