मन तृप्त कर देते हैं गोवर्धन के रोटी वाले बाबा

मन तृप्त कर देते हैं गोवर्धन के रोटी वाले बाबा

पंकज त्रिपाठी

जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने के लिए हम सब सफ़र करते हैं, लेकिन सफ़र ही मंज़िल बन जाए तो इसे क्या कहेंगे? बस यही है उस क़लंदर की ज़िंदगी का फ़लसफ़ा जिसका नाम है ‘रोटी वाले बाबा’। मथुरा ज़िले में गिरिराज यानी गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने के लिए जब आप जाएंगे या इस बार जाएं तो गिरिराज जी के मंदिर से चंद कदमों की दूरी पर ही सड़क किनारे फुटपाथ पर नज़र डालिएगा। आपको एक ऐसा शख़्स दिखाई देगा, जिसकी वेश-भूषा साधु जैसी है। मगर, वो सिर्फ़ साधु नहीं बल्कि एक मिशन के साथ जीने वाला पूरा युग है।

बड़े-बड़े बाबाओं और साधु-संन्यासियों से कभी प्रभावित नहीं हुआ, लेकिन पहली ही नज़र में ‘बनवारी दास’ (गुरुजी से यही नाम मिला था इन्हें) की आंखों में अजब सा सुकून नज़र आया। बहुत पूछने पर बोले, ‘छोड़िये अब तक रोटी वाले बाबा ही कहिए, लोग इसी नाम से जानते हैं’। उन्होंने अपना नाम बनवारी दास बताया। सुबह से शाम तक हम रोज़ी-रोटी और बेहतर ज़िंदगी की तलाश में अपना सबकुछ दांव पर लगाते हैं। मगर, ना वो सब मिल पाता है जिसके लिए मेहनत करते हैं और ना वो मिल पाता है जिसके हम सपने देखते हैं।

रोटी वाले बाबा 15 साल से हर रोज़ अपना सब कुछ दांव पर लगाकर भी हर शाम ‘जीत’ जाते हैं। जो लोग रोटी का सपना देखते हैं उन्हें वो पूरा कर देते हैं। जीत इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि उनके पास दिलों और भूख को जीतने का आत्मविश्वास है। इसी आत्मविश्वास के दम पर सिर्फ़ पेड़ के नीचे बोरों और पॉलीथिन के सहारे छोटी सी तख़्त पर रहकर ग़रीबों, बेसहारा और साधुओं की भूख मिटाते हैं रोटी वाले बाबा। फुटपाथ के किनारे बैठकर मैंने और मेरे दो साथियों (आनंद दुबे और इंस्पेक्टर कमलेश सिंह, इन्होंने ही बाबा से मिलवाया था) ने भी उस रसोई का भोजन ग्रहण किया, जो खाना संतों, ग़रीबों और यहां तक कि तमाम भीख मांगने वालों को मिलता है।

रोटी वाले बाबा सुबह से शाम तक इसी इंतज़ाम में लगे रहते हैं कि किसी तरह शाम तक कम से कम 300 लोगों का पेट भर सकें। उनकी सुबह शुरू होती है इस चिंता के साथ कि आज मीठे में क्या बनेगा- खीर, हलवा, लड्डू, सेंवइयां, मीठी रोटी या कुछ और। ना जाने कहां से सब्ज़ियां आती हैं। आटा, दाल, मसाले और जो कुछ भी चाहिए वो सब आता रहता है। ना कोई दुकान तय है और ना ही कोई वाहन। मगर, गिरिराज पर्वत जैसे ‘महापाषाण’ (पवित्र और बहुत बड़ा पत्थर) पर उनका विश्वास पत्थरदिल लोगों का मन भी पिघला देता है। तभी तो लोग रोटी वाले बाबा की रसोई में रोज़ कुछ ना कुछ सहयोग करते हैं और शाम करीब 6-7 बजे के बीच भोजन तैयार हो जाता है।

रोटियां इतनी गोल और आकर्षक लगती हैं कि आप अपनी भूख से ज़्यादा खा जाएंगे। और सब्जियों में वही स्वाद रहता है जो आपको गुरुद्वारे, भंडारे और ईश्वर के नाम पर खिलाए जाने वाले लंगर में होता है। कई लोग मिलकर रोटी वाले बाबा की रसोई तैयार करते हैं। सब्ज़ी काटना, आटा गूंथना, रोटियां बेलना, सेंकना और उन पर घी लगाना। इन सब कामों के लिए लोग ख़ुद-ब-ख़ुद आ जाते हैं। भोजन तैयार होते-होते लोगों की भीड़ जुट जाती है। गिरिराज की परिक्रमा वाले रास्ते पर फुटपाथ पर भगवान श्रीकृष्ण के भजन गूंजने लगते हैं। रोटियां, सब्ज़ी, दाल, मीठा और RO का पानी। दानघाटी या गोवर्धन नगरपालिका ने बाबा का सेवाभाव देखते हुए उनके पास RO का पानी पहुंचाना शुरू कर दिया। वो गोवर्धन की 21 किलोमीटर की पैदल परिक्रमा करने वालों को रात 12 बजे तक पानी पिलाकर उनकी थकान दूर करते हैं और परिक्रमा पूरी करने की हिम्मत देते हैं।

फुटपाथ पर बैठकर रोटी वाले बाबा की रसोई का भोजन आपको तृप्त कर देगा और बाबा का अकल्पनीय समर्पण देखकर आप भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे। रोटी वाले बाबा उर्फ़ बनवारी दासजी आर्मी से रिटायर्ड हैं और 15 साल से इसी तरह लोगों की सेवा कर रहे हैं। जब पंगत खा लेगी, तो तय समय पर रोज़ाना एक नंदी आएगा और बाबा की रसोई में बनी बड़ी-बड़ी रोटियां खाकर चला जाएगा। ज़रा सोचिए, 15 साल से ना तो उनकी ज़िंदगी किसी सफ़र में है, ना किसी मंज़िल की तलाश और ना ही कुछ पाने की इच्छा। जो कुछ भी था उससे लोगों का पेट भर दिया, जो है उसे भी लोगों की भूख मिटाने में लगा देते हैं और जो कुछ मिलेगा उसे भी रसोई के ज़रिए लोगों तक पहुंचा देंगे। कभी-कभी तो रोटी वाले बाबा के नाम से जीने वाले बनवारी दास के लिए ही उनकी रसोई में कुछ नहीं बचता, तो वो पानी पीकर सो जाते हैं।

चलते-चलते मैंने पूछा, बाबा ज़िंदगी का मक़सद क्या है ? मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराए। सिर पर बंधी बड़ी-बड़ी जटाओं पर हाथ फेरते हुए बोले- जब तक जिऊंगा, लोगों का पेट भरूंगा, आख़िरी सांस तक रसोई चलती रहेगी..!! बस इसके बाद बहुत देर तक रोटी वाले बाबा के ये शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे। 


pankaj-tripathiपंकज त्रिपाठी। कानपुर उत्तरप्रदेश के मूल निवासी। दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में रहते हुए पत्रकारिता की। संवेदनाओं के धरातल पर खुद को जिंदा रखने की जद्दोजहद जारी। आप उनसे 965-4444-004 पर संपर्क कर सकते हैं।