
जय सिंह
अब बाबा साहेब नहीं हैं, बाबा साहेब का संदेश ही हम लोगों के पास है। बाबा साहेब की असली जयन्ती मनाने का मतलब है कि लोगों को शिक्षित करना, उन्हें संगठित करने और संघर्ष करने के लिए तैयार करना। सम्मान, स्वाभिमान, स्वतंत्र चिंतन और सम्मान सहित जीवन जीने के लिए बुद्ध का धर्म एक आन्दोलन है। साथ ही अशिक्षा, अंधविश्वास, ढोंग, पाखण्ड और मानव प्रकृति की बाधक बातों को समाप्त करने के लिए बुद्ध का धर्म निसंदेह ही एक क्रान्ति की मशाल है।
कर सको तो अपनी वाणी में असर पैदा करो।
रूख हवाओं का बदल दो, वो असर पैदा करो
चाहते हो सम्मान से जीना, इस देश में तो
साथियों हर घर में एक भीम पैदा करो।।
भारतीय संविधान के निर्माता, लोकतंत्र के संरक्षक, मानवीय स्वतंत्रता के हिमायती भारत में सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, इतिहास के महानतम योद्धा थे भीमराव आंबेडकर। उनका सारा जीवन सामाजिक, धार्मिक, राजनीति के हर मोर्चे पर लड़ते हुए बीता। ऐसे महान अलौकिक व्यक्तित्व परम पूज्य बोधिसत्व भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर का जन्मदिन मनाया जाना, अत्यन्त ही गौरव का विषय है। मेरे जैसे कितने ही लोग हैं, जिन्होंने बाबा साहेब को भौतिक रूप में नहीं देखा। पर उनका अनुआयी होने मात्र से ही हम अपने को धन्य मानते हैं, इसलिए बाबा साहेब की जयन्ती हम सबके लिए अत्यन्त प्रेरणा का श्रोत होती है।
समाज के दबे-कुचलों के बीच पैदा हुए। अछूत के रूप में जीवन की शुरुआत की। उन्हें कुष्ठ रोगी की तरह बहिष्कृत किया गया। युवावस्था में समाज से धिक्कारा गया। सैलूनों में, उपहार गृहों में, मंदिरों में, सरकारी व सार्वजनिक स्थानों, हर जगह अपमानित होना पड़ा। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में दाना-पानी के अभाव में अध्ययन किया। आंबेडकर ने इन सारी समस्याओं से लड़ते-लड़ते जीवन की सीढ़ियां चढीं। राजनीतिक उत्तराधिकार का सहारा नहीं था, फिर भी विपत्तियों की परवाह न करते हुए देश के प्रमुख प्रथम श्रेणी के लोगों में कृति स्थापित की। देश के सभी विकास योजनाओं में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। मतदान विचार विनमय समिति, संविधान समिति में कार्य किया। केन्द्र सरकार में श्रम मंत्री रहे, स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री बने। विशेषता यह है कि जिस देश में उनके बचपन को पैरों तले रौदा गया, उसी देश में उन्होंने सार्वजनिक जीवन का सर्वोच्च सम्मान हासिल किया। यह भारत का ही नहीं बल्कि आधुनिक विश्व का महानतम चमत्कार है।
महान बौद्ध विद्वान महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने कहा है कि “यदि कोर्इ व्यक्ति अमीर घराने में पैदा होकर महान बन जाये तो इसमें कोर्इ आश्चर्य की बात नहीं, लेकिन यदि कोर्इ गरीब घर में पैदा होकर महान बनता है तो यह आश्चर्य की ही बात है।” बाबा साहेब सदैव से शोषित और पीड़ित, उपेक्षित समाज के उद्धारक और संपूर्ण मानवता के मार्गदर्शक बन गये। तथागत भगवान बुद्ध के अहिंसा मूलक सिद्धांतों का पालन करते हुए उन्होंने मानवीय गुणों जैसे समता, स्वतंत्रता, न्याय एवं बन्धुत्व की स्थापना के लिए जीवनपर्यन्त अथक प्रयास किया। उन्होंने भारतीय गणतंत्र को ऐसे अद्वितीय संविधान प्रदान किया। उसे कालानतर में स्वतंत्र होने वाले अधिकांश देशों ने अपनाया। बाबा साहेब ने अपना जीवन अत्यन्त संकट में बीताया। शिक्षा प्राप्त करने में उन्हें अनेक कठिनार्इयां, अड़चने, यातनायें और अपमान सहने पड़े। यह सब सहन करते हुए भी युद्ध के वीर सेनानी की तरह निरन्तर आगे बढ़ते ही गये। शिक्षा जगत की उच्चतम डिग्रियां और उपाधियां अर्जित की। अभी तक इस संसार में ऐसे महान व्यक्ति जो ज्ञान के शिखर पर पहुंचा है, तो याद रखिये वह बाबा साहेब अम्बेडकर ही हैं।
