पुष्यमित्र
फरवरी महीना खत्म होने वाला है । राजधानी पटना में पक्ष-विपक्ष के बीच धान खरीद को लेकर रोज तू-तू, मैं-मैं जारी है । यह इतनी सतही और रूटीन हो चली है कि अखबार के किसी कोने में खो जाती है । ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक लक्ष्य का महज 16 फीसदी धान ही पैक्सों द्वारा खरीदा जा सका है । दिसंबर में कटी धान की बालियां जरूर कुछ बड़े किसानों के खलिहान की शोभा बढ़ा रही है, मगर तीन चौथाई से अधिक किसानों ने लोकल और बाहरी व्यापारियों को औने-पौने दर पर अपना सारा धान बेच दिया है । यह दर सरकार द्वारा घोषित दर 1410 से चार सौ रुपये कम है, यानि महज 1010 रुपये । चार साल की सरकारी खरीद की व्यवस्था ने किसानों के चेहरे पर खुशी कम उदासी ज्यादा दी है । यही वजह है कि आज हर जगह किसान कह रहे हैं कि पैक्स द्वारा सरकारी खरीद की व्यवस्था को बंद किया जाये । पुराने दौर को याद करते हुए, वे कहते हैं कि ओपन मार्केट की व्यवस्था ही बेहतर थी, जहां उन्हें 12-13 सौ रुपये का दर मिल जाया करता था । धान की खरीद की इन्हीं विसंगतियों को समझने के लिए इस संवाददाता ने धान का कटोरा कहे जाने वाले इलाके पुराने शाहाबाद के कई गांवों की यात्रा की । हर जगह किसान एक ही परेशानी से जूझ रहे थे, धान का दाम नहीं मिल रहा और एक ही मांग कर रहे थे…पैक्स बंद करो.
हम आरा जिले के सीमावर्ती तरारी प्रखंड की तरफ जा रहे थे. यह प्रखंड पिछले एक साल से धान खरीद को लेकर किसानों के आंदोलन का केंद्र रहा है. पिछले साल यहां के किसानों ने पहले एक दिन के लिए फिर एक हफ्ते के लिए प्रखंड कार्यालय की तालाबंदी कर दी थी । वजह थी कि धान खरीदने के बावजूद पैक्स की ओर से उन्हें धान की कीमत का भुगतान नहीं किया जा रहा था । इस इलाके के 43,868 क्विंटल धान का पैसा आज तक किसानों को नहीं मिला है । इस मसले और धान खरीद के दूसरे मसलों को लेकर किसानों ने इस साल 8 फरवरी को फिर से आंदोलन शुरू कर दिया है ।
मोदी जी ने कहा था…
आंदोलन के नेता शेषनाथ यादव हमारे साथ थे । वे बता रहे थे कि मोदी जी ने 2014 के चुनाव में कहा था, किसानों को उसकी लागत का कम से कम ड्योढ़ा दाम मिलना सुनिश्चित करायेंगे । हमें उम्मीद बंधी थी । अब अगर किसान आयोग की सिफारिशों को देखें तो धान की खेती में प्रति क्विंटल औसतन लागत 1600 रुपये आती है, इस हिसाब से देखा जाये तो धान का समर्थन मूल्य 2400 रुपये होना चाहिये । पिछले साल बोनस के साथ 1660 रुपये था, इस बार उससे भी घट गया है, 1410 रुपये हो गया है । यानी किसान ऑलरेडी हजार रुपये के नुकसान में है. मगर खरीद शुरू हो तब तो । दिसंबर में धान कट गया । और दो महीने बाद अब जाकर कहीं-कहीं पैक्स के खरीद केंद्र खुले हैं । किसान कितना इंतजार करे । 80 फीसदी किसानों ने धान औने-पौने दर पर बेच दिये । किसी को बेटी की शादी करनी थी तो किसी को गेहूं का पटवन करना था । अब किसान पैक्स के खुलने का कब तक इंतजार करता । तो इस तरह देखिये किसानों को लागत से भी छह सौ रुपये कम में धान बेचना पड़ा ।
