‘मर्ज’ बड़ा है… कभी वो, कभी हम… पर छोटी पहल में ‘हर्ज’ ही क्या?

‘मर्ज’ बड़ा है… कभी वो, कभी हम… पर छोटी पहल में ‘हर्ज’ ही क्या?

ब्रह्मानंद ठाकुर

बदलाव पाठशाला के छात्र।

बदलाव पाठशला के विद्यार्थी हैं रोहण ,गौरव ,शिल्की और नेहा। एक ही माता-पिता की पांच संतान। इनमें एक अभी बहुत छोटा है। विगत 24 जनवरी को मुझे जानकारी हुई कि इन पांच बच्चों के पिता शिवेन्द्र चार महीने से गम्भीर रूप से बीमार हैं। बीमारी के कारण वे अपना थ्री-व्हिलर भी नहीं चला पा रहे हैं जो उनकी जीविका का एकमात्र साधन है। परिवार में घोर आर्थिक संकट आ गया है। जो कुछ बचाकर शिवेन्द्र रखे हुए थे वह सब इलाज में खर्च हो गया। स्थिति ऐसी कि दवा खरीदना तो दूर, डॉक्टर की फीस का भी जुगाड़ नहीं हो पा रहा था।

बातचीत में पता चला कि शिवेंद्र को लीवर में तकलीफ है। डाक्टर ने लीवर मे पीव  होने की बात कही। शिवेंद्र के पास उतनी जमीन भी नहीं कि उसमें से कुछ जमीन रेहन रख कर इलाज का पैसा जुटाया जाए। शिवेन्द्र ने जब इस आशय  की अपनी दारुण दशा का मुझसे बयान किया तो उसे सुनते ही मेरा मन विचलित हो गया। तुरंत उसे कुछ पैसे दिए और डॉक्टर से मिलने भेजा। वहां से लौटकर उसने बताया कि “डाक्टर ने किसी सर्जन से मिलने की सलाह दी है। तत्काल कुछ दवा भी लिखी है जो खरीद लिया है।  चार महीने से दवा खा रहा हूं फिर भी  कोई सुधार नहीं है।”
देखा ,पहले का बुलंद शरीर सूख कर कांटा हो गया है। मैंने अपने मन में इसके लिए कुछ सार्थक करने  की सोचा और उसे विदा किया। फिर उसी समय बदलाव ग्रुप  में इस आशय का संदेश भेजा और इस स्थिति में क्या किया जाना चाहिए, इस पर सलाह मांगी। 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस समारोह में सुबह पौने नौ बजे अपने उस विद्यालय के झंडोतोलन कार्यक्रम में था जहां से मैं रिटायर हो चुका हूं। मंच पर  बैठे हुए मैंने आदतन अपने मोबाईल  पर व्हाट्स एप में बदलाव ग्रुप का मैसेज देखा – ‘ शिवेन्द्र के बैंक एकाउंट का ब्योरा ग्रुप में डाला जाए।’ लौट कर घर आया। पोते मणिकांत को भेज शिवेन्द्र के बैंक खाते की जानकारी ली। उसके पास  अपना कोई बैंक एकाउंट नहीं। उसकी  पत्नी प्रियंका का बैंक एकाउंट मिला। खाते में नगण्य राशि। पासबुक एकाउंट अपने बदलावग्रुप में शेयर कर दिया। बस इतना करते ही  प्रियंका के खाते में राशि आनी शुरू हो गई।
खाते में भेजी गई रिशि का विवरण इस प्रकार है – (इसके अलावा कुछ और साथी हों और ब्योरा छूट गया हो तो सूचित कर सकते हैं)
1. अनिल कुमार झा —–501/
2.संदीप शर्मा —-           501/
3.अनिल यादव —–       5100/
4. प्रेम पीयूष —-            5001/( मेरे खाते में)
5. नवनीत जालान–         1000/
6.अनीश सिंह—                 500/
7. नीतीश सिंह अयोध्या–      500/
8.पशुपति  शर्मा                     500/
9.अरुण यादव                        500/
10.डीएएफ मेम्बर विजेन्द्र जी    500/
11. अरिंदम डे-                1000/
ग्रुप से जुड़े साथी प्रवीण जी (1) और प्रवीण जी(2) ने भी पांच – पांच सौ रूपये भेजे जो भूल से  एकाउंट नम्बर —6169  की जगह —–6163  मे आ गया। यह एकाउंट  इसी ब्रांच  में किसी ज्योति कुमारी के नाम है। इसमें सुधार की प्रक्रिया चल रही है। सम्भव है यह राशि प्रवीण जी के एक्सिस बैंक एकाउंट को लौट जाए। वैसे मैं कोशिश मे हूं कि इसे सुलझा लिया जाए।
जब  शिवेन्द्र की बीमारी की खबर हमारे पड़ोस के एक युवा शिक्षक नवीन कुमार को मिली तो उन्होंने भी इस खबर को अपने ग्रुप में शेयर करते हुए सहायता की अपील कर दी। परिणाम स्वरूप उस ग्रुप के अभय, बख्तियारपुर ने 500/,  संजय त्रिवेदी, मतलुपुर ने 500/, चंदन कुमार (दारोगा ,मोतिहारी) ने 1000/ , रंजीत राज ने 200/ ,रोहित श्रीवास्तव ने 300/, वीरेन्द्र प्रसाद सिंह ,जमशेदपुर ने 5000/ और डाक्टर विनायक कुमार, मुजफ्फरपुर ने 1000/ रूपये की सहायता राशि  प्रियंका के बैंक खाते मे भेजी। स्थानीय मुखिया फेंकू राम ने 1500/ एवं हमारे मित्र रामविनोद चौधरी ( सेवानिवृत शिक्षक) ने 500/ रूपये की सहायता राशि शिवेन्द्र को नगद उपलब्ध कराई।
मुजफ्फरपुर के अशोका हास्पिटल में हमारे ग्रामीण युवा डाक्टर चंदन कुमार ने  बड़ी आत्मीयता और सहानुभूति के साथ शिवेन्द्र का तत्काल  इलाज शुरू किया। अल्ट्रासाउंड के बाद उसके लीवर से 288  ग्राम पस निकाला गया।  शिवेन्द्र अस्पताल से घर आ चुका है। स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है। 3 फरवरी को पुन: डाक्टर ने देख कर दवा लिखी है। दवा चल रही है।  15 दिन बाद डाक्टर ने उसे फिर बुलाया है। शिवेन्द्र के पास अब भी आठ हजार  से कुछ अधिक रूपये बचे हुए हैं। अब उसको सहायता राशि की जरूरत नहीं है। मैंने उसे सलाह दी कि इस राशि का उपयोग वह डाक्टर की सलाह पर दवा और पथ्य के रूप में करे।