शहर छोड़ गांव में खुशहाली की फसल उगा रहे अश्विनी शर्मा

शहर छोड़ गांव में खुशहाली की फसल उगा रहे अश्विनी शर्मा

विमलेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार, जयपुर

अच्छी नौकरी और शहर में आलीशान बंगला..आज हर युवा की यही चाहता रहती है, लेकिन जो लोग कुछ दशकों से शहरी जीवन जी रहे हैं उनसे पूछिए शहर का हाल क्या है । लिहाज ऐसे युवाओं की तादात हर दिन बढ़ रही है जो शहर को छोड़ गांव में अपना ठिकाना तलाश रहे हैं । कोरोनाकाल ने ऐसे लोगों को नई ऊर्जा दी है और बड़ी संख्या में लोग शहर से गांव की ओर बसने के लिए लौट रहे हैं । इन्हीं लोगों में रिटायर्ड RAS अश्विनी का नाम भी शुमार है । राजस्थान प्रशासनिक सेवा से रिटायर्ड अधिकारी अश्विनी शर्मा अब शहर की चकाचौंध छोड़कर गांव में बस गए हैं और गांव में पिछले कुछ वक्त से खेती और पशुपालन के क्षेत्र में कुछ नया करने की कोशिश में जुटे हैं । पारंपरिक खेती की बजाय ऑर्गेनिक खेती कर मुनाफा भी कमा रहे हैं ।

कवि मन अश्विनी शर्मा का प्रकृति से प्रेम यूं तो बचपन से रहा है उनकी कविताओं में भी गांव-जवार से लेकर खेत-खलिहानों का सुंदर चित्रण पढ़ने को मिल जाएगा । लेकिन हल से खेत जोतने, निराई, गुणाई  इससे पहले कभी नहीं की। लेकिन जीवन भर जो हाथ कंप्यूटर और पेन चलाते थे आज वहीं हाथ हल, फावड़ा और कुदाल चलाने से भी परहेज नहीं करते । प्रकृति प्रेम के साथ कृषि क्षेत्र में कुछ नया करने की सोच उन्हें खेतों में खींच लाई वर्ना सिया के राम व कई अन्य धारावाहिको के अभिनेता आशीष शर्मा व जयपुर की राजकुमारी सांसद दीया कुमारी के ओएसडी श्रेयांश के पिता अश्विनी शर्मा को खेतों में पसीना बहाने की कोई आवश्यकता नहीं। रोजी-रोटी के लिए तो उन्हें मिलने वाली पेंशन ही काफी हैं।

उबड़ खाबड़ जमीन को समतल कर उपजाऊ बनाना और स्वछंद वातावरण में रहने के लिए खेत में ही कुटिया बना अधिकतर समय  गुजारने वाले शर्मा ने प्रशासनिक सेवा में रहते हुए 25 वर्ष तो भाजपा-कांग्रेस सरकारों में मंत्रियों के सहयोगी के रूप में नीति निर्धारण तय करने में गुजारे हैं। प्रशासनिक अनुभवों को देखते हुए शर्मा के लिए काम की कोई कमी नहीं पर उनका मन फ़ाइलों में माथा खपाने की बजाय अब गोशाला, लहलहाते खेतों के बीच पंछियों की करलव चहचहाट में रम गया हैं।

जयपुर से 100 किलोमीटर दूर सवाई माधोपुर जिले में मित्रपुरा के पास एक छोटे से गांव थनेरा में 28 बीघा में बना स्वर्ण कपिला फार्म हाउस स्वर्ग का सा अहसास करवा रहा हैं। प्रकृति की गोद में जाकर बसने की अश्विनी शर्मा की कल्पना को साकार रूप देने में उनकी पत्नी सरिता ने भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया हैं। सरिता भी पति के साथ खेतों की सार संभालने में जुटी हैं। दोनों पति-पत्नी कोरोना काल के बाद तो अधिक समय फार्म हाउस पर ही गुजार रहे हैं।यहां पहाड़ियों की ओट में बसे फार्म हाउस में हरीतिमा के बीच उदय व अस्त होते सूर्य के विहंगम दृश्य तो देखने को मिलते ही हैं। उसके साथ रात में चंद्रमा दूधिया रोशनी बिखेरता तारों की बारात के साथ नजर आता है। भला इससे अधिक सुकून कहां मिल सकता है।

