लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे भाषण के गिने चुने दिन बाकी हैं। करीब एक साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इसी प्राचीर से ‘आदर्श गांव‘ का सपना देश को दिखाया था। उम्मीद जगी कि गांवों की गलियों में विकास की बयार आएगी। गांव में अच्छी सड़कें, साफ–सुथरे स्कूल, पीने का साफ पानी, इलाज के लिए अस्पताल ये कुछ बुनियादी जरूरते हैं, जो इस सपने के साकार होने पर निर्भर है।
आदर्श ग्राम योजना-एक साल, क्या हाल?
गांववालों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री ने सभी सांसदों से एक–एक गांव गोद लेने की अपील की। पीएम मोदी ने खुद अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के जयापुर गांव को गोद लेकर मिसाल पेश की। दलीय विचारधारा से ऊपर उठकर दूसरी पार्टियों के सांसदों ने भी गांवों को गोद लेने में खासा उत्साह दिखाया। मंत्रियों ने गांवों में जाकर तस्वीरें भी खिंचवाई। ऐसे में टीम बदलाव ने आदर्श गांव के सपने और उसकी हक़ीकत को लेकर कुछ शुरुआती पड़ताल की। हमें हैरानी इस बात की है कि कई सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने अभी तक उस गांव का चयन ही नहीं किया है, जिसे आदर्श गांव की तरह पेश किया जाना है।
अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक गांव गोद न लेने वाले राज्यों की फेहरिस्त में पहले नंबर पर पश्चिम बंगाल है। मां, मानुष और माटी की बात करने वाली ममता के राज में ज़्यादातर सांसदों ने गांव गोद लेने की जहमत नहीं उठाई है। लोकसभा के कुल 42 सांसदों में सिर्फ़ 4 ने ही आदर्श गांव का चुनाव किया है। सूबे में बीजेपी के 2 सांसद हैं और दोनों ने ही पीएम के निर्देश का पालन किया है। उधर, सबसे ज्यादा सांसदों वाली टीएमसी के महज दो सांसदों ने इस पहल में हिस्सेदारी निभाई है। राज्यसभा के 16 सांसदों में से किसी ने गांव गोद नहीं लिया है।
देश की राजधानी दिल्ली के सांसदों ने भी अच्छी नज़ीर पेश नहीं की है। लोकसभा के सभी सांसद सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि दिल्ली के सांसदों ने गांव गोद लेने में काफी देर की। अब भी 2 सांसद गांव के चयन को लेकर ऊहापोह की स्थिति में ही हैं। इसमें एक तो मोदी मंत्रिमंडल के भी अहम सदस्य हैं। जबकि राज्ससभा के तीन सदस्यों में सिर्फ एक ने ही गांव चुना है।
सांसदों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लोकसभा के 80 सदस्यों में 79 ने गांव चुनने की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई है। समाजवादी सांसद अक्षय प्रताप एक मात्र ऐसे सदस्य हैं, जिन्हें इस योजना के तहत एक गांव का नाम फाइनल करना है। सूबे में राज्य सभा के 34 सदस्यों में 11 ऐसे हैं, जिन्होंने अभी तक गांव गोद नहीं लिया है। ये भी बता दें कि मोदी कैबिनेट में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर- जो उत्तर प्रदेश से राज्य सभा पहुंचे हैं-उन्होंने भी अभी तक कोई गांव गोद नहीं लिया है।
इत्मीनान के लिए ये काफी है कि आदर्श गांव को लेकर जो आंकड़े अब तक आए हैं, उनमें संसद में वो लोग अल्पमत में हैं, जिन्होंने गांवों का चयन नहीं किया है। अगर सभी सांसदों ने गांव गोद ले लिया और इस योजना पर सही तरीके से काम हुआ तो दो साल में करीब 800 गांव की सूरत कुछ बदल सी जाएगी। इस तरह पांच साल में तकरीबन 3 हज़ार गांवों में इस योजना का असर दिखेगा।
देश में करीब 6 लाख 38 हज़ार गांव हैं। इन सभी गांवों को आदर्श गांव में बदलना है तो केंद्र के साथ ही राज्य सरकारों को भी इस मुहिम को आगे बढ़ाना होगा। सांसदों के साथ ही विधायकों को भी अपना गांव चुनना होगा। और अगर हर पंचायत ने खुद ही तय कर लिया कि वो अपने गांव को किसी से पीछे नहीं रहने देंगे तो फिर विकास की इस दौड़ में गांवों की होड़ क्या नतीजे दे जाएंगी, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
रिपोर्ट अरुण यादव की है, जिनसे आप 9971645155 पर संपर्क कर सकते हैं।
सांसद आदर्श ग्राम योजना के अपडेट के लिए आप इस लिंक http://sanjhi.gov.in का इस्तेमाल कर सकते हैं।
हमारा गांव आदर्श गांव है लेकिन 50% घरों में शोचालय नहीं है क्यों ?सब सरपंच की 420सी है,
अब सभी गांवो में शोचालय बन रहे है, पर हमारे गांव में नंही बन रहे क्योंकि हमारा गांव तो आदर्श है ||