…और वह तीसरी बार भाग गई!

रजिया अंसारी

बिहार के सुप्रसिद्ध चित्रकार राजेंद्र प्रसाद गुप्ता की कृति।
बिहार के सुप्रसिद्ध चित्रकार राजेंद्र प्रसाद गुप्ता की कृति।

कहानी नहीं हकीकत है।  सुनने मे आया कि वह तीसरी बार ससुराल से भागी है। अपने तीनों बच्चों को छोड़कर। जब वह पहली बार भागी थी, उस समय मैं अपने गांव में ही थी। वह मेरे गांव की ही एक बहू है। सारे लोग उसे बदचलन, बदतमीज और एक औरत के लिए जितनी भी गालियां बनाई गई है, उसे दे रहे थे। मैं भी सोच रही थी कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। बात बहुत पुरानी है, फिर उसके बारे में मैने कोई ख़बर नहीं ली।

पिछले दिनों फिर सुनने मे आया कि वह ससुराल से भाग गई। बीच में भी एक बार भागी थी जिसकी जानकारी मुझे नहीं है। इस बार मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि वह ससुराल से क्यों भाग जाती है? कहीं उसका किसी से प्रेम प्रसंग तो नहीं? मैने पूरी घटना की तफतीश की। गांव वालों की राय उसके बारे में बदल गई है। जो उसे गालियां दे रहे थे वह कह रहे हैं कि अच्छा हुआ भाग गई बेचारी, उसकी जिन्दगी तो जानवरों से भी बदतर थी।

ये कहानी उस अभागी लड़की की है, जो 10 साल पहले मेरे गांव में बहू बनकर आई थी। लोग बताते हैं कि वह बहुत सीधी सादी थी, लेकिन उसके ससुराल वाले और उसके पति उसका ख्याल नहीं रखते। उसके ससुराल वाले खेतों में काम करते थे। उस नई नवेली बहू को भी काम पर लगा दिया। बोले, ‘बैठ कर खाने आई हो क्या’ बेचारी मर-मर कर घर और बाहर खेतों का काम करती लेकिन कभी किसी से कोई शिकायत नहीं करती। उसे कभी पति का प्यार नहीं मिला था, न ही सास ससुर, ननद, देवर का स्नेह। खाना भी नाप-तौल कर दिया जाता था।

उस अभागी की किस्मत ऐसी थी कि उसका मायका भी नहीं था। मायके के नाम पर एक भाई था, जो शादी के बाद उसे भूल गया था। गांव वाले बता रहे थे कि शुरू-शुरू में उसे मानसिक प्रताड़ना दी गई। उसे खाना नहीं दिया जाता था और बात-बात पर ताना दिया जाता था कि कुछ लाई भी नहीं और किसी काम की भी नहीं। एक दिन मौका पाकर वह भाग गई, अपने घर गई तो भाई ने भी भगा दिया। वह अपने एक दूर के रिश्तेदार के यहां गई, लेकिन ससुराल वाले उसे ढूंढ लाए। घर लाकर उसे बहुत मारा, तबसे वह रोज मार खाती। सही से खाना नहीं मिलता, दिन-रात काम करती फिर भी आए दिन मार खाती।

एक बार उसके ससुर ने उसका हाथ पैर बांधकर कुदाल के बेंत से उसे बहुत मारा। जब वह मारते-मारते थक गया तो उसके पति ने मारना शुरू किया। वह बेहोश हो गई। एक दिन मौका पाकर वह फिर भाग गई लेकिन उसकी किस्मत फूटी थी, फिर पकड़ी गई। खाना न मिलने से उसका शरीर टूट चुका था और मार खा-खा कर उसकी आत्मा कठोर हो गई थी। इस बार वह अपने तीन बच्चों को छोड़कर भागी है। उन बच्चों से उसे प्रेम नही रहा होगा, और होता भी कैसे! उसे कभी प्रेम मिला ही नहीं। वह बच्चे भी न जाने कैसे और किस स्थिति में पैदा हुए होंगे।

आज के समय में स्त्रियों की एक कड़वी सच्चाई यह भी है। यह किसी एक लड़की की कहानी नहीं है, ऐसे ही न जाने कितनी लड़कियां शादी के बाद दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। कुछ दम तोड़ देती हैं, कुछ को मायके का सहारा मिल जाता है और कुछ इस लड़की की तरह भाग जाती होंगी।

crime-against-womenअब बस मुझे यही ख्याल आ रहा है कि क्या भागने के बाद उसकी जिन्दगी आसान हो गई होगी? क्या इस समाज में उसे कहीं इज़्ज़त मिलेगी, जहां लड़कियों के भागने के पीछे बस एक ही मकसद समझा जाता है। या फिर उसे इस नरकीय ससुराल में वापस आना पड़ेगा। ऐसी लड़कियों का ठिकाना कहां है? और वह लोग जो अपनी बहुओं पर ऐसे अत्याचार करते हैं उनकी मानवीय संवेदना कहां गुम हो जाती है। वह पति जो शादी के बाद उसके सुख-दुख का साथी होता है उसी पर इतना जुल्म क्यों करता है? ऐसी कमजोर लड़कियों को न्याय कैसे मिले? इनकी कौन सुने? सवाल तो बहुत हैं पर  जवाब नहीं मिल पाता। घरेलू हिंसा तथा दहेज उत्पीड़न के मामले में शिकायत करने के लिए कानूनी अधिनियम बनाए गये हैं। लेकिन इस अधिनियम का प्रयोग वही कर पाती हैं जो आर्थिक रूप से मजबूत या पढ़ी लिखी होती हैं। ऐसी कमजोर महिलाओं के साथ न्याय कैसे हो?

क्या आत्म हत्या करना और घर से भाग जाना ही इनके लिए विकल्प है। एक तरीका है जिससे महिलाओं पर जुल्म कम हो सकता है। लोगों को जागरूक करना होगा, मानवीय संवेदना का संचार करना होगा जिससे कि किसी महिला पर हाथ उठाने से पहले लोगों के हाथ कांपे। पर क्या ऐसा हो सकता है?


razia ansariरजिया अंसारी। गोरखपुर में एक साप्ताहिक समाचारपत्र ‘आयाम स्वरूप’ से जुड़ी हैं।


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