पिछले हफ्ते पटना के विद्यापति भवन सभागार में “गांधी और दलित” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस
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समांतर सिनेमा की राह बनाने वाले फिल्मकार की नज़र
अरविंद दास साल 2010 की गर्मियों के मौसम में हम पुणे स्थित फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआइआइ) में फिल्म एप्रीसिएशन
ना कह के भी, सब कहना है
जब उमड़े ज्वार सवालों केजब शब्दों में कहना हो मुश्किलजब कहना चाहो, अंदर का सबजब लगे कौन समझेगा, ये सबजब
फूल और पत्तियां
पशुपति शर्मा/ आज फूल कर रहे थे बातें गुलाब, अपने रूप पर इतरा रहा था गेंदा, अपने गुणों का बखान
काम पूरा लेंगे, लेकिन दाम अधूरा देंगे…वाह रे हमारी लोकतांत्रिक सरकार !
सुधांशु कुमार वर्षों की सुनवाई, उसके दौरान शिक्षकों के प्रति जजों की पूरी सहानुभूति, शिक्षकों के खून-पसीने की कमाई के
2019 चुनाव का सबसे धमाकेदार इंटरव्यू
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से पत्रकारिता के छात्रों और नये-पुराने तमाम पत्रकारों को NDTV पर प्रणय रॉय का
शिक्षा के प्रति ‘सुशासन’ की पोल खोलता ‘सिमुलतला’
पुष्यमित्र जमुई गया तो सिमुलतला आवासीय विद्यालय को देखने के मोह से खुद को बचा नहीं सका। जब बिहार में
कैमूर के 108 गांव खोल रहे ‘विकास’ और ‘सुशासन’ की पोल
पुष्यमित्र नल से बूंद-बूंद पानी टपक रहा है। पानी पहले एक प्लास्टिक के गैलन के ढक्कन में गिर कर जमा
महाराष्ट्र का एक ऐसा गांव जहां घर की तरह स्कूल भी हैं स्वच्छता की मिसाल
शिरीष खरे बीजापुर से आगे महाराष्ट्र के पश्चिमी छोर की ओर बढ़ा तो एक अलग ही नजारा दिखा । जितनी
प्रजातंत्र में लहलहाता राजतंत्र का ‘रक्तबीज’
संजय पंकज सब जानते हैं कि आज की राजनीति नेताओं के लिए समाज-सेवा से ज्यादा सत्ता-सुख की भोग-चाहना है। वे