जेठ का भाव 1050, दुलमचक गांव, सहार प्रखंड, आरा जिला
रास्ते में जगह-जगह गेहूं और सरसों के पौधों के बीच धान के खलिहान नजर आ रहे थे । जैसे धान का सीजन बीत जाने के बाद भी बीत नहीं रहा है. पैक्स की सरकारी खरीद शुरू होने का इंतजार कर रहा है । हमें जाना किसी और रास्ते से था, मगर एक भाजपा नेता की हत्या के विरोध में लोगों ने रास्ता जाम कर दिया था, लिहाजा हमें सहार होकर जाना पड़ा । हमारे मार्गदर्शक और किसान नेता शेषनाथ जी ने चुभती हुई टिप्पणी की, देखिये, जब किसी नेता की हत्या का विरोध करना होता है तो एक मिनट में भीड़ जमा हो जाती है । आंदोलन भी हो जाता है । मगर किसानों के मुद्दे पर आंदोलन बुलाइये तो सौ को बुलाएंगे, दस पहुंचेंगे. पार्टी वाले भी हमारे मुद्दे पर आंदोलन करने से हिचकते हैं । सहार प्रखंड के एक गांव दुलमचक के पास हमने कुछ ट्रैक्टरों और ट्रकों पर धान की बोरियां लदते हुए देखा तो रुक गये । वहां रामजी सिंह और मोहन सिंह नाम के दो किसान थे. कहने लगे, कितना इंतजार करते । धान बेच दिया ।
किस भाव पर? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, जेठ के 1050 के भाव पर । मतलब यह कि पैसा जेठ महीने में मिलेगा और 1050 रुपये मिलेंगे । अगर अभी पैसे चाहिये तो सिर्फ 1010 रुपये का रेट मिलेगा ।
पैक्स खुलने का इंतजार क्यों नहीं किया? अब लगता नहीं है कि पैक्स खुलेगा । रोज आज-कल, आज-कल करता है. ऊ भी हमलोग का धान थोड़े खरीदेगा । कह रहा था कि टारगेट कम आया है । उसमें भी बहुत जटिल नियम है । जैसे 1000 क्विंटल खरीदने का टारगेट है तो पहले 250 क्विंटल खरीदना है, उसका चावल तैयार कराना है, उसको पहुंचाना है । फिर अगले 250 क्विंटल धान को खरीदने का परमिशन मिलेगा । मार्च, 2015 तक का टाइम ही है । हमलोगों का नंबर थोड़े आयेगा । पहले अपने परिवार वालों का खरीदेगा ।
इनकी परेशानी की एक और वजह थी । जब धान कट कर खलिहान आया था, तब ओपन मार्केट में इसका रेट 1080 रुपये प्रति क्विंटल था, मगर जैसे-जैसे टाइम बीतता गया और पैक्स खुलने की संभावना खत्म होती गयी, रेट गिरता गया और अब 1010 पर पहुंच गया है । उन्हें डर था कि रेट कहीं और न गिर जाये । हम उन्हें उनकी परेशानियों के बीच छोड़ कर आगे बढ़ गये । रास्ते में यूपी के नंबर वाले कई ट्रकों पर धान की बोरियां लादी जा रही थीं । शेषनाथ जी ने कहा कि इतना सस्ता धान और कहां मिलेगा. सो यूपी, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और कई और राज्य से व्यापारी पहुंच रहे हैं । दरअसल वहां की राइस मिलों को सरकार को लेवी में चावल देना पड़ता है । वे लोग मिलिंग सिर्फ एक्सपोर्ट क्वालिटी का चावल करते हैं और वह चावल सरकार को देना नहीं चाहते । सो, हमारे गरीब इलाकों से भूसी के भाव सस्ता मंसूरी धान खरीद कर ले जाते हैं ।