रिटायर्ड अधिकारी अश्विनी शर्मा का जिस क्षेत्र में फार्म हाउस है उस इलाके में ज्यादातर किसान परम्परागत फसल ही लेते हैं,जबकि शर्मा ने एकीकृत खेती को अपना  फल, सब्जी, विभिन्न खाद्यान्नों के साथ  हरे चारे व औषधीय पौधों से फार्म हाउस को सरसब्ज कर डाला।इन नवाचारों ने मात्र तीन सालों में शर्मा को भी उन्नत खेती वाले सफल किसानों की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया।बागवानी में उनके फार्म पर अमरूद, अनार, आंवला, बिल, निम्बू,लेहसुआ की तो सघन खेती हैं ही। इसके साथ आम,चीकू, कटहल,जामुन, करौंदा, आदि के भी काफी पेड़ हैं। खरबूजा व तरबूज की तो ऐसी वेरायटी है जिसे देख अन्य किसान इनकी खेती करने लगे हैं।

 सब्जी में तोरिया,घीया,भिंडी, करेला,देशी खीरा, पोदीना, धनियां, गाजर, मूली, मटर, टमाटर सहित कई तरह की सब्जियों की पैदावार हो रही है। बेलदार फसल के लिए छावण का जो क्षेत्र विकसित कर रखा है उसमें तो एक से अधिक पैदावार हो ही रही है।  उसके साथ गेहूं, सरसो, चना, सौंफ, उडद, चंवला, बाजरा, गंवार, तिल आदि की पैदावार भी भरपूर हो रही हैं।हरे चारे में उनके फार्म हाउस में परंपरागत फसलों वाले हरे चारे के अलावा सेवन, नेपियर, बांस, अरडू, मोरंगा हैं तो कई तरह के औषधीय पौधे भी शर्मा के फार्म पर हैं उनमें अश्वगंधा, एलोवेरा, गड़ तुम्बा,तुलसी, नीम गिलोय शामिल हैं। जहां पेड़ की छावं दूर-दूर तक नजर नहीं आती थी उसी जमीं में नीम, शीशम आदि के चार सौ पेड़ खड़े हैं। पानी का लेबल सुधार के जतनों का प्रतिफल भी देखने को मिला। उनके कुएं में  20 से 25 फ़ीट पर पानी है। बिजली खर्च बचाने के लिए सोलर प्लांट लगा हुआ है।

फार्म हाउस पर बनी गौशाला में छोटी और बड़ी 25 गिर नस्ल की गाये है। एक कांकरेज नस्ल की गाय भी है वह भी उत्तम नस्ल की गाय मानी जाती हैं।ऑर्गेनिक खेती व बागवानी के लिए देशी तरीके से ऑर्गेनिक खाद और कीटनाशक का निर्माण तथा उन्हें उपयोग में लेने के गुर कोई इनसे सीखे। खाद और पेस्टिसाइड तैयार करने की तो उन्होंने देशी प्रयोगशाला ही अपने कृषि फार्म पर बना डाली हैं। उनके यहां बेस्ट डी कम्पोज़र, माइक्रो न्यूट्रिन, एंजायन,जीवामृत, फंगीसाइड बर्मी कंपोस्ट, बर्मी बेस्ट, 20 तरह की जड़ी बूंटी वाला पेस्टिसाइड, निम्बोली पेस्टिसाइड आदि खाद व कीटनाशक का न केवल निर्माण हो रहा हैं, बल्कि अधिकतर निर्माण सामग्री भी उनके फार्म व आसपास के इलाके में बहुतायत में उपलब्ध हैं।