यात्रीगण, सीमांचल ‘सुपर-लेट’ का कोई टाइम टेबल नहीं है!

यात्रीगण, सीमांचल ‘सुपर-लेट’ का कोई टाइम टेबल नहीं है!

पुष्यमित्र

seemanchal 1चार अगस्त की रात 11 बजे पटना जंक्शन पर कुछ यात्री दिल्ली से आने वाली सीमांचल सुपरफास्ट एक्सप्रेस का इन्तज़ार कर रहे थे। एक डेढ़ घंटे बाद यह ट्रेन जब प्लेटफॉर्म पर आई तो आरक्षित टिकट वाले यात्री ट्रेन पर चढ़ने लगे। मगर जल्द ही उनको पता चल गया कि यह उनकी ट्रेन नहीं है। यह दरअसल एक दिन पहले वाली ट्रेन थी जो 26 घंटे की देरी से पटना पहुंची थी। 4 अगस्त वाली ट्रेन पटना स्टेशन से पांच सौ किमी से अधिक दूर थी। वह ट्रेन अगले दिन दोपहर के वक़्त पटना पहुंची।

seemanchalबुलेट ट्रेन के जमाने में 26-26 घंटे लेट रहती है सीमांचल एक्सप्रेस

पिछले एक महीने में न कभी राइट टाइम खुली, न राइट टाइम पहुंची

सीमांचल के पिछड़े इलाके को राजधानी पटना और दिल्ली से जोड़ने वाली इकलौती ट्रेन का हाल बुरा है

जो यात्री इस ट्रेन की वर्तमान स्थिति से अवगत थे उन्होंने लोगों को बताया कि यह कोई नई बात नहीं है। पूर्णिया और अररिया जिले के लोगों के लिए दिल्ली जाने वाली यह इकलौती ट्रेन सिर्फ कहने को सुपरफास्ट है। दरअसल यह सुपर लेट ट्रेन हैं। इस ट्रेन का 15 से 20 घंटे लेट रहना सामान्य बात है। यह उन ट्रेनों में शुमार है, जो अपने शुरुआती स्टेशनों से भी अक्सर 10-10 घंटे लेट से खुलती है।

भारतीय रेलवे की साइट भी इस ट्रेन के लेटलतीफ होने की गवाही देती है। पिछले एक महीने में यह ट्रेन आनंद विहार स्टेशन से एक भी दिन सही समय पर नहीं खुली है। हाँ, जोगबनी स्टेशन से जरूर पांच या छह दिन सही वक़्त पर खुली है। लेटलतीफी का आलम यह है कि परीक्षा या इंटरव्यू देने वाले लोग और मीटिंग अटेंड करने वाले भूल से भी इस ट्रेन का टिकट नहीं कटाते। अक्सर ट्रेन के लेट होने पर लोग बड़ी संख्या में टिकट कैंसिल कराते हैं और अक्सर कई लोगों का टिकट अपग्रेड हो जाता है।

passengers waitingकटिहार रेल डिविजन जिसके यात्री सबसे अधिक संख्या में इस ट्रेन की यात्रा करते हैं वह इस ट्रेन की लेटलतीफी को लेकर बिलकुल गंभीर नहीं है। डिविजन के रेल परिचालन से जुड़े पदाधिकारी यह कहते हुए पल्ला झाड़ लेते हैं कि वे क्या करें? ट्रेन तो दूसरे डिविजन में लेट होती है। वे बस इतना काम करते हैं कि अपने डिविजन में ट्रेन को लेट नहीं होने दें। जोगबनी स्टेशन पर जिस वक़्त ट्रेन पहुंचती है उसके महज दो घंटे बाद वे ट्रेन को छोड़ देते हैं। एक अधिकारी कहते हैं, चूंकि यह ट्रेन नार्थ सेंट्रल रेलवे वाले चला रहे हैं, इसलिए इसकी चिंता करना उनका काम है। हालाँकि कटिहार के सीनियर डीसीएम पवन कुमार कहते हैं कि उन लोगों ने एक-दो दफा नार्थ सेंट्रल रेलवे और ईस्ट सेंट्रल रेलवे से इस मसले पर बातचीत की है। मगर इसका कोई नतीजा नहीं निकला। ट्रेन अक्सर इन्हीं के जोन में लेट होती है।

रोचक तथ्य यह है कि इस ट्रेन की औसत गति 55 किमी प्रति घंटा है जो कई ट्रेनों से बेहतर है। 2015 तक यह ट्रेन अमूमन नियमित रहती थी। तब यह दिल्ली से कटिहार आने वाली सबसे तेज ट्रेनों में थी। मगर 2016 में इसकी लेटलतीफी ने इसे सबसे अविश्वसनीय ट्रेन बना दिया है। संभवतः देश के सबसे पिछड़े इलाके से जुड़े होने की वजह से यह रेलवे की अंतिम प्राथमिकता में है। हर जगह दूसरी ट्रेनों को आगे बढ़ाने के चक्कर में इसे कहीं भी रोक दिया जाता है। यात्री 24 घंटे का सफर 48 घंटे में पूरा करते हैं। टाइमिंग बेहतर रहने के बावजूद पूर्णिया और अररिया के लोग इस ट्रेन से पटना आने-जाने का रिस्क नहीं लेते।


पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।


 

8 thoughts on “यात्रीगण, सीमांचल ‘सुपर-लेट’ का कोई टाइम टेबल नहीं है!

  1. Alok Singh -सीमांचल ही क्यों बिहार से चलने वाली ढेर सारी गाड़ी है जो कम से कम 5-6 घंटे देर से चलती ही चलती है…

  2. Shubh Narayan Pathak -अधिकतर ट्रेनें दिल्ली से इलाहाबाद के बीच लेट होती हैं।

  3. Neelu – Kahte hain..der aaye durust aaye.par itni lambi pratiksha ke baad to seemanchal walon ko ek tohfa mila tha aur uska bhi ye hasra….

  4. p n jha- मित्रा जी । ये रेलवे कभी सुधर नही सकती । जब देश में इमरजेंसी लगी थी तो यही रेल कैसे टाइम से चला करती थीं । एक सत्य घटना से वाकिफ करा दूं । इस शहर के एक अधिवक्ता साहब लन्दन गए और वापस भी आ गए । आने के कुछ माह बाद वहां की रेलवे से कुछ पौंड की राशि क्षमा याचना के साथ उनकी घर पहुची । पता चला ये जो एड़वोकेट साहब लन्दन में जिस ट्रैन से सफर किया था वो महज पांच रिपीट पांच मिनट की देरी से स्टेशन पहुची । उसी गलती को पैसेंजर को हुई तकलीफ का खेद प्रकट करते हुए उन्होंने माफ़ी मांगी । और हमारे यहां !!! अजी जनाब पैसा तो छोड़िए, माफ़ी भी नही मांगेंगे । ट्रैन लेट चलाना इनका जन्म सिद्ध अधिकार हो गया है । क्या मजाल है जो ट्रैन टाइम से आये और जाये । पैसेंजर्स की जेब कैसे काटनी है, कोई इनसे सीखे । और अगर कोई सिनेमा टिकेट ब्लैक में बेचते मिले तो पुलिस क्या करती है, सबको पता है । लेकिन यही अगर रेलवे करे तो ? पहले तत्काल, फिर सुपर तत्काल, प्रीमियम और न जाने क्या क्या । रेलवे भी तो टिकेट ब्लैक कर रही है । मेरा भारत महान ।

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