बिना तैयार किये धान के बोझे, धनछुआं, सहार, आरा
हम धनछुआं गांव से गुजर रहे थे । तभी एक ऐसा दृष्य देखा जो हैरत में डालने वाला था । सड़क किनारे एक दरवाजे पर धान के सैकड़ों बोझे पड़े हुए थे । इन बोझों में धान की बालियां साफ नजर आ रही थीं । मन में सवाल उठा कि आखिर दो महीने से धान के बोझे ऐसे ही क्यों पड़े हैं. किसान ने इसकी तैयारी क्यों नहीं की । वह किसान बबन रॉय के बोझे थे. कहने लगे, क्या करें. सोच रहे हैं, पैक्स वाला खरीदने का वादा करेंगे तो दौनी करायेंगे । नहीं तो ऐसे ही छोड़ देंगे । दौनी कराने में भी कम पैसा थोड़े ही लगता है । अगर रेट नहीं मिलेगा तो इसमें पैसा खर्च काहे करेंगे । हमने पूछा कि गांव में और किसी का धान ऐसे पड़ा है? कहने लगे पूरे धनछुआं गांव का यही हाल है । इस गांव का नाम धनछुआं इसलिए पड़ा था कि यहां धान खूब होता था । अब तो पैदावार पहले से भी बढ़ गया है, मगर खरीदार ही गायब है ।
वहीं खड़े राम दिनेश शर्मा ने उनकी बातों का समर्थन किया । कहने लगे 20 बीघा जमीन में खेती की थी । अभी तक दौनी नहीं कराये हैं, अब तक 8 से 9 हजार प्रति बीघा खर्चा कर चुके हैं, अब कितना खर्च करें. दाम मिले तब तो । कहने लगे, इस बार तो फैसला कर लिये हैं, अगले साल से चना वगैरह की खेती करेंगे. गांव में डेढ़ हजार किसान हैं, सबका यही हाल है । एक किसान ने तो कहा कि सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर लेंगे, मगर किसानी नहीं करेंगे । कोठी राम का तो और बुरा हाल था. लीज पर खेती करते हैं । लीज पर जमीन लेकर 7-8 बीघा की खेती की है, धान पड़ा है । अभी दूसरों के यहां दौनी कर रहे हैं कि मजदूरी में ही कुछ आमदनी हो जाये । जब मजदूरी मिलना बंद हो जायेगा, तब खेती करेंगे ।
एक साल से आंदोलन कर रहे किसान, तरारी प्रखंड मुख्यालय, आरा
हम जब तरारी जा रहे थे तो रास्ते में एक ऐसा पैक्स केंद्र मिला, जहां राइस मिल भी था । शेषनाथ जी ने बताया कि प्रखंड में तीन पैक्सों के पास मिनी राइस मिल की सुविधा भी है । यह उन्हीं में से एक है । पैक्स वाले धान खरीद कर चावल की कुटाई भी कर लेते हैं, फिर स्टेट फूड कॉरपोरेशन(एसएफसी) को उपलब्ध कराते हैं । मगर ऐसे पैक्स बहुत कम हैं ।
तरारी प्रखंड मुख्यालय जो एक बहुत छोटा सा बाजार था, वहां पचासों किसान हमारा इंतजार कर रहे थे । हमें चाय पीने का ऑफर किया गया और चाय की दुकान पर ही बहस शुरू हो गयी । बड़कागांव के किसान अरविंद बताने लगे, खलिहान में धान 9 बीघा का धान पड़ा है । पैक्स वाले किसानों से प्रति क्विंटल 200 रुपये की मांग कर रहे हैं । हालांकि धान की कीमत कब देंगे, उसका ठिकाना नहीं है । हमने दूसरे पैक्स वालों से भी पूछताछ की, तो वे भी कहने लगे कि खर्चा इतना पड़ जा रहा है कि आपलोगों से पैसा लेना ही पड़ रहा है । ट्रांसपोर्टेशन, लोडिंग-अनलोडिंग के अलावा हर सिगनेचरी अधिकारी को कमीशन देना पड़ता है. किसी को तीन रुपये प्रति क्विंटल तो किसी को दो रुपये । इस पर से वे लोग रिसीविंग देने के लिए भी तैयार नहीं हैं, पहले भी रिसीविंग नहीं देते रहे हैं. 