मुज़फ़्फ़रनगर की ‘भारत मां’

अश्विनी शर्मा

मीणा मां के घर में पूरा 'हिंदुस्तान'
मीणा मां के घर में पूरा ‘हिंदुस्तान’

जिस मुजफ्फरनगर में धर्म के नाम पर मारकाट मची। जब लोग हिंदू-मुस्लिम  के नाम पर मरकट रहे थे, मासूम बच्चों पर जुल्म ढाया गया। उसी मुजफ्फरनगर में एक घर ऐसा था जो जाति-धर्म से दूर मानवता के नाम पर पल रहा था । वहां बस एक ही रिश्ता था और वो था मां-बेटे का। कुछ ऐसी हैं शुक्रताल की मीणा मां ।  जिनकी अपनी संतान नहीं है लेकिन वो पचास से ज्यादा औलादों की मां हैं। इनमें तीस लड़कियां ही हैं। कई विकलांग हैं तो कई मानसिक तौर से कमजोर । किसी को उनके अपनों ने जन्म लेते ही छोड़ दिया तो किसी को मीणा मां ने दूर दराज इलाके में लावारिस हालत में देख अपने सीने से लगा लिया। पांच से सत्ताइस साल तक की उम्र के बच्चे इनके शुक्रताल के अनाथ आश्रम में मिल जाएंगे।

खुद तकलीफ सहकर इस मां ने इनमें से कई को एमए बीएड तक कराया है जो आज स्कूल काॅलेज में शिक्षक तक हैं। ऐसा नहीं है की मीणा मां कोई दूसरी दुनिया से अवतरित हुईं हैं. कभी आम महिला की तरह इनकी शादी हुई थी लेकिन इन्हें गर्भाशय का कैंसर हो जाने से ये मां नहीं बन सकीं। इन्होंने बहुत इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । एक बेटा हुआ भी तो उसने भी दम तोड़ दिया। हारकर पति की सहमती से इन्होंने एक अनाथ बच्चे को भी अपना बनाया लेकिन पांच साल का होते होते वो भी गुजर गया। उसके बाद इस मां ने एक एक कर पचास बच्चों को अपना बना लिया। बच्चों को पालने से लेकर उनकी पढ़ाई लिखाई सबका जिम्मा इन्होंने उठाया। बच्चों का स्वास्थ ठीक रहे इसलिए गाय भैस तक की व्यवस्था इन्होंने अपने यहां की। खुद ही गोबर उठाना और खुद ही दूध भी निकाल कर जब तक बच्चों को ना पिला दें इस मां को नींद नहीं आती है।

मीणा मां से जब पूछा गया कि आपके पास किन किन धर्मों के बच्चे हैं तो नाराज हो गईं। कहने लगीं कि ‘बच्चों का भला क्या धर्म होता है और मैं ये सब देखती भी नहीं मेरे लिए ये सब मेरे बच्चे हैं और मैं तो हर उस बच्चे की मां हूं। जिसे माता पिता बोझ समझते हैं वो सब मेरे बच्चे हैं’. वाकई मीणा मां एक मिसाल हैं ना दिखावा ना आडंबर ये तो बस पुण्य कमाए जा रहीं हैं।

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हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहां लोग स्वार्थ में अंधे दिखते हैं दूसरे के बच्चों को देख नाक मुंह तक सिकोड़ते हैं हैरानी तब और होती है जब किसी महंगी कार के अंदर विदेशी नस्ल का कुत्ता मुंह कार से बाहर निकाल बैठा मिल जाता है लेकिन कार चला रहे इंसान के दिल में इंसान के बच्चों के लिए ही रहम नहीं दिखता है।अगर कोई गरीब बच्चा उसकी कार छू भर ले तो गुस्से से लाल पीला तक होने लगता है।


ashwani sharma

अश्विनी शर्मा। बीएचयू से दर्शनशास्त्र में परास्नातक, संगीत की भी पढ़ाई की। मुंबई से एनिमेशन स्पेशल इफेक्ट्स की पढ़ाई और साल 2000 से मीडिया में सक्रिय। स्टार न्यूज, लाइव इंडिया, टीवी9 महाराष्ट्र के बाद एपीएन चैनल में बतौर सीनियर प्रोड्यूसर कार्यरत।