चुनावी समर में शह-मात का खेल जारी है

चुनावी समर में शह-मात का खेल जारी है

राकेश कायस्थ

क्या कांग्रेस की न्यूनतम आय योजना ने अचानक चुनावी विमर्श को बदल दिया है? कांग्रेस जिस तरह `आय पर चर्चा’ जैसे कार्यक्रमों के साथ मैदान में उतरी है, उसे देखकर लगता है कि तैयारी पहले से चल रही थी। देश के 20 फीसदी परिवारों को हर महीने 6 हज़ार रुपये देने का दावा इतना बड़ा है कि बीजेपी चाहकर भी इसे इग्नोर नहीं कर सकती। नोटिस लेना ही पड़ेगा।अब बीजेपी के पास क्या रास्ता है? वह इस योजना को बकवास या आंखों में धूल झोकने वाला बताएगी। ऐसा करते वक्त वह अनजाने में देश की अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी जैसे मुद्धों पर चर्चा को आगे बढ़ाएगी और फायदा अंतत: विपक्ष को मिलेगा।

बीजेपी के लिए चुनावी नाव पार लगाने का एकमात्र रास्ता भावुक प्रतीकवाद है। लेकिन नरेंद्र मोदी पिछले पांच साल में प्रतीकवाद को इस स्तर पर ले जा चुके हैं कि अब और आगे जाने की गुंजाइश नहीं है।ऐसे में बीजेपी क्या करेगी? पिछले छह महीने में लगातार ऐसा हुआ है कि मोदी लगातार राहुल गांधी के बुने नैरेटिव में उलझते चले गये हैं। मैं भी चौकीदार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।टोपी पहनकर और डंडा थामकर बीजेपी नेता मुस्तैदी से ड्यूटी पर डटे ही थे कि अब कांग्रेस संसाधनों के असमान वितरण और बेरोजगारी का मुद्धा ले आई है।
भावनात्मक कार्ड कांग्रेस भी खेल रही है। अगर बीजेपी न्यूनतम आय योजना को अव्यवहारिक बताएगी तो फिर उससे अगला भावुव प्रश्न यह पूछा जाएगा कि पूंजीपतियों के लाखों करोड़ माफ करना किस तरह व्यवहारिक था? चुनावी राजनीतिक हिंदी फिल्मों की तरह है, जहां नायक और खलनायक एक-दूसरे से बंदूकें छीनते हैं और बारी-बारी से कहते हैं– खेल पलट चुका है, अब बाजी मेरे हाथ में है।
बाजी कई बार और लगातार पलटेगी। यह भी याद रखना चाहिए मोदी और शाह की जोड़ी से शातिर कोई और खिलाड़ी भारत के राजनीतिक इतिहास में अब तक नहीं हुआ।


राकेश कायस्थ।  झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ। टीवी टुडे,  बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आप ने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों एक बहुराष्ट्रीय मीडिया समूह से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ और ‘प्रजातंत्र के पकौड़े’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।