सियासी तस्वीर बदलने के लिए आधी आबादी का एक और कदम

सियासी तस्वीर बदलने के लिए आधी आबादी का एक और कदम

पुष्यमित्र

पिछले दिनों चुनावी यात्रा के दौरान जब मैं पूर्णिया जिले के धमदाहा अनुमंडल मुख्यालय में किरण देवी से मिल रहा था, तब तृणमूल कांग्रेस द्वारा लोकसभा चुनाव में 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने और कांग्रेस द्वारा जीत के बाद महिला आरक्षण को पारित कराने की खबर आयी थी। आज जब यह खबर लिख रहा हूं तो बिहार में दोनों गठबंधनों ने मिलकर 80 में से सिर्फ नौ महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है। उनमें भी ज्यादातर सजायाफ्ता मुजरिमों की पत्नियां हैं। कहीं रेप के सजायाफ्ता राजवल्लभ की पत्नी मैदान में हैं तो कहीं तेजाब कांड के सजायाफ्ता शहाबुद्दीन की। दिलचस्प है कि मुकाबले में भी कविता सिंह जैसी महिलाएं हैं जिनके पति खुद आपराधिक वारदातों की वजह से चुनाव लड़ने के काबिल नहीं हैं। यह नजारा बिहार की महिला राजनीति के लिए बहुत सुखद नहीं लगता। मगर क्या यही बिहार की राजनीति में महिलाओं की इकलौती तस्वीर है?  शायद नहीं।

किरण देवी से मेरी मुलाकात शक्ति जीविका महिला संकुल के कार्यालय में हुई। बहुत मुमकिन है कि किरण देवी को आप उनके नाम से नहीं जानते हों। मगर उनकी उपलब्धियों की फेहरिस्त बड़ी लंबी-चौड़ी है। वे आरण्यक कृषि उत्पाद प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर की मेंबर हैं। इस कंपनी को वायदा कारोबार के क्षेत्र में बेहतरीन उपलब्धि के लिए नेस्डेक नामक वित्तीय संस्था पुरस्कृत कर चुकी है। कंपनी किसानों से मक्का खरीद कर उसे ऐसे वक्त में बेचती है। जब बाजार में मक्के की कीमत सबसे अधिक हो। इस कंपनी के ज्यादातर सदस्य स्वयं सहायता समूह की साधारण ग्रामीण महिलाएं हैं। मगर इन महिलाओं के काम की शोहरत ऐसी है कि इस साल जब केंद्रीय बजट तैयार हो रहा था, तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सुझाव के लिए किरण देवी को दिल्ली बुलाया था और उन्होंने वहां जाकर सरकार को कुछ बहुमूल्य सुझाव दिये थे।

धमदाहा के इलाके में किरण देवी जैसी कई महिलाएं हैं, जो महज आठ-दस साल पहले तक साधारण घरों में गुमनाम जीवन जी रही थीं, चूल्हा-चौकी और बच्चों को संभालने के अलावा उनके जिम्मे कोई काम नहीं था। अपने ससुराल में कोई उनका नाम तक नहीं जानता था। मगर बिहार सरकार के आजीविका मिशन से जुड़कर उन्होंने अपना जीवन बदल लिया। आज ये महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं, इतनी सक्षम हैं कि अपने और अपने परिवार के फैसले खुद ले रही हैं और अकेले असम, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश और दूसरे राज्यों में जाकर वहां की महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं।

 

किरण देवी, रीना देवी, कली देवी और तारा देवी जैसी कई महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह सिर्फ उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ाने वाला साबित नहीं हुआ, वे समूह से जुड़कर और यहां की नियमित बैठकों में भाग लेकर राजनीतिक रूप से भी सजग हुईं। इसका सबसे बड़ा नमूना था शराब के खिलाफ उनका आंदोलन जिसकी वजह से बिहार के सीएम नीतीश कुमार को पूर्ण शराबबंदी का फैसला लेना पड़ा। इतना ही नहीं आज स्वयं सहायता समूह से जुड़ी कई महिलाएं राजनीति में सक्रिय हैं और ऊंचे पद पर काम कर रही हैं।पूर्णिया लोकसभा सीट पर तो इन एसएचजी की महिलाओं ने पिछले चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। कहा जाता है कि पिछले चुनाव में जदयू के उम्मीदवार संतोष कुशवाहा को इन महिलाओं ने एकमुश्त समर्थन दिया, इसी वजह से मोदी के लहर में भी संतोष कुशवाहा विजयी रहे। यह इसलिए भी मुमकिन लगता है, क्योंकि पूर्णिया जिले में जीविका के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की संख्या 3,22,913 है। यहां जीविका का काम भी बेहतरीन है, हाल हाल तक यह राज्य में नंबर वन था।

