भ्रष्टाचार का आरोप नहीं तो मुकदमे का मकसद क्या ?

भ्रष्टाचार का आरोप नहीं तो मुकदमे का मकसद क्या ?

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने आजतक पंचायत में अपने बेटे पर लगे आरोपो पर जो कहा उसे शब्दश : कोट कर रहा हूं। शाह ने कहा— पहली बात यह समझ लीजिये कि यह भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है, किसी ने भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाया। फिर उन्होने कहा— कांग्रेस पर इतने इल्जाम लगे उन्होने कभी मानहानि का मुकदमा दर्ज नहीं किया। मेरे बेटे जय ने आपराधिक मानहानि के साथ सिविल सूट भी दायर किया है। शाह साहब जब किसी ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया ही नहीं तो फिर आपके बेटे ने द वायर पर दो-दो मुकदमे किसलिए दायर किये? सिर्फ यह बताने के लिए ना कि अपनी औकात में रहो, हमे पहचान लो, हम इस सिस्टम के मालिक हैं। ज्यादा फड़फड़ोगे तो रौंद दिये जाओगे। अब मुद्धे की बात— शाह ने कहा किसी कांग्रेसी ने मानहानि का दावा नहीं किया। यह सही तथ्य नहीं है। एक बेहद ईमानदार कांग्रेसी नेता ने मानहानि का दावा किया था और वो भी ब्रिटिश अखबार इंडिपेंट के खिलाफ। उस महान नेता का नाम था- पंडित सुखराम शर्मा।

यह नरसिंहराव सरकार के आखिरी दौर की बात है। ग्रेजुएशन का इम्तहान देकर मैं पत्रकार बनने के लिए हाथ पांव मार था। मुझे याद है दिल्ली से छपने वाले अंग्रेजी के अख़बारों ने बहुत विस्तार से खबर छापी थी कि किस तरह सुखराम ने अखबार को नोटिस भेजा है और कुछ मिलियन पौंड का हर्जाना मांगा है। कोई भी पुराना पत्रकार इस बात की तस्दीक कर सकता है। इस घटना के कुछ समय बात सुखराम जी के ठिकानों से बोरियों में भरकर नोट बरामद हुए। तत्कालिक सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह उस छापे की कहानियां दिलचस्प अंदाज़ में सुनाया करते थे। छापा मारने वाले अधिकारी उन्हे लगातार फोन कर रहे थे कि कुछ और कर्मचारी भेज दीजिये। नोटी की हालत बेहद खस्ता है और बोरियो में ऐसे ठूंसे गये हैं कि हम गिन नहीं पाएंगे। अदालत ने सुखराम जी को पांच साल तक तिहाड़ में चक्की पीसने का आदेश दिया था।
खैर अब सुखराम जी अब अपने पूरे कुटुंब के साथ पार्टी विद डिफरेंस का हिस्सा बन चुके हैं। ख़बर है कि अनुराग ठाकुर ने ट्वीट करके भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई से जुड़ने के लिए सुखराम कुनबे का स्वागत किया है। विरोधियों को गोली मारिये लेकिन अपने समर्थकों की चिंता कीजिये, जिन्होने नरेंद्र मोदी में एक ईमानदार राजनेता की छवि देखी थी। जब समाज वैचारिक तौर पर विभाजित होता है, तो हमेशा स्टीरियो टाइप इमेज बनती है। बीजेपी समर्थकों के इमेज भक्त और ट्रोल की बन चुकी है। मेरे हिसाब से यह पूरी तरह सच नहीं है। संघ से जुड़े मैं बीसियों लोगो को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं, जो निजी जीवन में बेहद ईमानदार है। क्या आप ये सोचते हैं कि आपकी चालबाजियां उन्हे समझ में नहीं आ रही होंगी।

मुझे 2004 के लोकसभा चुनाव का एक वाकया याद आ गया। तब मैं आजतक में काम करता था। ख़बर आई कि बीजेपी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के एक कुख्यात बाहुबली को पार्टी में शामिल किया है और टिकट देनेवाली है। आजतक ने उन नेता कच्चा-चिट्ठा खोलना शुरू किया। उन नेताजी ने बकायदा फोन करके धमकाया कि देख लूंगा। उसके बाद बीजेपी के कद्धावर नेता (अब दिवगंत) ने अपनी चिर-परिचित टेढ़ी मुस्कान के साथ प्रेस कांफ्रेस में कहा— बहुत अच्छे आदमी है, समाजसेवी है। मीडिया को क्यों तिल का ताड़ बना रहा है। लेकिन तिल का ताड़ अटल बिहारी वाजपेयी ने बना दिया। शाम को खबर आई कि अटल जी कह रहे हैं कि या तो बाहुबली को पार्टी में रख लो या फिर मुझे। झक मारकर उन्हे निकालना पड़ा। वह अटल और आडवाणी की बीजेपी थी। यह मोदी और अमित शाह की बीजेपी है। बुनियादी फर्क यही है। बीजेपी के पास अपनी तमाम कारगुजारियों को जायज ठहराने के लिए एक ही दलील है- -कांग्रेसियों ने सत्तर साल में बहुत लूटा है। आज़ाद भारत में पहली बार ऐसा हुआ कि कोई रूलिंग पार्टी छाती ठोक कह रहे हैं कि उनसे तो लुट चुके हो, थोड़ा मौका हमें भी दे दोगे तो क्या बिगड़ जाएगा। ऐसी ही एक ताजा दलील गुजरात के विजय मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने पेश की है।

गुजरात के चुनावों की तारीख टालने के विवादास्पद फैसले पर रूपानी खुलकर कह रहे हैं— पिछली बार इलेक्शन कमीशन ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया था। यानी मनमानी तो सभी करते हैं। हमने कर ली तो कौन सी आफत आ गई। हरेक राजनीतिक दल के कोर सपोर्टर उससे भावात्मक रूप से भी जुड़े होते हैं। ऐसे में गलतियों को नज़रअंदाज़ करने की आदत हो जाती है। लेकिन पार्टी लाइन से थोड़ा उपर उठकर यह सोचने की ज़रूरत है कि देश किधर जा रहा है। दो बड़ी पार्टियां एक-दूसरे के पाप गिनाएंगी और उसके आधार पर अपनी-अपनी कारगुजारियों को जायज ठहराएंगी और भुगतना पड़ेगा देश की जनता को। ढिठाई और बेहयाई के संस्थागत होने के ख़तरो को जो देश नहीं समझ सकता, उसका भविष्य पूरी तरह अंधकारमय है।


राकेश कायस्थ।  झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ। टीवी टुडे,  बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों स्टार स्पोर्ट्स से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।