राम नाम की ‘सियासी माया’ और आस्था की जमीनी हकीकत

राम नाम की ‘सियासी माया’ और आस्था की जमीनी हकीकत

निखिल दुबे के फेसबुक वॉल से साभार

समाज और सियासत की NO PARKING में खड़े कर दिए गए हैं भगवान। एक मासूम और सफाई कर्मी के लिए इनमें और कूड़े में कोई भेद नहीं बचा है। गणेश,सरस्वती,लक्ष्मी,आदि इत्यादि को पूजने के बाद, बारी बारी से विश्वास के अनुपात में जगह जगह पार्क कर दिए गए हैं भगवान।

माला फूल भी साथ मे हैं बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं में इस्तेमाल के बाद इतनी जगह नहीं बचती की इंसान और भगवान साथ रह सकें इस लिए चबूतरे पे विसर्जित कर दिए गए हैं भगवान साइनबोर्ड के लिए बने चबूतरे पे विराजमान हैं भगवान त्योहारों के बाद की ठंडक में ये भगवान का रैनबसेरा है
वो खुले में हैं।

हम बंद घरों में ठिठुरेंगे हम आस्था के शमशान में रह रहे है।जहां खुदगर्ज़ी की ऐसी चिताएं सजी हैं लपट नहीं है पर जलन और फफोले बहुत हैं सत्ता और सुविधा के लिए सतत वनवास में हैं भगवान। मतलब पूरा हो जाने के बाद भगवान को भी कूड़ा बना देने वाले समाज मे रहते हैं हम और आप ।

निखिल दुबे/उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के मूल निवासी हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र ।साहित्य और प्रकृति से गहरा लगाव । फुरसत के पलों में प्रकृति से संवाद स्थापित करने का कोई ना कोई जरिया तलाश ही लेने में माहिर । करीब डेढ़ दशक से मीडिया में सक्रिय । सहारा, एबीपी न्यूज, आजतक, इंडिया टीवी, जी न्यूज, न्यूज 24 जैसे मीडिया संस्था से जुड़े रहे । संप्रति इंडिया न्यूज चैनल के बतौर एग्जीक्यूटिव एडिटर कार्यरत ।