40 किलो की जगह 45 किलो ले लेते हैं । खैर, इस रेट में भी किसान धान दे ही देता, 1010 रुपये के रेट से तो ठीक ही थी. मगर क्या करे, अभी तो पिछले सप्ताह क्रय केंद्र खुला है । अब तो 10 फीसदी किसानों के पास धान बचा हो तो हो. बांकी लोगों ने औने-पौने दर पर धान बेच दिया । बिहार का धान यूपी और हरियाणा चला गया. जो मजबूत किसान हैं, वही बचा कर रखे हैं ।
एक किसान अनिल कुमार जो दूसरों की जमीन लीज पर लेकर खेती करते हैं ने कहा, इस साल मैंने 10 बीघा जमीन लीज पर लेकर धान की खेती की है । 12 हजार रुपये प्रति बीघा की दर से उन्होंने जमीन लीज पर ली है । मगर लगता नहीं है कि उनकी लागत का आधा पैसा भी वसूल हो पायेगा । वे कहते हैं, इसके अलावा लीज पर जमीन लेकर खेती करने वाले किसानों की एक परेशानी यह भी है कि उन्हें किसी तरह का सरकारी अनुदान नहीं मिलता, फसल क्षति से वंचित रहते हैं ।
एक किसान ने बताया कि धान की दर का हाल यह है कि खरीदार तो खरीदते नहीं, मगर किसी दुकान में सामान खरीदना हो तो दुकानदार धान का रेट 7-8 रुपये प्रति किलो लगाता है । मतलब अगर एक किलो चीनी खरीदनी हो तो दुकानदार पांच किलो धान की मांग करता है. लोग क्या करें, जेब में पैसा नहीं है तो यही उपाय अपनाना पड़ता है । दुकानदारों के लिए यह सौदा फायदे का है, इसलिए बड़े व्यापारी भी पैसे के बदले धान लेना ही प्रीफर करते हैं ।
बातचीत के दौरान ही कई किसान उग्र हो गये । एक किसान ने कहा, भोजपुर जिले के सभी पैक्स संचालकों ने मिल कर फैसला किया है कि किसानों को 1200 से अधिक का रेट नहीं देना है. सरकार अलग रेट तय करती है, पैक्स अलग. सरकार कहती है कि किसान को धान की सही कीमत दे रहे हैं, मगर खरीद मूल्य का बड़ा हिस्सा पैक्स संचालक और बिचौलिया हड़प लेता है. इसलिए सबसे बेहतर होगा कि पैक्स को ही बंद कर दिया जाये ।
वहां मौजूद सभी किसानों ने उनकी बात का समर्थन कर दिया और जोर-जोर से कहने लगे, पैक्स मतलब बिचौलिया. सरकार अगर किसानों का हित चाहती है तो पैक्स संस्था को खत्म करे, नहीं तो किसान मारे जायेंगे । बाजार ओपन करना होगा, फ्री सेल होना चाहिये. एक बुजुर्ग किसान चंदा गांव के बैद्यनाथ सिंह ने कहा, जब पैक्स द्वारा खरीद नहीं होती थी तो धान अमूमन 12-13 सौ रुपये क्विंटल बिक ही जाता था । पैक्स की खरीद जब से शुरू हुई है, धान का रेट मार खाने लगा है. अब तो हजार रुपये पर पहुंच गया है । अगर सरकार पैक्स संचालकों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार और अनियमितता को रोक नहीं पा रही है तो इसे बंद कर दे ।
