अपने शहर में अजनबी गांधी

अपने शहर में अजनबी गांधी

धीरेंद्र पुंडीर

गांधी जी की यात्रा एक मानव के महामानव बनने की यात्रा है। आप उनसे सहमत या असहमत हो सकते हैं। गांधी जी के एक प्रयोग दांडी की यात्रा से शुरू करता हुआ अब गांधी जी के बचपन के शहर में चल आया। राजकोट का अल्फ्रेड हाई स्कूल महात्मा गांधीजी का स्कूल था। अब वहाँ एक म्यूज़ियम बन रहा है। 30 करोड़ की लागत से बन रहा म्यूजियम दुनिया भर से आने वाले लोगों को गांधी की यात्रा की कहानी सुनायेगा। लेकिन यह कैसे बतायेगा कि कभी काठियावाड़ के बेहतरीन स्कूल में शुमार होने वाले इस स्कूल में अब सिर्फ 152 स्टूडेंट्स ही रह गये थे। कभी इस स्कूल में 3500 छात्र भी पढ़ते थे और एडमिशन एक बड़ी बात थी। लेकिन वक्त के साथ ये सरकारी शिक्षा की बदहाली का स्मारक बन गया था। यह देश का एक मानक स्कूल बनता इस तरह का कोई भी काम सरकारों ने करने की कोशिश भी नहीं की।

गांधी यात्रा के आश्चर्य सिर्फ यहीं खत्म नहीं हुए। काबा गांधी नु डेलो यानी काबा गांधी का घर। महात्मा गांधी के पिता करमचंद गांधी का बनाया हुआ घर अब म्यूज़ियम है। आप को यह बात आश्चर्य में डाल सकती है कि वहाँ तक जाने वाले तमाम रास्तों में एक का भी नाम महात्मा के साथ रिश्ता नहीं रखता। भीड़भरे इलाके की मुख्य सड़क धर्मेंद्र रोड है और लेन का नाम नोकड़िया लेन है। यह घर की कहानी का एक अनजान हिस्सा भी है।

1920 में जब गांधी परिवार के सामने कुछ आर्थिक दिक्कतें आईं, तब यह घर बेच दिया गया था। आजिज़ी के बाद विट्टलभाई ढेबर ने 1948 में इसको खरीद कर एक म्यूज़ियम में तब्दील करने को दिया था। 1881 में यह घर बना था और इसी साल कस्तूरबाजी के साथ महात्मा गांधी जी की शादी हुई। और बा यह रहने आईं थी। आज भी घर में वही खिड़की दरवाजे है जो काबा ने लगवाए थे। बस गांधी का कमरा अब नहीं है। मकान 2001 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हुआ था।। वहां कार्यरत जोली भाई ने बताया कि साल भर 10,000 लोग गांधी का घर देखने आते हैं। पता नहीं जोली भाई इस संख्या को बड़ा मान रहे थे कि छोटा।


dhirendra pundhirधीरेंद्र पुंडीर। दिल से कवि, पेशे से पत्रकार। टीवी की पत्रकारिता के बीच अख़बारी पत्रकारिता का संयम और धीरज ही धीरेंद्र पुंडीर की अपनी विशिष्ट पहचान है।