किसानों का संकटमोचक ‘रहट’ कहां गुम हो गया?

फोटो- शिवनारायण सिंह
फोटो- शिवनारायण सिंह । कुएं से पानी निकालने की प्रचीन विधि ‘रहट’

अरुण यादव

रहट नाम से क्या आपके जेहन में कोई तस्वीर खिंचती है। क्या आप रहट के बारे में जानते हैं ? शायद आज की पीढ़ी के लिए रहट या फिर मोट को देखना तो दूर ये शब्द ही अजनबी से लग रहे होंगे। शहर क्या गांव के बच्चों के लिए भी ये सभी चीजें अनजान सी हो गई हैं जबकि ये कभी गांव की लाइफ लाइन हुआ करते थे। हममें से जिन लोगों का बचपन गांव में बीता है, खासकर जिनकी पैदाइश 80 के दशक में हुई होगी वो शायद रहट और मोट के बारे में थोड़ा बहुत जानते हों। फिर भी सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि हमारी पीढ़ी सिंचाई के इन साधनों को शायद ही देख पाई होगी। रहट प्राचीन काल में सिंचाई का एक ऐसा साधन था जो कुएं से पानी निकालने का काम करता था । रहट की ये दुर्लभ तस्वीर हमारे साथी आशीष सागर के फेसबुस वॉल पर मिलीं, जिसे भारतीय किसान यूनियन से जुड़े शिव नारायण ने पोस्ट किया था। इसे देखने के बाद लगा कि इसके बारे में आज की पीढ़ी से चर्चा करनी चाहिए।

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साभार- फ्लिकर डॉट कॉम

बचपन में जब गर्मी की छुट्टियां होती, दूसरे बच्चों की तरह मैं भी नाना-नानी के घर जाया करता था। बच्चों के साथ खूब मस्तियां करता, एक दिन खेलते-खेलते हम घर से थोड़ी दूर एक बगीचे में पहुंचे जिसके पास खेत में एक बैल कुएं के चारों तरफ चक्कर काट रहा था। बैल से खेतों की जुताई तो देखी थी लेकिन यूं कुएं के चारों तरफ बैल को घूमते पहली बार देखा। लिहाजा, बिना देर किए मैं कुएं के पास पहुंच गया और देखा वे बैल कुएं से पानी निकाल रहे हैं। एक नाना जी बैल के पीछे-पीछे चलते और कुएं से पानी बाहर निकलता। पूछने पर पता चला कि ये रहट है। जिसके जरिए खेतों की सिंचाई की जाती है। अगर इसे पुराने जमाने का पंपिंगसेट कहें तो गलत नहीं होगा।

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फोटो- शिवनारायण सिंह

रहट को तैयार करने के लिए कुएं के ऊपरी हिस्से में बड़ा सा व्हिल लगा होता, जिसपर चेननुमा रस्सी या वॉयर रखा रहता जिसकी लंबाई कुएं के निचले हिस्से तक रहती। इस चेननुमा रस्सी पर सैकड़ों डिब्बे पिरोये जाते, जिसका एक सिरा पूरी तरह खुला रहता और दूसरा सिरा पैक रहता, जब ये व्हिल घुमाई जाती ये डिब्बे धीरे-धीरे कुएं में पानी तल तक जाते और उसमें पानी भर जाता और जैसे जैसे व्हिल घूमता पानी से भरे डिब्बे ऊपर आते और टीन या लकड़ी के बने एक नालीनुमा हिस्से पर गिरते जो कुएं के ऊपरी हिस्से पर रखा होता था। बैल के जरिए इसे चलाया जाता इसके लिए व्हिल को लोहे की मोटी रॉड (सॉफ्टिन) से जोड़ा जाता, जो 8-10 फीट लंबी होती और कुएं से दूर एक और व्हिल से जुड़ी होती, जिसके चारों ओर कांटेदार कटिंग बनी रहती। ठीक वैसी ही जैसी आजकल गाड़ियों के इंजन में बनी होती है। इस व्हिल को घुमाने के लिए एक और रॉड लगाया जाता जिसके ऊपरी हिस्से पर एक गोलाकार लोहे का सामान रखा जाता जिसमें दोनों तरफ होल होता था। इस होल में मोटी और मजबूत लंबी लकड़ी लगाई जाती जिस से बैलों को जोड़ दिया जाता। बैल इस लकड़ी को लेकर गोल-गोल घूमता और एक दूसरे से जुड़ी व्हिल चलने लगती और कुएं में रस्सी के सहारे बंधे डिब्बे पानी भरकर ऊपर आते जिससे किसान अपने खेतों की सिंचाई करता।

साभार- इंडिया डिस्कवर
साभार- इंडिया डिस्कवर

इस तकनीक में ना तो बिजली खर्च होती और ना ही डीजल या पेट्रोल। ये तकनीक पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल थी। ये अलग बात है कि इसमें वक्त ज्यादा लगता था और पानी कम निकलता था लेकिन प्राचीनकाल से चली आ रही ये तकनीकी 90 का दशक आते-आते विलुप्त सी हो गई और उसकी जगह डीजल इंजन और इलेक्ट्रिक मशीनों ने ले ली। दूसरे शब्दों में कहें तो आज समरसेबल के जरिए पानी बटन दबाते ही निकलने लगता है और हमें आपको पता तक नहीं चलता। जबकि रहट कई सदियों तक हिंदुस्तान ही नहीं कई दूसरे देशों में पानी निकालने का साधन हुआ करती थी । इतिहास के जानकारों के मुताबिक ये तकनीकी 14वीं से 15वीं सदी के बीच भारत आई होगी, क्योंकि बाबर जब भारत आया तो उसने रहट का जिक्र किया था । जबकि 17वीं शताब्दी में राजस्थान के आमेर के किले में पांच मंजिल ऊपर पानी चढ़ाने के लिए रहट प्रणाली का जिक्र मिलता है। जिसे महल में काम करने वाले सेवक खींचा करते थे।

प्राचीनकाल में काफी नीचे से ऊपर पानी चढ़ाने काम करती इस रहट प्रणाली ने कई सदियों तक भारत में किसानों के लिए सिंचाई का साधन मुहैया कराए। घटते जलस्तर और सूखे की वजह से कुएं में पानी काफी नीचे चला गया और रहट प्रणाली दम तोड़ती गई।  जैसे-जैसे तकनीकी का विकास हुआ वैसे-वैसे इसे भुला दिया गया नतीजा ये हुआ कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने वाली तकनीकी की जगह पर्यावरण का दोहन करने वाली टेक्नोनॉजी ने ले लिया।


 अरुण यादव। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय 


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One thought on “किसानों का संकटमोचक ‘रहट’ कहां गुम हो गया?

  1. do you have a picture of “mote” , I think that is rare thing? I remember seeing once near Doriganj Saran

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