नौउवां गांव के अनिल मिश्रा ने कहा कि पैक्स की वजह से सिर्फ रेट ही नहीं गिर रहा, धान की कीमत भी समय से नहीं मिलती । पिछले साल मैंने पैक्स वाले को धान दिया था, कीमत अभी तक नहीं मिली । इसकी शिकायत लेकर मैं मुख्यमंत्री के जनता दरबार तक जा चुका हूं । पैक्स अध्यक्ष स्वीकार कर रहा है कि उसने मेरा धान लिया है, मगर बीसीओ कह रहे हैं, अनिल मिश्रा ने अपनी इच्छा से अपना धान पैक्स में गिरा दिया ।
तरारी में ऐसे सैकड़ों किसान थे, जिनका मामला अनिल मिश्रा जैसा था. पिछले साल पहले तो उनका नाम पैक्स खरीद की सूची में जोड़ा नहीं गया । विरोध में किसान मजदूर जनाधिकार मंच के बैनर तले किसानों ने प्रखंड कार्यालय की तालाबंदी कर दी । उस वक्त समझौता कराने पहुंचे एसडीओ ने आश्वासन दिया था कि किसानों का नाम सूची में जुड़ जायेगा. कई किसानों का नाम जुड़ा भी, मगर उनका धान तो ले लिया गया, पैसा नहीं मिला । फिर उग्र हो कर किसानों ने आंदोलन छेड़ दिया । एक सप्ताह तक के लिए प्रखंड कार्यालय की तालाबंदी कर दी । फिर अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि पैसा मिल जायेगा । मगर पैसा नहीं मिला, लोग विधानसभा चुनाव में व्यस्त हो गये । इस साल 8 फरवरी से फिर से पिछले साल का बकाया भुगतान करने, धान खरीद की प्रक्रिया तेज करने, लीज वालों का भी धान खरीदने आदि मुद्दों पर आंदोलन शुरू किया है । मगर किसानों के आंदोलन को कोई नोटिस तक नहीं कर रहा ।
खेतों तक आ जाते थे मिलर, सहुका गांव, रामगढ़, कैमूर
पिछले दिनों पूर्व सांसद और बिहार के पूर्व सिंचाई मंत्री राजद नेता जगदानंद सिंह का बयान अखबारों में आया था कि धान की सरकारी खरीद की व्यवस्था लचर है । उनके छोटे भाई भोला सिंह को अपना धान औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा । सरकारी खरीद की व्यवस्था लचर है । उनकी बतायी इस कहानी को समझने यह संवाददाता कैमूर जिले के रामगढ़ प्रखंड स्थित उनके गांव सहुका पहुंचता है । वहां जगदानंद सिंह के दरवाजे पर भोला सिंह समेत कई किसान मिलते हैं ।
भोला सिंह इस बात का समर्थन करते हैं और कहते हैं । हमलोग क्या कर सकते हैं. किसानों को कई तरह का काम होता है । और हमारी पूंजी तो धान ही है । सहुका गांव में किसान भी इस बात से सहमत दिखते हैं कि पैक्स द्वारा खरीद की व्यवस्था शुरू होने के बाद से ही गड़बड़ियां शुरू हुई हैं । वे कहते हैं, पहले मिलर कटनी के वक़्त खेत से ही धान उठा लेते थे । रेट में थोड़ा बहुत हेरफेर होता था, मगर पैसा टाइम पर मिल जाता था । मगर अब तो दिसंबर में कटा धान खरीदने के लिए पैक्स फरवरी में तैयार हुआ है । किसान तब तक धान कहां रखे. फिर पैक्स वाला पूरी कीमत भी नहीं देगा, पैसा भी बाद में देगा ।
भोला सिंह कहता हैं, पैक्स अध्यक्ष की भी मजबूरियां हैं । उसे हर किसी को पैसा देना है । अब तो सीओ एक बार रसीद काटने का पैसा मांगता है, दुबारा पैक्स अध्यक्ष से रसीद सत्यापन का पैसा मांगता है । मतलब जो रसीद उसने काटा उसके लिए दो बार घूस खाता है । सारा बोझ तो किसान पर ही पड़ता है न । फिर पैक्स अध्यक्षों को टारगेट भी कम दिया गया है. वह क्या करे ।
