जब सेल्युकस को पर्दे के पीछे गिफ्ट में मिला पार्कर पेन

ब्रह्मानंद ठाकुर बात 1965 की है। मैंने गांव के बेसिक स्कूल से सातवीं कक्षा पास कर उसी कैम्पस के सर्वोदय

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वर्ल्ड थियेटर डे- हम सब के दिल में बसा है ‘नटकिया’

पशुपति शर्मा वर्ल्ड थियेटर डे। रंगमंच के उत्सव का एक दिन। वो उत्सवधर्मिता जो रंगकर्म में स्वत: अंतर्निहित है। यकीन

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प्रभात गांगुली ने क्यों छोड़ा ग्वालियर, ये किस्सा फिर कभी

अनिल तिवारी बीआईसी के मुख्य नाट्य निर्देशक थे सत्य पाल सोलंकी और श्री के सी वर्मा। सोलंकीजी एक नाट्य संस्था

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वीरान बिड़ला नगर में बिखरी ‘बुद्धू’ की कुछ यादें

अनिल तिवारी ग्वालियर के बिड़ला नगर में दिन बीत रहे थे। दादागीरी के साथ मेरी जिन्दगी में रंगमंच की अहमियत

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ग्वालियर के ‘गुंडे’ ने किसी रंगकर्मी से बदसलूकी नहीं की

अनिल तिवारी करीब 1962 के दौरान पिता जी का तबादला ग्वालियर हो गया और मेरा दाखिला उस समय के सर्वश्रेष्ठ

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राजधानी दिल्ली में ‘अलग मुलक का बाशिंदा’

पशुपति शर्मा राजकमल नायक। रंगमंच का ऐसा साधक, जिसने मंच पर तो एक बड़ी दुनिया रची लेकिन सुर्खियों के ताम-झाम

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