दो पल को इस तस्वीर पर आपकी निगाहें टिकी रह जाएं, तो फिर इस रिपोर्ट के मायने खुद-ब-खुद खुलते चले जाएंगे। रुखसाना अपनी बेटियों के साथ न जाने किन चिंताओं में पड़ी है। बाँदा जिले के नरैनी तहसील के शेखनपुर गाँव की रुखसाना अकेली अपनी दुनिया को सहेजने और संवारने की कोशिशें कर रही हैं। पति इरशाद खां अल्लाह को प्यारे हो गए हैं। और अल्लाह ही जाने रमजान के पाक महीने में इबादत के बाद भी राहत की नेमत घर तक क्यों नहीं बरसी है।
आशीष की आंखों देखी-तीन
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री साहेब, देखिये न रुखसाना अब इस समाजवादी दुनिया में नहीं रहना चाहती ! भूख-गरीबी और जवान बेटियों के ब्याह की चिंता उसको जीने नहीं दे रही! आलम ये कि रुखसाना के जेहन में ‘पूरे परिवार के साथ खुदकुशी’ जैसे नामुराद खयाल भी आने लगे हैं ! वो खुले आम अब इसे अपने गांव के लोगों के बीच बयां भी कर रही है।
ऐसी ख़बरें अखबार में छपी तो मेरे कदम गत 22 जुलाई को शेखनपुर की तरफ बढ़ चले। जेहन में एक ही सवाल था-क्या संवेदना और समाज का रिश्ता इतना बिखर चुका है कि एक बेवा अपने परिवार के साथ सिर्फ इसलिए मरना चाहती है कि आज उसका कोई रहबर नहीं है! गाँव से लेकर जिला मुख्यालय तक फैले समाजसेवा के कुनबे, ग्राम की महिला प्रधान और प्रशासनिक जमात में क्या किसी को इस ‘आवाज़’ में लिपटा दर्द महसूस नहीं होता? क्या हमारा फ़र्ज़ बस इतना कि रुखसाना को खबर बनाकर छोड़ दिया जाये? तमाम तरह की आंतरिक जिरह के बीच उलझा मैं गाँव पहुंचा।
रुखसाना के शौहर इरशाद पत्नी और बूढ़े पिता के भरोसे किसानी छोड़कर गोवा मजदूरी के लिए चले गये। 2 बीघा ज़मीन में परिवार ने खेती की। इरशाद का सपना एक ही था- ”फ़सल बेहतर हुई तो अबकी समीम बानो और नसीन बानो का निकाह करूँगा!’ वो सपने गुनता मजदूरी करता रहा और इधर खड़ी फसल पर तेजाब बनकर ओला और पानी बरसा तो सपनों के साथ परिवार की खुशियाँ भी खाक हो गयीं! पूरी खेती में महज 6 मन (करीब 237 किलो) अनाज हुआ!
मुआवजा अभी तक मिला नहीं क्योंकि लेखपाल और पटवारी ने ऐसी रिपोर्ट ही नहीं लगाई! कहते हैं 500 रुपया जब तक इनकी जेब में न डालो, मुआवजे की रिपोर्ट न तो बनती है, न आगे खिसकती है।
रुखसाना ने फ़सल तबाही की बात दबे गले से इरशाद को बता दी। परदेस में मजदूरी कर रहे किसान को बड़ा झटका लगा, दिल का दौरा पड़ा और सब कुछ ख़तम ! इरशाद अल्लाह को प्यारा हो गया। पहले से 4 बेटियों और दो पुत्रों से लदी रुखसाना को जिस वक़्त ये ख़बर लगी, उसके पेट में इरशाद की आख़िरी निशानी सांसें लेने लगी थी। एक और ज़िंदगी अपने अँधेरे आज और कल का इंतजार मानो गर्भ में ही कर रही हो। जब मैंने इस बारे में बात की तो शर्मिंदा होकर अपना पल्लू पेट से लगा लिया!
22 अप्रैल 2015 को इरशाद का इंतकाल हुआ। खेतिहर ज़मीन अभी ससुर के नाम है। एक देवर है जो गूंगा है। समीम, नसीन बानो, सनिया, दानिस और सेराज की अम्मी रुखसाना आज पूरे परिवार के साथ जान देने पर आमादा है। अफ़सोस ये कि जब रुखसाना के लिए मैंने नरैनी उपजिलाधिकारी से बात करनी चाही तो उन्होंने समाचार पत्र फेंकते हुए कुछ भी कहने से मना कर दिया!
देश के प्रधानमंत्री मोदी जी और मुखिया अखिलेश जी देख लें अपने साम्राज्य की दम तोड़तीं ये तस्वीरें… हो सकता है उनकी नज़र भर से बेजान सूरतों में थोड़ी जान आ जाए।
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं।
Aashish ki report dil ko jhakjhor deti hai, lekin kya sarkaron aur afsaron ki dind khulegi ?
आशीष बहुत मार्मिक रिपोर्ट काश किसी का ज़मीर जागे और बात बने।
आरती जी, शुक्रिया। हमने बहू-बेटी की डायरी के नाम से एक कॉलम शुरू किया है. कभी इसके लिए कुछ लिख कर भेजें।
अपने गांव की रिपोर्ट भी, या आपको वेबसाइट के मुताबिक जो भी समझ पड़े, भेजें।
आशीष सर बेबाक शैली एवं हल्ला बोल रोज पढकर दिल बैठ जाता है कि इंसानी जंगल मेँ इंसानियत क्यो खो गयी
Bohot khub sir yah prayas apka apko manjil tk le kr jaega…