आखिर एक पत्रकार किस्से कहानियाँ क्यों लिखने लगा?

आखिर एक पत्रकार किस्से कहानियाँ क्यों लिखने लगा?

पुष्यमित्र

विश्व पुस्तक मेले की शुरुआत हो चुकी है, पहली दफा मेरी कोई किताब बिकने के लिये किसी बुक स्टॉल पर है। वैसे तो यह उन लाखों किताबों में महज एक है जो वहां मौजूद हैं और दुनिया भर के बुक स्टोरों में रखी करोड़ों-अरबों किताबों के बीच में उसकी हैसियत पोखरे में गिरे एक बूँद जितनी भी नहीं। मगर फिर भी 40 साल बूढ़े हो चुके इस मन में बहुत उमंग है। क्योंकि जब मैं अपनी माँ के गर्भ में था तभी से किताबों के बीच ही जीता रहा हूँ। किताबों का मेरे जीवन में अलग ही महत्व है। और ऐसे में खुद के ख्यालों का एक मौलिक किताब में बदल जाना मेरे लिये एक लाइफटाइम एचीवमेंट है।

कई लोगों के लिये यह उलझन की बात हो सकती है कि आखिर एक पत्रकार किस्से कहानियाँ क्यों लिखने लगा? मगर जो लोग मुझे नजदीक से जानते हैं वे यह अच्छी तरह समझते हैं कि मेरा पूरा जीवन किस्से कहानियों में ही डूबा हुआ है। जब मैं अपनी माँ के गर्भ में था तो उनके पास एक ही काम था, नॉवेल पढ़ना। वह 16-17 की लड़की गुलशन नंदा से लेकर अज्ञेय तक के उपन्यास समान रूचि से पढ़ती थी। मेरा ननिहाल उन दिनों उन नौजवानों का अड्डा हुआ करता था, जो जेपी के छात्र आंदोलन के पहरुए हुआ करते थे। मेरे दो मामा और उनके कई मित्र। उन सबों के बीच मेरी माँ अकेली दुलारी बहन थी। वे सब उन्हें ढेर सारी किताबें लाकर पढ़ने दिया करते थे। जब मेरा जन्म हुआ तो माँ मन्नू भंडारी का उपन्यास आपका बंटी पढ़ रही थी। लिहाजा उन्होंने मेरा पुकारू नाम बंटी रख दिया, जो आज तक है।

विश्व पुस्तक मेला में ‘रेडियो कोसी’ यहां मिल रही है

हॉल न.- 12 A
S-2/7

अंगूर प्रकाशन के स्टॉल पर

किसी दूसरे बच्चे की तरह मेरा बचपन भी नानी के किस्से कहानियों के बीच गुजरा। मेरी बड़ी मामी जबरदस्त किस्सागो थी, वे इतने नाटकीय अंदाज में किस्से सुनाती थी कि साधारण सा किस्सा भी जीवंत हो उठता था। थोड़ा बड़ा हुआ तो चाचा चौधरी, साबू, बेताल, अमर चित्रकथा, इंद्रजाल कॉमिक्स, लोटपोट, नंदन और चम्पक में उलझा। फिर दोस्तों के जरिये राजन इक़बाल के जासूसी उपन्यास घर लाने लगा।

उस वक़्त भी घर में यहां-वहां साहित्यिक उपन्यास रखे रहते थे, मगर उनसे मेरा नाता नहीं बन पाया था। मुझे वे बहुत बोरिंग किस्म के लगते थे, अपनी प्रस्तुति में भी और कवर के हिसाब से भी। इनसे लगाव लगाने में मेरे शिक्षक और नवोदय विद्यालय, पूर्णिया के पुस्तकालयाध्यक्ष श्री आरके सिन्हा की बड़ी भूमिका है। पता नहीं कैसे उन्हें समझ में आ गया था कि 10-11 साल के इस बच्चे में किस्सों की संभावना है। उन्होंने मुझे खास तौर पर प्रेमचंद की कहानियां पढ़ने को दीं। मुझे वे कहानियाँ पसंद आ गयीं फिर मैं पूरा मानसरोवर पढ़ गया। फिर वे मुझे अपनी रूचि से किताबें छांट-छांट कर देते और लिखने के लिये प्रेरित करते।

स्कूल से निकला तो हर इंटर पास बिहारी युवक की तरह मेरे पास भी दो ही विकल्प थे, इंजीनियरिंग या मेडिकल। मुझे मेढ़क को चीरा लगाने में डर लगता था इसलिए मेरे सामने एक ही विकल्प था, दो नहीं। तैयारी करने पहले बोकारो गया, फिर दिल्ली भेज दिया गया जहां मेरे छोटे मामा थे। फिजिक्स और केमिस्ट्री की किताबें महंगी थीं इसलिये उन्होंने मुझे एक लाइब्रेरी का मेंबर बना दिया ताकि वहां से किताबें लाकर पढूं।

मगर यह उनकी बड़ी गलती साबित हुई। मैं फिजिक्स और केमिस्ट्री के बदले मंटो, किशन चंदर, कुर्तल एन हैदर, जोगिन्दर पाल, जीलानी बानो, राजेन्द्र सिंह बेदी, इंतजार हुसैन जैसे लेखकों के असर में आया। लाइब्रेरी में उर्दू साहित्य का जखीरा था। दिल्ली में गुजरे एक साल में मैंने तकरीबन रोज एक छोटा नॉवेल पढ़ा। अब मुझे छोटी कहानियों में मन नहीं लगता था, लाइब्रेरी से मोटे से मोटे नावेल तलाश कर लाता। ‘खरीदिये कौड़ियों के मोल’ टाइप।

वहां मेरे रूम मेट थे जो रिश्ते में मेरे नाना लगते हैं, निशिकांत चौधरी, जिन्हें मैं राजू नाना कहता हूँ। वे मुझसे भी बड़े पढ़ाकू थे। उनकी पसंद कनाट प्लेस के फुटपाथ पर बिकने वाले अंग्रेजी नॉवेल थे। वे एन रेंड के दीवाने थे और मुझे एटलस शर्ज्ड और द फाउंटेनहेड के किस्से सुनाया करते थे। उनकी खुराक भी रोजाना एक नॉवेल हुआ करती थी। मैंने जब उन्हें बताया कि मैं इंजीनियरिंग तो शायद ही निकाल पाऊँ तब उन्होंने मुझे बताया कि मुझे मास कम्युनिकेशन्स की पढ़ाई करना चाहिये।

उसके बाद मैंने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि भोपाल से मास कम्युनिकेशन्स की पढ़ाई की और पत्रकार बन गया। मगर किस्से कहानियाँ मेरे जीवन से कहीं गये नहीं। आज भी मैं उन्हीं खबरों को तरजीह देता हूँ जिनमें किस्से कहानियों की गुंजाइश होती है। और इन खबरों की तलाश में भटकते हुए मेरी अजीबोगरीब और दिलचस्प किस्सों से अक्सर मुठभेड़ हो जाती है। रेडियो कोसी का किस्सा भी ऐसे ही कई मुठभेड़ों का नतीजा है जो विश्व पुस्तक मेला के स्टॉल पर पाठकों के इन्तेजार में है।


पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।