आशीष सागर दीक्षित
बेदम सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं से कराह रहा है बुंदेलखंड का पूरा क्षेत्र। बिना फार्मेसिस्ट के चल रहे मेडिकल स्टोर, गैर पंजीकृत नर्सिंग होम और झोलाछाप डाक्टरों के आतंक से हलकान है बुंदेलखंड के बाशिंदे। बुंदेलखंड के 6 जिलों बाँदा, महोबा, झाँसी, चित्रकूट, हमीरपुर, जालौन में ( ललितपुर को छोड़कर ) पुराने सरकारी वेबसाइट डाटा के मुताबिक (खाद्य एवं औषधी विभाग उत्तर प्रदेश) 1807 पंजीकृत मेडिकल स्टोर हैं। ये आंकड़ा करीब 5 साल पहले का है। औषधी विभाग के लिपिक धर्मेन्द्र की माने तो आज बाँदा में ही करीब 450 मेडिकल -रिटेल स्टोर और 250 थोक दवा विक्रेता हैं, जिनके लाइसेंस बने हैं। वे कहते हैं कि वेबसाइट का डाटा कई साल से अपडेट नहीं है और प्रदेश के 75 जिलों में 52 जिलों के आंकड़े ही वेबसाइट पर अपलोड है।
आशीष की आंखों देखी- 5
स्थानीय लोग जानते हैं कि बिसंडा के एक झोलाछाप डाक्टर के ख़िलाफ़ सीएमओ की छापेमारी के बाद कितना तमाशा हुआ। कहा तो ये भी जा रहा है कि अधिकारी के ख़िलाफ़ झूठे सच्चे आरोप लगाए गए और थक हारकर स्वास्थ्य अधिकारी ने घुटने टेक दिए। कई बार झोलाछाप डाक्टर गरीबों के लिए काल बन जाते हैं लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाज न मिलने की स्थिति में लोग जाएं भी तो जाएं कहां? इस बीच बाँदा के झोलाछाप डाक्टरों ने संघ बनाकर शिक्षा मित्रों की तरह खुद को ‘ चिकित्सा मित्र ‘ बनाये जाने की मांग उठा दी है।
जिला ड्रग अधिकारी आशुतोष मिश्रा ने एक आरटीआई के जवाब में बतलाया है कि एक फार्मेसिस्ट केवल एक मेडिकल स्टोर पर ही काम कर सकता है। फुटकर,थोक दवा वितरक नर्सिंग होम का संचालन नही कर सकता। बड़ी बात ये है कि साल 2005 से 2015 के बीच दस साल की मियाद में जिला बाँदा ने महज 30,000 रुपये की अवैध दवा ही जब्त की है। गंदा है पर धंधा है की तर्ज पर बुंदेलखंड में दवा का ये कारोबार यूं ही चल रहा है। प्रदेश का युवा फार्मेसिस्ट बेरोजगार घूमता है और मेडिकल माफिया यूनियन बनाकर गरीब जनता की जेब में डाका डालते हैं, जिंदगी से खिलवाड़ करते हैं।
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। इंडिया टुडे के 7 अक्तूबर 2015 के अंक की कवर स्टोरी-आजादी के नए पहरुए में जिन 12 योद्धाओं का जिक्र किया गया है, उनमें एक आशीष सागर दीक्षित भी हैं। पत्रिका ने अवैध खनन के ख़िलाफ़ आशीष सागर की 2009 से चली आ रही जंग को रेखांकित किया है। पूरी स्टोरी इंडिया टुडे के ताजा अंक में पढ़ सकते हैं।