वे कहते हैं, इस चक्कर में राइस मिलर बरबाद हो गये हैं । पहले कैमूर जिले में 300 से अधिक मिलर थे । यहाँ का चावल बाहर जाता था. अब बमुश्किल 100 मिलर बच गये हैं । अब धान के कटोरे में बाहर से चावल आ रहा है । हमारा धान बाहर की कंपनियां खरीद कर ले जा रही हैं, और चावल तैयार कर हमहीं को बेच रही है । व्यवस्था में इतने बिचौलिये पैदा हो गये हैं कि किसान को उसका दाम मिलना मुश्किल हो गया है । पुरानी व्यवस्था ही बेहतर थी ।
तभी थोड़ी देर में पूर्व सांसद जगदानंद सिंह भी पहुंच जाते हैं । वे पैक्स को बंद किये जाने की बात का सख्ती से विरोध करते हैं । वे कहते हैं, पैक्स बंद करना समाधान नहीं हैं । पैक्स भी तो किसानों की ही संस्था है । हाँ, खरीद की मोनोपोली खत्म करने से व्यवस्था सुधर सकती है । हर किसी को धान खरीदने की छूट मिले । चाहे वह एफसीआई हो, बिस्कोमान हो, व्यापर मंडल हो या मिलर हो । प्रतिस्पर्धा होगी तभी बेहतर कीमत किसान को मिल पायेगी । 2005 से पहले जो जंगलराज के नाम से बदनाम सरकार थी, उसमें यही व्यवस्था काम करती थी और किसान हो या मिलर किसी को परेशानी नहीं थी । जब तक वह व्यवस्था रही, सबकुछ ठीक-ठाक रहा । मगर जैसे ही नयी व्यवस्था आयी, किसान तबाह होने लगे ।
हम सौ-सौ क्विंटल वाले सिर्फ 13 किसानों का धान खरीद सकते हैं- पैक्स अध्यक्ष
बड़कागांव पैक्स, तरारी, आरा
आरा जिले के तरारी प्रखंड से कुछ ही दूरी पर स्थित है बड़कागांव पैक्स । इस पैक्स के पास मिनी राइस मिल भी है, जहां किसानों का धान खरीद कर वे धान से चावल भी तैयार कर लेते हैं । जब वहां हम पहुंचते हैं तो देखते हैं कि धान की बोरियां उतर रही हैं. राइस मिल चालू नहीं है । हालांकि वहां एक भी किसान धान बेचने पहुंचा हुआ नजर नहीं आता है । इसी पैक्स के बारे में किसान अरविंद ने कहा था कि यहां महज एक हफ्ते पहले धान खरीद शुरू हुई है, मगर किसका धान खरीदा जा रहा है, इसकी कोई सूची नहीं लगायी गयी है ।
पता चलता है कि पैक्स अध्यक्ष मदन तिवारी वहां मौजूद नहीं हैं । हम उनसे फोन पर बात करते हैं तो वे तमाम आरोपों को गलत बताते हैं और कहते हैं कि एक महीने से धान की खरीद हो रही है । वे कहते हैं कि हमें सिर्फ 19 लाख रुपये का धान खरीदने का अधिकार मिला है । यानी 13 किसानों का 100-100 क्विंटल धान ही खरीद सकते हैं । बांकी लोगों का छूटना तो तय है । हमने आवेदन किया है कि हमारा अधिकार बढ़ाया जाये । वे 12 सौ रुपये दर दिये जाने के किसानों के आरोप का खंडन करते हैं और कहते हैं कि 1410 रुपये से एक पैसा कम किसी को नहीं दिये हैं । वजन में हेरफेर की बात पर वे कहते हैं कि अगर धान में मिट्टी हो तो हम उसका मार्जिन लेते हैं ।
राइस मिलों के बाजार में बाहर से आ रहा चावल, हसन बाजार
