तलवाना ढूंढता है अपना रामलाल

तलवाना ढूंढता है अपना रामलाल

जितेंद्र शर्मा

rajasthan-village-1हरियाणा-राजस्थान बॉर्डर पर एक गांव है-तलवाना। शहर से कटा। जहां तक मेरी स्मृतियां जाती हैं, वहां न तो सड़कें जाती थीं और न ही वहां अखबार आया करते थे। गांव जातियों के आधार पर ही अलग-अलग टोलों में बंटा था-बाभन टोला, अहीर टोला, दलित टोला। इन टोलियों में गिनती के परिवार रहा करते थे। ज्यादातर परिवारों का गोत्र एक ही हुआ करता था।

लघुकथा

बाभन टोली में सात भाईयों का एक परिवार रहा करता था। एक भाई किसी वजह से अविवाहित ही थे। उन्हें गांव के लोग मोहन के नाम से पुकारते थे। बात बंटवारे के दिनों की है, जब मोहन लाल की उम्र 29-30 साल रही होगी। बॉर्डर से लगे इलाकों में उन दिनों दंगों जैसे हालात थे। मजहब के नाम पर लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। तलवाना के आस-पास के इलाकों में बसे मुसलमान परिवार भी पाकिस्तान जाने की तैयारी कर रहे थे। उनमें कुछ लोग ऐसे भी थे जो अपना गांव छोड़ने को तैयार न थे।

एक रात दंगाईयों की फौज ने मुसलमानों पर धावा बोल दिया। दोनों तरफ से हथियार निकल आए। इस हिंसा में कई लोग मारे गए। कई मुसलमान इलाका छोड़ कर भाग निकले। मोहनलाल भी तमाशबीन के तौर पर दंगाईयों की इस भीड़ में शरीक था। लेकिन इसी दौरान  उसकी नज़र एक घर पर पड़ी। जहां सब कुछ जलकर खाक हो चुका था। पर एक कोने से एक बच्चे के रोने की आवाज़ आई, जो इन दंगों में अनाथ हो गया था। बच्चे को देखकर मोहनलाल का दिल पसीज गया। मोहनलाल ने उसे गोद में उठा लिया। बच्चे को घंटों बाद कोई गोद नसीब हुई थी। वो बस मोहनलाल का चेहरा देखता रहा। अब उसके आंसू थम चुके थे।

rajasthan-village-2बच्चा इतना छोटा था कि वो कुछ बोल भी नहीं पा रहा था। मोहनलाल ने बच्चे के बारे में पता लगाने की कोशिश की। कहीं से कोई सुराग नहीं मिल सका। मजबूरी में मोहनलाल उस बच्चे को अपने गांव ले आए। जहां परिवार के लोगों ने ये कहकर बच्चे को घर में दाखिल नहीं होने दिया कि पता नहीं ये किस मजहब का है। घरवालों ने दबाव बनाया कि मोहनलाल बच्चे को अनाथालाय में छोड़ आए लेकिन मोहनलाल इसके लिए राजी न हुआ। नतीजा ये हुआ कि मोहनलाल को एक तरह से घरनिकाला मिल गया। वो घर से बाहर न्योरा (गाय के बथान) में रहने लगा। वहीं मोहनलाल और बच्चा बरसों एक साथ रहे।

मोहनलाल ने बच्चे की परवरिश में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। मोहनलाल ने बच्चे का नाम रखा-रामलाल। रामलाल जैसे-जैसे बड़ा हुआ, उसने गांव के लोगों के साथ अपनेपन का रिश्ता बना लिया। खास कर मोहनलाल के परिवार के लोगों के लिए उसके मन में काफी आदर का भाव था। उन्हें कभी भी उसने खुद से अलग नहीं समझा। रामलाल के लालन-पालन में कोई कसर न रह जाए, ये सोच कर ही शायद मोहनलाल ने कभी शादी करने का खयाल भी जेहन में न आने दिया। रामलाल जब जवान हुआ तो मोहनलाल के साथ खेती के काम में जुट गया। मेहनत करके रामलाल ने काफी संपत्ति जोड़ ली। इस बीच मोहनलाल ने रामलाल की शादी कर दी।

रामलाल और मोहनलाल के इस प्रेम भरे रिश्ते की गांव वाले दुहाई दिया करते। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ मोहनलाल की तबीयत खराब रहने लगी। मोहनलाल के निधन के बाद रामलाल के प्रति परिवार के लोगों के रवैये में अचानक बदलाव आ गया। इस बदलाव की बड़ी वजह मोहनलाल की संपत्ति थी। परिवार के लोग अब ये कहने लगे कि रामलाल का इस संपत्ति पर कोई हक नहीं है, क्योंकि वह मोहनलाल की औलाद नहीं था। रामलाल इस तरह के व्यवहार से बेहद आहत था। जब भी ऐसी बातें सुनाई देतीं, उसकी आंखेंं भर आतीं। पंचायत ने भी जो फ़ैसला सुनाया, वो रामलाल के लिए किसी सदमे से कम न था। पंचायत ने रामलाल को मोहनलाल की संपत्ति में से एक हिस्सा भर दिया, बाकी संपत्ति पर रिश्तेदारों को मालिकाना हक़ मिल गया।

रामलाल ने हिम्मत नहीं हारी। वो अपने हिस्से की थोड़ी सी जमीन पर ही जी-तोड़ मेहनत किया करता था। रामलाल का परिवार बढ़ा तो उनके लिए गांव में गुजारा करना मुश्किल हो गया। जिस गांव में रामलाल का बचपन बीता, जिस गांव को रामलाल बेहद प्यार किया करता था, उसी गांव के लोगों ने संपत्ति के लालच में रामलाल को पराया बना दिया। एक रात रामलाल पूरे परिवार के साथ गांव छोड़ कर चला गया। कहते हैं वो जयपुर महानगर में जाकर बस गया। गांव का रामलाल इस भीड़ में कहां खो गया, कौन जाने?


jitendra sharma profileजितेंद्र कुमार शर्मा। बैंकिंग सेक्टर में कार्यरत। पटना सिटी के मूल निवासी। पटना यूनिवर्सिटी से बीकॉम ऑनर्स और एलएलबी।