ग्राम प्रधान बनने वक्त बस्ती की बेटी की सोच क्या थी?

ग्राम प्रधान बनने वक्त बस्ती की बेटी की सोच क्या थी?

रुपम शर्मा, नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान, डुहवा मिश्र, बस्ती

उत्तर प्रदेश में ग्राम संसद के चुनावों के बाद टीम बदलाव ने तब चुनी गईं रूपम शर्मा से विस्तार से बातचीत की थी। इस कड़ी को हम आगे भी जारी रखना चाहते हैं। रुपम शर्मा से उनकी सोच और जमीनी हकीकत को लेकर फिर से बात करने की ख्वाहिश है।

बस्ती जिले के डुहवामिश्र गांव की रहने वाली रूपम अपने दादा के सपने को आगे बढ़ाने के लिए चुनावी अखाड़े में उतरीं। महज 21 साल की उम्र में वो ग्राम संसद की मुखिया चुनी गईं। हालांकि इससे पहले 10 साल तक रुपम के दादा मुन्नीलाल डुहवा मिश्र गांव के प्रधान रहे लेकिन 85 बसंत पार कर चुके मुन्नीलाल के लिए अब अपने सेहत के साथ ही गांव की सेहत का ख्याल रखना मुश्किल हो रहा था।

फिलहाल उनका 2015 को हमारे साथी एपी यादव ने जो साक्षात्कार लिया था वो एक बार फिर आप सभी पाठकों के लिए। 

बदलावसबसे पहले आपको ग्राम संसद की मुखिया बनने की बधाई।

रुपम– धन्यवाद।

बदलावग्राम प्रधान चुनाव लड़ने का विचार कब और कैसे आया?

रुपम– इससे पहले मेरे दादाजी गांव का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उनकी उम्र काफी ज्यादा हो चली है। लिहाजा उन्होंने फ़ैसला किया था कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे, फिर एक दिन मैंने पिताजी से कहा कि मैं गांव के लिए कुछ करना चाहती हूं और इस बार मैं प्रधानी का चुनाव लड़ूंगी। पिताजी ने इस दौरान मुझसे कुछ सवाल किए। मैंने अपनी सोच उनके सामने रखी, फिर क्या था मैं चुनावी अखाड़े में कूद गई। गांववालों का साथ मिला और जीत भी गई।

बदलाव चुनाव प्रचार के दौरान किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?

rupam1रूपम- गांव में आज तक कोई महिला प्रधान नहीं हुई थी, ऊपर से मैं गांव की बेटी थी लिहाजा मेरे लिए लोगों को समझाना थोड़ा मुश्किल जरूर रहा। कुछ लोगों ने सवाल उठाए तो साथ ही काफी अच्छे लोग भी थे जिन्होंने मेरी सोच को सराहा और गांव की बेटी को अपनी मुखिया चुना।

बदलाव- गांव के लिए सबसे पहले क्या करना चाहती हैं?

रूपम- वैसे तो बहुत कुछ करना है लेकिन सबसे पहला काम घर-घर शौचालय बनवाने का है। गांव में इक्का-दुक्का ही टॉयलेट है, गांव की माताएं, बहने और भाभियों को खुले में शौच जाते देख बुरा लगता है। लिहाजा मैंने फ़ैसला किया है कि सबसे पहले हर घर के लिए कम से कम एक टॉयलेट का इंतज़ाम करूं।

बदलाव- पिछले 10 साल आपके दादाजी प्रधान रहे, उनके कार्यकाल को आप किस रूप में देखती हैं?