शेषनाथ जी बताते हैं कि धान खरीद की गड़बड़ियों में एक महत्वपूर्ण किरदार राइस मिले हैं । पैक्स को धान खरीद कर चावल तैयार करने के लिए राइस मिलों को उपलब्ध कराना है । फिर तैयार चावल को एसएफसी के जरिये एफसीआई को देना है । मगर पिछले दो-तीन सालों में ऐसी गड़बड़ियां हुई हैं कि बड़ी संख्या में मिल मालिक डिफॉल्टर हो गये हैं, कई मिल मालिकों के खिलाफ सरकार ने मुकदमा किया हुआ है । सबके सब फरार हैं । ऐसे में ज्यादातर मिलें बंद पड़ी हैं । अब पैक्स वाले धान खरीद कर चावल तैयार करने दें तो किस मिल को दें । और जब तक पैक्स वाले अपने टारगेट का एक चौथाई चावल तैयार नहीं करेंगे, उन्हें अगले एक चौथाई के खरीद की अनुमति नहीं मिलेगी । इस नियम के पेंच में भी धान की खरीद प्रभावित हो रही है ।
मिल मालिकों का पक्ष जानने हम हसन बाजार पहुंचते हैं । हसन बाजार में पहले काफी राइस मिलें संचालित होती थीं । लोग बताते हैं कि महज कुछ साल पहले तक यहां से चावल उत्तर बिहार के इलाकों में तो जाता ही था, बांग्लादेश भी एक्सपोर्ट किया जाता था । मगर अब हालत यह है कि दूसरे राज्यों से चावल हसन बाजार आ रहा है । यहां की तीन मिलें गंगा, जमुना और सरस्वती काफी मशहूर थीं । हम जब इन तीन मिलों के पास पहुंचते हैं तो पता चलता है कि गंगा और सरस्वती तो बंद पड़ी हैं, जमुना को किसी अन्य व्यक्ति ने खरीद लिया है और उसका नाम बदल कर दुर्गा राइस मिल कर दिया है । मिल के नये मालिक राजकिशोर सिंह ने बताया कि आजकल राइस मिल चलाना आसान काम नहीं है । वे किसी तरह से अपनी इज्जत बचा कर काम कर रहे हैं । ज्यादातर लोग डिफॉल्टर साबित हो जा रहे हैं ।
वे खुद तो कुछ नहीं कहते मगर उनके मिल में मौजूद एक स्थानीय व्यक्ति कहते हैं, दरअसल तय हुआ था कि मिलरों को सिर्फ चावल तैयार करना है । ट्रांसपोर्टेशन का किराया सरकार को देना है. मगर स्थानीय स्तर पर हर जगह अधिकारियों ने परिवहन का किराया नहीं दिया और मिलरों से कहा कि वे तैयार चावल खुद एसएफसी के पास पहुंचाये । इस चक्कर में हील-हुज्जत चलती रही और मिलरों का चावल सड़ गया. यही वजह थी कि ज्यादातर मिलर डिफॉल्टर हो गये । यह सब एसएफसी के बीच में आने की वजह से हुआ । जब तक एफसीआई खरीद करती थी तब तक एक भी मिलर डिफॉल्टर नहीं होता था । मगर जैसे ही एसएफसी को खरीद का पावर मिला, ज्यादातर मिलर डिफॉल्टर हो कर भागे-भागे फिर रहे हैं ।
चार दिन से खड़े हैं सैकड़ों चावल लदे ट्रक, एसएफसी गोदाम, मोहनिया
धान खरीद की कड़ी का आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण केंद्र स्टेट फूड कॉरपोरेशन के मोहनिया स्थित गोदाम के पास पहुंचते हैं । धान खरीद के बाद तैयार चावल एसएफसी के गोदाम में ही जमा होता है । इस बार एफसीआई को सरकारी खरीद से दूर रखा गया है । हम जब गोदाम के पास पहुंचते हैं तो देखते हैं कि इस अनुमंडल स्थित गोदाम के बाहर ट्रकों की लंबी कतार लगी है । उस कतार में कम से कम सौ-डेढ़ सौ ट्रक जरूर होंगे । ट्रक वाले बताते हैं कि हम पिछले तीन-चार दिनों से इसी तरह खड़े हैं । एसएफसी का गोदाम बंद है और अधिकारी गायब हैं. तीन दिन से चावल रिसीव नहीं किया जा रहा है ।