भारत में शूद्रों और अछूतों, महिलाओं की दयनीय दशा को देखकर वे हर समय दुखी रहते थे। नारी उद्धार के लिए उन्होंने जो कार्य किया है, उनके प्रति देश की आधी आबादी सदैव ऋणी रहेगी। नारी समाज को शूद्रों की भांति शिक्षा से वंचित रखा गया। पति की मृत्यु के बाद उनका जीवित रहना भी अभिशाप था। सती प्रथा को राजाराम मोहन राय ने बंद करवाने की कोशिश की, परन्तु इनके लिए शिक्षा, सम्मान और अधिकार के बंद दरवाजे को बाबा साहेब ने ही खोले। बाबा साहेब नारी शिक्षा पर विशेष बल देते थे। उनका मानना था कि किसी भी व्यक्ति के शिक्षित होने का मतलब केवल उस व्यकित का शिक्षित होना है लेकिन एक स्त्री के शिक्षित होने का मतलब पूरे परिवार का शिक्षित होना है। जिस नारी समाज को पैर की जूती ओर प्रताड़ना की अधिकारी कहकर अपमानित किया गया, उन्हीं के संबंध में ‘हिन्दू नारी का उत्थान और पतन’ नामक ग्रंथ लिखकर बाबा साहेब ने भारतीय नारी समाज की वास्तविकता को सभी के सामने प्रस्तुत किया। इतना ही नहीं, नारी समाज के उद्धार के लिए हिन्दू कोर्ट बिल भी तैयार किया और भारतीय संविधान में पुरूषों के समान अनेक अधिकार प्रदान किये।
चाहे वो महाड़ के चावरदार तालाब का पानी पीने का आन्दोलन हो, चाहे नासिक के कालाराम मंदिर के रथयात्रा में सम्मिलित होने का आन्दोलन हो, चाहे भूमि अपनाओ आन्दोलन हो, चाहे गोलमेज सम्मेलन हो, बाबा साहेब सदैव राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, और सामाजिक मूल्यों की स्थापना के लिए भीम गर्जना करते रहे। वे समाज को बेच कर स्वार्थ सिद्धि करने वाले नेता नहीं थे। बाबा साहेब ने दूसरों के द्वार पर याचक बनकर कभी कुछ नहीं मांगा। बाबा साहेब के महान आदर्श और लक्ष्यों के लिए निष्ठापूर्वक प्रयास और लगन के सामने विरोधियों को झुकना पड़ा। यही बाबा साहेब के व्यकितत्व की सबसे बड़ी विशेषता थी।
यदि कभी किसी ने उनके अनुयायियों की कीमत लगाने की कोशिश की तो बाबा साहेब ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिए। वे कहा करते थे कि “मैं अपने लोगों का संरक्षक हूं, उनका विक्रेता नहीं।” यही कारण है कि भारत की सैकड़ों जातियों ने अपना मसीहा और मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार किया। आज उनका नाम एकता का प्रतीक बन चुका है। बाबा साहेब कहते थे , जातीय और वर्गीय व्यवस्थाओं ने केवल शूद्रों एवं अछूतों का ही नहीं बल्कि इस देश की एकता और अखण्डता को भारी नुकसान पहुंचाया है। इसी वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के कारण देश कर्इ बार गुलामी की जंजीरों में जकड़ गया। बाबा साहेब ने अपने लोगों को चेतावनी देते हुए कहा था कि ऐसे लोगों के साथ संगत मत करो जो यह तो शोर मचाते हैं कि र्इष्वर एक है और सर्वव्यापी है, लेकिन मनुष्यों को पशुओं से बदतर समझते हैं। ऐसे लोग पाखण्डी हैं। ऐसे लोगों से मेलजोल मत रखना जो कीडे़-मकोड़ों के बिलों पर मिष्ठान बिखेरते है लेकिन मनुष्य को दाना-पानी से मना करके भूखा-प्यासा मार डालते हैं।
जय सिंह, आईआईएस, विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार जयपुर । डॉ भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद कई साल तक पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। मोबाइल नंबर-9450437630, ई मेल – iisjaisingh@gmail.com ।
behatarin lekh baba seb ke dwara hi hume sabkuch mil raha hai
badalaw ab ho rahi hai charo oor