सूरज के ताप से रौशन कर लें अपना गांव

सूरज के ताप में अनंत संभावनाएं हैं। फोटो स्रोत-MNRE.GOV.IN
सूरज के ताप में अनंत संभावनाएं हैं। फोटो स्रोत-MNRE.GOV.IN

अब समय आ गया है कि पंचायतों की ज़िम्मेदारियां बढ़ाई जाएं। पंचायतें मजबूत होंगी तो देश तेजी से तरक्की करेगा। राज्य और केंद्र सरकार को भी कुछ और करने का मौका मिलेगा। हमारी पंचायतें पूरी तरह से सरकार पर निर्भर हैं। हेंडपंप से लेकर बिजली तक के लिए सरकार की ओर देखना पड़ता है। अभी तक पंचायतों का काम सिर्फ़ गांव की सड़क, नाली बनाने, आवास बांटने तक है। इसके अलावा राशन कार्ड बनाना, मनरेगा के तहत कुछ काम करा लेना, वृद्धा, विधवा पेंशन के पात्र पुरुष, महिलाओं के कागजात सत्यापित करने से ज़्यादा कुछ नहीं। अब समय आ गया है कि कुछ अलग और बेहद ज़रूरी काम करें।

सवाल ये है कि गांव को क्या चाहिए? गांव को आत्मनिर्भर होना होगा तो उसके लिए क्या योजना होनी चाहिए? पंचायतों को समय के साथ कितना और कैसे बदलना होगा? समय के हिसाब से गांव के लोगों की ज़रूरतें क्या हैं? और उन ज़रुरतों को पूरा करने के लिए क्या करना होगा?

गांव की ज़रुरतें

बिजली, पानी, सड़क, अस्पताल, खाद, बीज, स्कूल, पुस्तकालय, शौचालय, पंचायत भवन, शादी घर, इंटरनेट की सुविधा, यातायात के साधन, बाज़ार, खेती किसानी की जानकारी, खेल कूद के लिए मैदान, तालाब इत्यादि। ये ज़रुरतें राज्य और केंद्र सरकार पूरा करती हैं लेकिन अगर पंचायतों को इसमें हिस्सेदार और ज़िम्मेदार बनाया जाए तो सरकार पर निर्भरता कम हो जाएगी। मिसाल के तौर पर बिजली की समस्या को ही लीजिए। यूपी के कई गांवों में सोलर एनर्जी का इस्तेमाल हो रहा है। छोटेछोटे प्लांट के जरिए बिजली पैदा की जा रही है। ग्राम पंचायतों को चाहिए कि वो बड़े प्लांट लगाने की दिशा में काम करे और कम से कम अपने गांव की बिजली ज़रुरतों को पूरा करने की पहल करे।

पंचायतें बिजली बना सकती हैं!

शहर में बिजली की उपलब्धता गांव की तुलना में बहुत ज़्यादा है। शहरों में घंटे दो घंटे के लिए बिजली कटती है लेकिन गांवों में कई दिनों, हफ़्तों या कभीकभी महीनों तक बिजली नहीं आती। ये समस्या इतनी जल्द खत्म होने वाली नहीं है। ग्राम पंचायतें चाहें तो इस समस्या का समाधान निकाल सकती हैं। पंचायतें खुद बिजली बना सकती हैं। सोलर एनर्जी का प्लांट लगाकर बिजली पैदा की जा सकती है। ग्राम प्रधान चाहे तो ये प्रयोग कर सकते हैं। गांव को मिलने वाले फंड का इस्तेमाल बिजली बनाने में किया जा सकता है। पैसे कम पड़े तो पीपीपी मोड के तहत काम किया जा सकता है। भारत सरकार और राज्य सरकार भी सौर ऊर्जा पर जोर दे रही हैं। नाबार्ड भी इस काम में हाथ बंटा रहा है। विश्व बैंक और कई संगठन भी काम कर रहे हैं। गांव के पैसे वाले लोग भी इसमें भागीदार हो सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर 5KV के संयत्र लगाने के लिए पचास वर्ग मीटर छत या खाली जगह की ज़रुरत होती है और इसकी क़ीमत करीब चार लाख रुपए आती है। भारत सरकार इसके लिए तीस फ़ीसदी का अनुदान देती है। एक 5KV का प्लांट एक साल में करीब 7500 यूनिट बिजली पैदा करता है और 25 साल तक लगातार बिजली उत्पादन करता है। करीब 5 साल में इसकी लागत निकल जाती है, हालांकि पूरे गांव के लिए ज़्यादा क्षमता के संयंत्र की ज़रुरत होगी।

अगर पंचायतें एक साथ पूरे गांव के लिए बिजली नहीं बना सकती तो गांव को कई हिस्सों में बांटकर बिजली की व्यवस्था की जा सकती है। गांव में पैसे वाले लोग भी चाहें तो खुद के लिए बिजली की व्यवस्था कर सकते हैं। एक किलोवाट क्षमता के सौर रुफटॉप संयंत्र की क़ीमत करीब एक लाख बीस हज़ार रुपए होती है। भारत सरकार 36 हज़ार रुपए का अनुदान देती है। एक किलोवाट के संयंत्र से रोजाना पांच यूनिट बिजली पैदा होती है। गांव के एक परिवार का काम पांच यूनिट बिजली से चल सकता है। पांच यूनिट बिजली में एक परिवार टीवी, फ्रीज, पंखा, बल्व, कंप्यूटर चला सकता है। सूर्य की रोशनी से उत्पन्न बिजली एक स्वच्छ पर्यावरण अनुकूल और कार्बन उत्सर्जन रहित बिजली है। ये सस्ती भी है और पर्यावरण के लिहाज से मुफीद भी।

गांव में बिजली ना होने से छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होती है। बिजली के अभाव में इंटरनेट, टीवी की सुविधा से भी गांव के लोग वंचित रहते हैं। अस्पतालों में रात के समय इलाज़ में परेशानी आती है। बरसात के मौसम में रात के समय सड़कों पर चलना मुश्किल होता है। इसलिए पंचायतों को चाहिए कि बिजली की व्यवस्था खुद करें ताकि हर गांव रौशन रहे, हर गांव आदर्श बने। ऐसा होगा तो रौशन होगा हिंदुस्तान।

satyendra profile imageसत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं और गांव अब भी उनके दिल में धड़कता है। उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।