ट्रक वाले बताते हैं कि हो सकता है अगले रोज से चावल रिसीव किया जाना शुरू हो । स्थानीय लोग बताते हैं, अक्सर यहां ट्रकों की लंबी कतार लग जाती है । पूछने पर ट्रक वाले बताते हैं, अगर कहीं भी तय समय से एक दिन अधिक गाड़ी को रहना पड़े तो जिसका माल है उसे 1500 रुपये प्रति दिन की दर से पेनाल्टी देना पड़ता है । इस व्यवस्था को देख कर यह समझा जा सकता है कि सरकारी धान की कुटाई से जुड़े राइस मिलर क्यों डिफॉल्टर होते हैं । सहकारिता मंत्री कहते हैं-
पिछले साल के मुकाबले अधिक हुई है खरीद – आलोक मेहता
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किसान बता रहे हैं कि धान खरीद सुस्त गति से हो रही है ।
यह आरोप गलत है. आंकड़े बताते हैं, हम अभी ही पिछले साल के मुकाबले 50 हजार मीटरिक टन अधिक धान खरीद चुके हैं । अभी खरीद का सीजन 31 मार्च तक जारी रहना है । हमारा लक्ष्य राज्य के सीमांत किसानों का सारा धान अच्छी कीमत देकर खरीदना है ।
- धान खरीद की प्रक्रिया देर से शुरू हुई. इस वजह से ज्यादातर किसानों से अपना धान औने-पौने दर पर बेच दिया.
अक्तूबर-नवंबर के महीने में बिहार के वातावरण में 20 फीसदी से अधिक नमी रहती है । धान सूखा नहीं होता है । इसी वजह से हमने धान खरीद देर से शुरू करायी । जिनका धान अच्छी गुणवत्ता का नहीं होगा, उन्होंने बेचा होगा ।
- पैक्स अध्यक्षों को कम धान खरीदने का टारगेट दिया गया है, इस वजह से कई किसान छूट जाते हैं ।
नयी प्रक्रिया है, इसलिए कई चीजें करने में दिक्कत आ रही है. मगर हमें उम्मीद है, इसे जल्द ठीक कर लिया जायेगा.
- किसान आरोप लगा रहे हैं कि पैक्स अध्यक्ष 12 सौ रुपये से अधिक देने को तैयार नहीं हैं ।
पैक्स तो किसानों की संस्था है । अगर कहीं ऐसा मामला है तो किसानों को विरोध करना चाहिये । उचित प्रमाण के साथ शिकायत की जायेगी तो हम मुकदमा भी करेंगे ।
- लोग कह रहे हैं कि पैक्स की मोनोपोली खत्म हो, हर किसी को धान खरीदने का मौका दिया जाये ।
ऐसा वे लोग कर रहे हैं, जिनको नयी व्यवस्था से परेशानी है । इसमें विपक्ष के लोग भी हैं । हम तो इस कोशिश में हैं कि 90 फीसदी खरीद पैक्सों के जरिये हो । हम साथ ही राइस मिलों और गोदामों को बढ़ाने की कोशिश भी कर रहे हैं ।
धान खरीद का अद्यतन आंकड़ा
बिहार में धान की औसत पैदावार- एक करोड़ मीट्रिक टन
धान खरीद का कुल लक्ष्य- 30 लाख मीट्रिक टन
अब तक हुई खरीद- 5 लाख मीट्रिक टन (कुल लक्ष्य का 16.6 फीसदी)
कब तक होगी धान की खरीद- 31 मार्च, 2016
(ये स्टोरी संक्षिप्त रूप में प्रभात ख़बर में प्रकाशित हो चुकी है)
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।
very Informative….