एक बार ये लिट्टी खा कर तो देखिए…

अनीश कुमार सिंह

विनोद मुजफ्फरपुर के गांव से आकर दिल्लीवालों को चखा रहे हैं लिट्टी का स्वाद।
विनोद मुजफ्फरपुर के गांव से आकर दिल्लीवालों को चखा रहे हैं लिट्टी का स्वाद।

जब पेट में चूहे दौड़ते हैं न साब तो आदमी ये नहीं सोचता कि कौन सा काम बड़ा है और कौन सा छोटा। बस लग जाता है काम में। जो सामने आया बस उसी से शुरुआत कर दी। और जब काम ज़ायके से जुड़ा हो और पूंजी भी कम लगे तो हम जैसे लोग जो कम पढ़े लिखे हैं वो दूसरा काम क्यों करे, इसी में न लग जाएं।’ ये कहना है विनोद का।

नोएडा सेक्टर बारह-बाईस से सेक्टर 58 के रास्ते बीच में सेक्टर 57 पड़ता है। दोनों तरफ हरियाली। बीच-बीच में लगे लिट्टी चोखा के छोटे-छोटे खोखे। देखने से किसी आम खोखे की तरह। सड़क किनारे। ठेले पर कोयले का एक चूल्हा, चूल्हे की अंगार पर सेंकी जा रही लिट्टियां, और शुद्ध देसी घी में डुबोई लिट्टियों की सौंधी खुशबू, आपको ठिठकने पर मजबूर कर देंगी। ऐसी ही एक रेहड़ी विनोद गुप्ता भी लगाते हैं। हाथों में ऐसा जादू कि एक बार उनके हाथों से बनी लिट्टियां खा लीजिए तो आप वो ज़ायका भूल नहीं पाएंगे। कोयले की हल्की आंच पर बन रही लिट्टी की सौंधी खुशबू उस इलाके की पहचान बन गई है।

बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर से आकर ग़ाज़ियाबाद के खोड़ा कालोनी में बसे विनोद बताते हैं कि पिछले 11 साल से वो इस काम में जुटे हैं। ये उनका पुश्तैनी काम है। मुज़फ़्फ़रपुर में पहले वो अपने बाबूजी का हाथ बंटाते थे। लिट्टी चोखा की हर एक बारीकी को समझा, फिर दिल्ली का रुख़ किया। पूंजी उतनी थी नहीं इसलिए रेहड़ी खरीदी और लगा दिया अपना छोटा सा स्टॉल। तब से लेकर आजतक अपने हाथों के हुनर की कमाई खा रहे हैं। कहते हैं आमदनी अठन्नी और ख़र्चा रुपैया है बाबूजी। पहले परिवार छोटा, अब बड़ा। ऊपर से वक्त बेवक्त मौसम की मार से कभी-कभी तो बोहनी भी नहीं हो पाती। आटा गूंथते-गूंथते उनके हाथ रुक जाते हैं, आसमान की ओर देखते हुए अपनी गर्दन मरोड़ी और फिर जुट गए काम में। चने के सत्तू में अजवाइन और मंगरैल रगड़ते हुए पूछा लिट्टी का टेस्ट कैसा है। वाकई टेस्ट ज़रा हटके था।

WP_20151101_09_32_01_Pro[1]नोएडा के इस इलाके में ऐसे कई खोखे देखने को मिल जाते हैं। और सबका टेस्ट लाजवाब। यहां चांदनी चौक के स्ट्रीट फूड्स की याद आ जाती है। खाते जाओ, खाते जाओ, मन नहीं भरता। चाहे पराठे हों, छोले कुल्चे हों या फिर कुछ और । सब एक से बढ़कर एक। लेकिन जब सेक्टर 57 के किनारे बनने वाली लिट्टियों का स्वाद चखा तो एक कहानी याद आ गई। कहते हैं जब मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने अपने पिता शाहजहां को क़ैद में डाला था तो बस एक अनाज से बने व्यंजन ही उन्हें देने का हुक्म सुनाया। क़ैद में पड़े शाहजहां ने चने को चुना। चूंकि शाहजहां भी जानते थे कि चने से कई तरह के व्यंजन (पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 56 तरह के व्यंजन) बनाए जा सकते थे।

हर उम्र के लोगों के लिए चना बेहद सुपाच्य होता है। लिट्टी के अंदर डाला जाने वाला मसाला भी चने के सत्तू से ही तैयार होता है अगर मिलावट न हो तो। लिट्टी के मसाले में पेट के लिए फ़ायदेमंद अजवाइन और मंगरैल भी होता है, जिससे बनी लिट्टी पेट के लिए बेहद फायदेमंद बन जाती है। चाहे जितना खाओ कोई परेशानी नहीं। यहां लिट्टी की ख़ासियत इसलिए भी बताना ज़रूरी है क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति के व्यंजनों  ने ख़ासकर हमारी युवा पीढ़ी को इस कदर बांधकर रखा है जिससे उन्हें मोटापे जैसी कई बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। बर्गर और पिज्जा के युग में लिट्टी आपकी जेब ढीली नहीं करती और सेहत भी ढीली नहीं करती।


anish k singhअनीश कुमार सिंह। छपरा से आकर दिल्ली में बस गए हैं। इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन से पत्रकारिता के गुर सीखे। प्रभात खबर और प्रथम प्रवक्ता में कई रिपोर्ट प्रकाशित। पिछले एक दशक से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।


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