क्या ऐसे ही खुशहाल होगा देश का अन्नदाता ?

ब्रह्मानंद ठाकुर “बाधाएं आती हैं आएं, घिरे प्रलय की घोर घटाएं पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं

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