हिंदी मीडियम- ‘गिल्ट’ की परतें और ‘गांठों’ को उधेड़ती फिल्म

हिंदी मीडियम- ‘गिल्ट’ की परतें और ‘गांठों’ को उधेड़ती फिल्म

नीतू सिंह

फिल्म निर्देशक साकेत चौधरी

निर्देशक साकेत चौधरी की फिल्म हिंदी मीडियम का नाम सुनकर हमारे बीच बहुत से लोगों को दिली खुशी मिली होगी। वे लोग जिन्होंने खुद हिंदी मीडियम स्कूलों में पढ़ाई की है और अब अंग्रेज़ीदां हो चुकी सोसायटी में खुद को उम्र के आखिरी पड़ाव तक संघर्ष करता पाते हैं। ‘फिर भी दिल है हिदुस्तानी’ और ‘प्यार के साइड इफेक्ट्स’ जैसी हटकर फिल्में बनाने वाले साकेत ने इस बार भी शिक्षा में हिंदी की खस्ता हालत पर फिल्म बनाकर लाखों लोगों के दर्द को बांटा है।

फिल्म में इरफान खान दिल्ली के चांदनी चौक के खिलाड़ी व्यापारी बने हैं, जिनके पास पैसे की कमी नहीं। एक खूबसूरत बीवी भी है। मुश्किल बस एक है। हिंदी मीडियम से पढ़े इरफान उर्फ राज बत्रा को अपनी हिंदी पर नाज़ है, लेकिन उनकी बेग़म मिट्ठू, मौजूदा समय में हिंदी की खराब स्थिति से खौफज़दा होकर अपनी बेटी को अंग्रेज़ी मीडियम वाले शहर के किसी बढ़िया स्कूल में पढ़ाना चाहती है। आज के दौर में प्राइवेट अंग्रेज़ी मीडियम स्कूलों में एडमिशन कराने में मां-बाप को कैसे चने चबाने पड़ते हैं, यही लड़ाई फिल्म में दिखाई गई है।

फिल्म समीक्षा- हिंदी मीडियम
निर्देशक- साकेत चौधरी
कलाकार : इरफान खान, सबा कमर, दीपक डोबरियाल, अमृता सिंह, संजय सूरी, नेहा धूपिया, दीक्षिता सहगल

इरफान जैसे मंझे हुए कलाकार के लिए ऐसे ज़मीनी रोल करना बड़ी चुनौती नहीं रहा है। पूरी फिल्म इरफान के इर्द-गिर्द ही घूमती है। उन्होंने राज बत्रा के रोल में चांदनी चौक के बाशिंदे के किरदार को इतनी बारीक़ी औऱ खूबसूरती से निभाया है कि उनके बग़ैर फिल्म का हर सीन अधूरा लगता है। अपनी बच्ची की जन्मदिन पार्टी में उनका बेबाक़ डांस हो या स्कूलों में बच्चों को एडमिशन कराने के लिए मोटा पैसा वसूलने वाली एलीट कंसल्टेंट के सामने अपनी हिंदीनुमा अंग्रेज़ी में लिखा फार्म पढ़ना, हर जगह उन्होंने अपने दमदार अभिनय से लोगों को गुदगुदाया।

शिक्षा के नाम पर हो रही धांधली, अंग्रेज़ी के लिए अभिभावकों की बढ़ती दीवानगी और हिंदी मीडियम वाले मां-बाप पर बढ़ रहे सामाजिक दवाब जैसे गंभीर मुद्दों को उन्होंने बेहद दिलचस्प अंदाज़ में पर्दे पर दिखाया है। मिट्ठू के रोल में सबा करीम ने भी पूरी मेहनत की है, लेकिन कहीं-कहीं वे इरफान के सामने नर्वस नज़र आती हैं जो ओवरएक्टिंग के तौर पर सामने आ जाती है। बच्चे के एडमिशन के लिए खुद तैयारी करना और इंटरव्यू देने की मजबूरी मिट्ठू के चेहरे पर साफ झलकती है। एक प्रतिष्ठित स्कूल की तेज़ तर्रार प्रिंसिपल के रोल में अमृता सिंह भी जमी हैं। छोटे से रोल में ही सही लेकिन हमेशा की तरह दीपक डोबरियाल ने अपने रोल को इतनी गहराई से निभाया है, कि जब वे अपने बच्चे का एडमिशन ना हो पाने पर सुबकते हैं, तो सिनेमा हॉल में बैठे कुछ मां-बाप की आंखें भी नम दिखती हैं।

फिल्म के संगीत की बात करें तो ‘गुरू रंधावा के सूट-सूट’ और सुखबीर के ‘ओ हो हो’ गानों ने फिल्म को रिलीज़ से पहले ही सुर्खियों में ला दिया था। बच्चों पर फिल्माया गया ‘इक ज़िंदड़ी’ भी फिल्म में सिचुएशन पर सटीक बैठता है। फिल्म के कुछ सीन कहीं-कहीं बेवजह खींचे गए लगते हैं। एक बेहतरीन निर्देशक के तौर पर साकेत ने फिल्म में वनलाइनर्स को बखूबी फिल्माया है, जो दर्शकों तक सही संदेश पहुंचाने में कामयाब होते हैं। हां, स्क्रीन प्ले को थोड़ा और कसा जा सकता था।

कुल मिलाकर ये फिल्म ना सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी की बदहाल स्थिति को दिखाती है, इससे शायद उन मां-बांप की आंखें भी खुल पाएंगी, जो अंग्रेज़ी को लेकर ज़रुरत से ज्यादा सामाजिक दवाब में जीते हैं और बच्चों को अपनी उम्मीदों की चादर से ढक देते हैं। ये फिल्म एक संदेश है उन स्कूलों के लिए जिन्होंने सिर्फ भाषा के आधार पर समाज को दो हिस्सों में बांट दिया है। और ये सबक है उन लोगों के लिए भी जो बच्चे के अंग्रेज़ी में कविता सुनाने पर फूले नहीं समाते और हिंदी में बोलते देख शर्म महसूस करते हैं। तो अगर आपको लगने लगा है कि हिंदी बोलने से आपकी और आपके बच्चे की समाज में इज़्ज़त कम हो जाएगी, तो एक बार फिल्म देखनी बनती है। कुछ नहीं तो आप अब टूटी-फूटी अंग्रेज़ी बोलने में हिचकेंगे नहीं।


नीतू सिंह। आगरा, उत्तर प्रदेश की निवासी। इन दिनों दिल्ली में  निवास। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा। साहित्य, संगीत और सिनेमा में गहरी अभिरुचि। 

2 thoughts on “हिंदी मीडियम- ‘गिल्ट’ की परतें और ‘गांठों’ को उधेड़ती फिल्म

  1. Haan bhai comment ye hai ki mata tum likhte accha ho. Hindi ki haalat bacchon k kandhe k baste se bhe khaste hain. Ab mei dekhunge ke vaakai mei film k kya haal hai.

  2. Neetu ji main aap se puri tarah se sahmat huin,ye film language ke bich jo khaniya hai Usko Uper ek accha tamacha hai…film.dekhne per jo kami mahsus ho rahi thi wo aapne shbdo more kah kar puri kar di in sab baato ke.baujud ye film dekhni chahiye…..

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