रूपम- दादाजी ने गांव के लिए काफी काम किया है। हमारे गांव में वाटर सप्लाई की व्यवस्था है, 2 प्राथमिक विद्यालय हैं। सड़कों के किनारे सोलर लाइट्स भी लगी हैं, फिर कुछ काम ऐसे हैं जिस पर ध्यान देने की काफी जरूरत हैं।

बदलाव- अगले पांच साल में विकास का कोई खाका आपने अभी तक खींचा या फिर दादा और पिताजी के मुताबिक काम करेंगी।

रूपम- दादाजी के अनुभव और अपनी सोच से काम करूंगी। गांव को आगे बढ़ाने के लिए जो कुछ करना होगा उसे करूंगी। अभी तक जो सोचा है, उसके मुताबिक गरीब परिवारों के लिए आशियाना बनवाना है। महिलाओं और विधवाओं को जो पेंशन मिलती है, वो काफी नहीं है उस दिशा में भी कुछ काम करना है।

बदलाव- गांवों में बेरोजगारी और महिलाओं की आत्मनिर्भरता सबसे बड़ी समस्या है, इससे कैसे निपटेंगी?

रूपम- गांव की महिलाओं पर पुरुष अपनी सोच थोप देते हैं और वो संस्कारों के बोझ तले इतनी दबी रहती हैं कि कुछ नहीं कह पातीं, भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती हैं। हमें ऐसा माहौल बनाना है ताकि सभी एक दूसरे की सोच को समझें, जानें और उस पर अमल करें। महिलाओं के लिए स्वरोजगार की व्यवस्था करनी है ताकि वो घर पर रहकर आत्मनिर्भर बन सकें। इसके लिए जो बन सकेगा करूंगी।

बदलाव- आप घर से 25 किमी दूर पढ़ाई करने जाती हैं, आपको किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ।

रूपम- पिछले साल जब मैं बीए प्रथम वर्ष में थी तो मेरा एक पेपर छूट गया और इसकी वजह ये रही कि मैं जिस रास्ते से कॉलेज जाती हूं वो सड़क काफी खराब है। पहुंचने में देर हुई और मुझे बैक पेपर भरना पड़ा। इसलिए अब मेरी कोशिश होगी कि गांव के आसपास एक डिग्री कॉलेज हो ताकि गांव की बेटियां आसानी से ग्रेजुएशन कर सकें।

बदलाव- पढ़ाई और प्रधानी के कामकाज में कैसे तालमेल बिठाएंगी। आगे पढ़ाई की क्या योजना है?

रूपम- फिलहाल अभी अपना पूरा ध्यान गांव के विकास पर लगाऊंगी, लेकिन उसी में थोड़ा वक्त निकालकर ग्रेजुएशन जरूर पूरा करूंगी। फिर देखती हूं आगे की पढ़ाई के लिए कितना और कैसे वक्त मिल पाता है।

बदलाव- राजनीति की ABCD किसने सिखायी और भविष्य की क्या योजना है? राजनीति में कूदने का इरादा है या फिर गांव तक ही सीमित रहना चाहती हैं।

रुपम शर्मा, नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान, डुहवा मिश्र, बस्ती
रुपम शर्मा, नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान, डुहवा मिश्र, बस्ती

रूपम- दादाजी जब प्रधान बने तो मैं करीब 10 साल की थी। बचपन उनकी गोंद में बीता लिहाजा राजनीति का ककहरा उन्हीं को देखकर सीखा। फिलहाल अपने गांव के विकास पर ध्यान देना है। आगे चलकर कभी मौका मिला तो देश की संसद तक जाने में कोई परहेज नहीं है।

बदलाव- जिस वक्त पूरा गांव आपकी जीत का जश्न मना रहा था आप अस्पताल में पड़ी थीं, ये सब कैसे हुआ।

रुपम- चुनाव प्रचार के दिनों में एक छोटा बच्चा ऊपर गिर गया था, जिस वजह से मुझे चोट लग गई । उन दिनों इतनी भागदौड़ रहती थी दर्द का कुछ पता नहीं  चला, लेकिन जीत के बाद जब घर लौटी तो दर्द बढ़ने लगा और हॉस्पिटल चली गई । डॉक्टर ने थोड़ा आराम की सलाह दी है फिर भी गांव वालों की खुशी में ही मेरी खुशी।

बदलाव- उम्मीद है कि डुहवामिश्र गांव जल्द ही बदलाव की नई इबारत लिखेगा।


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