उसी दफ्तर में मिली एक अन्य महिला कली देवी कहती हैं कि यह समूह से जुड़ने का ही कमाल है कि आज वे राजनीतिक फैसले खुद लिया करती हैं। पहले तो घर के लोग जिसे कहते थे, उसे वोट दे आती थीं। आज तो वे अपने पति को भी नहीं बताती हैं कि किसे वोट देना है। वहां मौजूद अन्य महिलाएं भी उनका समर्थन करती हैं।पूर्णिया में जीविका की महिलाओं की राजनीतिक जागरुकता और सफलता का आलम यह है कि धमदाहा की प्रखंड प्रमुख और उप प्रमुख भी जीविका की सदस्य रह चुकी हैं। किरण देवी कहती हैं कि समूह की बैठकों में पैसे जमा करने और व्यापार आगे बढ़ाने के साथ-साथ वे इस बात की चर्चा भी करती हैं कि कौन सी पार्टी और कौन नेता अच्छा काम कर रहा है। इतना ही नहीं वे अपने गांव में होने वाले विकास कार्यों पर भी नजर रखती हैं। गांव के मुखिया से लेकर क्षेत्र के विधायक तक को जीविका की महिलाओं की ताकत का अंदाजा है और वे चुनाव के वक्त इन महिलाओं का समर्थन प्राप्त करने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं। धमदाहा प्रखंड जीविका की उपलब्धियों के मामले में पूरे राज्य में नंबर वन माना जाता है।

तो क्या इन अनुभवों के जरिये यह माना जा सकता है कि जीविका और स्वयं सहायता समूह महिलाओं को राजनीतिक रूप से जागरूक कर रहा है? इसका जवाब पूरी तरह हां नहीं है, क्योंकि अगर पिछले चुनाव में पूर्णिया की ज्यादातर जीविका दीदियों ने जदयू के पक्ष में मतदान किया तो यह स्वतंत्र मतदान नहीं लगता। हालांकि बातचीत में ज्यादातर महिलाएं नीतीश के फैसलों से सहमत दिखती हैं। मगर ऐसा कतई नहीं कि सभी तीन लाख महिलाएं नीतीश की प्रशंसक हो। दबी जुबान से यह कहा जाता रहा है कि जीविका कार्यालय की तरफ से इन महिलाओं पर जदयू के पक्ष में मतदान करने का दबाव रहता है।

सच तो यह है कि नीतीश काफी समय से महिला मतदाताओं का वोट बैंक गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे बिहार के इकलौते ऐसे बड़े राजनेता हैं जिनका कोई जातीय वोट बैंक नहीं है। शराबबंदी, दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ सख्त कानून बनाकर, लड़कियों को साइकिल बांटकर, पंचायतों और सरकारी नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण देकर वे चाहते हैं कि महिलाएं स्वतंत्र रूप से उनके पक्ष में मतदान करे। राज्य में जीविका दीदियों, आंगनबाड़ी सेविकाओं, शिक्षिकाओं, महिला पंचायत प्रतिनिधियों एवं सरकारी सेवा में बहाल अन्य महिलाओं की एक बड़ी फौज पिछले दस साल में तैयार हुई है. मगर यह कहना ठीक नहीं होगा कि ये महिलाएं नीतीश की पक्षधर हैं।

बिहार में हाल के दिनों में आत्मनिर्भर और राजनीतिक रूप से जागृत हुई महिलाएं

बिहार में जीविका से जुड़ी महिलाओं की संख्या 9853159

जीविका समूह की संख्या 835627

आँगनबाडियों में कार्यरत महिलाएं 160000

स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत आशा कार्यकर्ता 8 लाख से अधिक

महिला पंचायत प्रतिनिधि 57887

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पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। प्रभात खबर की संपादकीय टीम से इस्तीफा देकर इन दिनों बिहार में स्वतंत्र पत्रकारिता  करने में मशगुल ।