‘मानवता के लिए वैश्वीकरण सबसे बड़ा ख़तरा’

‘मानवता के लिए वैश्वीकरण सबसे बड़ा ख़तरा’

वैश्वीकरण के आर्थिक परिणामों और तकनीकी परिवर्तन के प्रभाव को सभी गहराई से समझते हैं। कारखानों के स्वसंचालन ने पारम्परिक उत्पादन से जुड़े रोजगार को पहले ही खत्म कर दिया है, और कृत्रिम इन्टेलिजेंस के उदय से रोजगार का यह विनाश मध्यम वर्ग को बुरी तरह से प्रभावित करेगा और सिर्फ विशिष्ट मानवीय क्षमता की मांग करने वाले रोजगार ही रह जाएंगे। यह दुनिया भर में पहले से ही व्याप्त बढ़ती आर्थिक असमानता को तेज करेगी। इन्टरनेट और दूसरी विभिन्न सेवाएं बहुत कम लोगों को रोजगार देते हुए बहुत अधिक मुनाफा कमाने की क्षमता देती है। यह अपरिहार्य है, यह एक किस्र्म की प्रगति है, लेकिन यह सामाजिक रूप से विनाशकारी भी है। ये बात अपने निधन से 2 साल पहले दुनिया से मशहूर वैज्ञानिक स्टीफंस हाकिंग्स ने यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के बाहर होने के फैसले के वक्त कही थी, जिसे 1 दिसम्बर 2016 को द गार्जियन अखबार ने प्रकाशित किया था । जिसे बाद में हिंदी में ब्रेक थ्रू पत्रिका ने भी छापा।

स्टीफंस हाकिंग्स का इसी साल जनवरी में निधन हो गया । 2016 के अपने आलेख में ब्लोक होल पर रिसर्च करने वाले स्टीफंस आगे लिखते हैं- इस समस्या को हमें वैश्विक आर्थिक मंदी के समक्ष रख कर देखना होगा, जिसने लोगों के सामने यह स्पष्ट कर दिया है कि आर्थिक क्षेत्र में काम कर रहे चंद व्यक्ति अकूत लाभ पा सकते हैं और बांकी बचे हमलोग उसकी सफलता के लिए बली पर चढ़ाए जा सकते हैं, जिनका काम है उनके अंतहीन भूख से बने अंतहीन बिलों को चुकाना। इस प्रकार कुल मिला कर देखें तो हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहां आर्थिक असमानता घटने की जगह बढ़ रही है, जहां बहुत सारे लोगों का जीवनस्तर ही नहीं,बल्कि उनकी जीविका कमाने की क्षमता खत्म हो रही है।

फाइल फोटो- स्टीफन्स हाकिंग्स

एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के वैश्विक प्रचार प्रसार का एक परिणाम यह है कि इस प्रकार की वीभत्स असमानताएं पहले से अधिक दृष्टिगोचर हो रही है। मेरे अनुसार संचार और संवाद करने की तकनीक का प्रयोग करने की क्षमता एक सकारात्मक मुक्तिदायी अनुभव है। इसके बिना मैं इतने वर्षों तक काम जारी नहीं रख पाता। पर इसका मतलब यह भी है कि विश्व के सबसे सम्पन्न हिस्सो में धनी लोगों का जीवन मोबाईल का उपयोग करने वाले गरीबों के सामने पूर्ण नग्नता के साथ दृष्टिगोचर है। अफ्रीका के उप – सहारा में जहां स्वच्छ पानी की सुविधा प्राप्त लोगों से अधिक लोग ऐसे हैं जिनके पास टेलिफोन है। इसका अर्थ यह होगा कि हमारे ग्रह पर जहां बेतहाशा जनसंख्यावृद्धि हो रही है, असमानता के दृश्यों के नजारे से कोई बच नहीं पाएगा। इसके आगामी परिणामों से स्पष्ट रूप से परिकल्पना की जा सकती है । गांव के गरीब शहरों और कस्बों का रुख करेंगे और फिर यह पता चलने पर कि इनस्टाग्राम का आकर्षक ‘ निर्माण ‘ वहां उपलब्ध नही है, वह उसे समुंदर पार दूसरे देशों मे ढूढेंगे और बेहतर जीवन की खोज में विदेशों में जा बसे श्रमिकों की संख्या में जुडते जाएंगे। मेरे लिए वास्तव में इसका संबंधित पहलू यह है कि अब हमारे इतिहास में किसी भी समय से अधिक हमारी प्रजाति को एक साथ काम करने की जरूरत है।हम भयावह पर्यावरण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जहां जलवायु परिवर्तन, खाद्य उत्पादन संकट, जनसंख्या वृद्धि, अन्य प्रजातियों की विलुप्ति, महामारियां, महासागरों का अम्लीकरण आदि बढ़ रहा है।

यह सच है कि हम मानवता के विकास के क्रम में सबसे खतरनाक क्षण में हैं। अब हमारे पास इस ग्रह को नष्ट करने की तकनीक है, जिस पर हम रह रहे हैं। लेकिन अभी तक हमने इससे बचाने की क्षमता विकसित नहीं की है। शायद कुछ सौ वर्षों में हम सितारों के बीच मानव उपनिवेशों की स्थापना करेंगे, लेकिन अभी हमारे पास केवल एक ग्रह है, और हमें इसे बचाने के लिए एक साथ काम करने की आवश्यकता है। ऐसा करने के लिए, हमे देशों के बीच बाधाएं खड़ी करने की जगह देश के अंदर और बाहर खड़ी की गई बाधाओं को तोड़ने की आवश्यकता है। अगर हमें ऐसा करने का मौका मिलता है तो दुनिया के नेताओं को यह स्वीकार करने की जरूरत है कि वे इसमें असफल रहे हैं और तमाम विषयों में नाकाम रहे हैं। संसाधनों के कुछ लोगों के हाथों में तेजी से केन्द्रित होने के साथ, हमें वर्तमान से कहीं अधिक साझा करना सीखना होगा।
न केवल नौकरियां, बल्कि पूरे उद्योग गायब हो रहे हैं, हमें लोगों को एक नई दुनिया के लिए प्रशिक्षित करने में मदद करनी चाहिए और ऐसा करने के दौरान इन्हें आर्थिक रूप से समर्थन देना चाहिए। यदि अर्थव्यवस्थाएं और विभिन्न समूह प्रवासन या माइग्रेशन के मौजुदा स्तरों का सामना नहीं कर पाते है, तो हमे वैश्विक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए और कुछ करना चाहिए, क्योंकि यह एकमात्र तरीका है जिससे लाखों प्रवासियों को अपने देश में ही अपने भविष्य की तलाश करने के लिए राजी किया जा सकेगा।   ब्रेकध्रू पत्रिका के मई 2018 अंक से साभार।