‘सूखा गुलाब’ की महक और मनगढ़ंत धारणाओं का सच

‘सूखा गुलाब’ की महक और मनगढ़ंत धारणाओं का सच

पुस्तक मेला को लेकर मेरा नजरिया अब बदल गया है । पहले सोचता था कि कितने लोग जाते होंगे ? किताबें कितनी बिकती होंगी ? खाली रहता होगा मेला, नीरस मेला कौन देखने जाता होगा । लेकिन जब पहली बार और मेले के आखिरी दिन 13 जनवरी को प्रगति मैदान में पहुंचा तो धीरे-धीरे मनगढ़ंत धारणायें टूटती रहीं । मैं सोच कर गया था कि वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा, पीयूष बबेले और कुमार विनोद की किताबें लेकर चला आऊंगा। साथ में अपने 4.5 साल के बेटे अथर्व को भी लेकर गया था। सोचा कि उसे भी छुट्टी के दिन ठंड के मौसम में मेला दिखा देंगे और एक-दो घंटे में लौट आएंगे। लेकिन टिकट लेकर जब हॉल नंबर 12 में प्रवेश किया तो किताबों के संसार में खो गया । जिस किताब को हाथ लगाओ उसे पढ़ने का मन कर रहा था। वहीं दूसरी ओर अथर्व दर्जनों अपनी मन पसंद की किताबें भी समेटते जा रहा था । उसे तो कहानियों की किताबों में दिलचस्पी है। पापा ये भी ले लो.. वो भी ले लो… टाइगर वाला चाहिए… लोमड़ी… पापा इसमें भालू की कहानियां नहीं है… तमाम सवाल.. जवाब- ठीक है बेटा उठा लो… ! इस तरह उसने करीब 35 किताबों का चयन किया । उसमें कुछ हिंदी तो कुछ अंग्रेजी की थीं । फिर मैंने उसके साथ विचार विमर्श कर 10 किताबों को चयन किया ।

दिल्ली के प्रगति मैदान में किताबों का महाकुंभ संपन्न।

न्यूज चैनल आज तक में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार कुमार विनोद की किताब ‘एकरंगा’ के विमोचन की जो सूचना मुझे मिली थी उसी के मुताबिक मैं पुस्तक मेला पहुंचा था । शुरुआती सूचना कार्ड में 13 जनवरी शाम 4 बजे लिखा था । वही कार्ड मैं सेव कर रखा हुआ था । लेकिन जब मैं पहुंचा तो पता चला कि उनकी किताब का विमोचन 12 जनवरी को ही हो गया। मैंने इस बारे में जब उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि पहले कार्ड पर डेट गलत थी। उसके बाद उन्होने सूचना भी दिया लेकिन, मैं ही वक्त पर उसे देख नहीं पाया ।

वरिष्ठ पत्रकार कुमार विनोद (बाएं) और उनके साथी गण।

खैर, कुमार विनोद जी से बातचीत के बाद उनकी किताब को लिया और वरिष्ठ पत्रकार पीयूष बबेले की किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’ की खोज में आगे बढ़ गया। मुझे पता नहीं था कि बबेली जी की किताब का प्रकाशक कौन है। फिर मैंने फेसबुक पर उनकी पुस्तक मेले की फोटो देखी। फोटो बैकग्राउंड में राजपाल प्रकाशन के लोगो और नाम दिख रहे थे। मैंने कुछ लोगों से पूछा तो उन्होंने राजपाल प्रकाशन का ही नाम बताया और मैं आगे बढ़ गया। राजपाल प्रकाशन के स्टॉल में हर सेक्शन को खंगाल डाला लेकिन कहीं किताब नहीं दिखी । हालांकि पाठकों की सुविधा के लिए कंटेंट के हिसाब से किताबें रखी गई थीं । इसलिए सब्जेक्ट पढ़कर किताबें खोजने में आसानी थी । लेकिन राजपाल प्रकाशन की स्टॉल में मुझे किताब नहीं मिली। इस बात को मैंने फेसबुक पर शेयर किया तो पीयूष जी ने कमेंट बॉक्स में बताया कि उनकी पुस्तक का प्रकाशक संवाद प्रकाशन है। उस वक्त मैं हॉल नंबर 7 में पहुंच गया था । फिर लौटकर संवाद प्रकाशन से पीयूष बबेले जी की किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’ को प्राप्त किया । इस किताब में क्या है और क्यों है हम आगे पढ़ने के बाद लिखेंगे। वैसे सोशल मीडिया पर नेहरू के बारे में फैली अफवाहों और झूठ का सच इस किताब में है । छात्रों के लिए ये काफी उपयोगी किताब है।

वरिष्ठ पत्रकार पीयूष बबेले की किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’

पुस्तक मेले में कई चीजें हैरान करने वाली थीं। कोई मुफ्त में बाइबिल बांट रहा था तो कोई इस्लाम का प्रचार कर रहा था, इस्लाम से जुड़ी पुस्तकें बेच रहा था। वहीं महर्षि दयानंद सरस्वती की ‘सत्यार्थ प्रकाश’ महज 10 रुपए में बेची जा रही थी। कहीं लिखा था कि ‘आप लिखिये हम छापेंगे’। वहीं गीता प्रेस के स्टॉल पर ‘अफवाहों पर ध्यान ना दें’, गीता प्रेस संकट में नहीं है, का संदेश चिपकाया गया था। हॉल नंबर 12 से 7 तक दौड़ लगाते लगाते दोपहर 1 बजे से शाम के 5 बज गए। किताबों को देखते और फोटो खींचते कब वक्त बीत गया पता नहीं चला । इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार अजित अंजुम सर से भी मुलाकात हुई । वो बिल्कुल फीट दिख रहे थे । उन्होंने मेरा हालचाल लिया और मोटापा कम करने के लिए कहा। साथ ही अपनी फिटनेस भी दिखाई।

अपनी मन पसंद कहानियों को समेटता अथर्व।

पुस्तकों के कुंभ में खाने पीने की भी व्यवस्था थी । सैकड़ों लोग जमीन पर बैठे मिले। पूरा पुस्तक मेला खचाखच भरा हुआ था। बच्चे, नौजवान, 80 साल के युवक भी मेले की शोभा बढ़ाने आये थे । खुद के लिए कुछ किताबें और अथर्व की कहानियों का संसार लेकर हम मेले से बाहर हो रहे थे । तभी वरिष्ठ पत्रकार पशुपति शर्मा सर से बात हुई तो उन्होंने बंशी कौल ग्रुप के एक प्ले को देखने के लिए एऩएसडी चलने की बात कही। चूंकि अथर्व मेरे साथ था तो पहले तो मैंने सोचा कि पता नहीं अथर्व तब तक रूक पाएगा या नहीं। अथर्व की एनर्जी को देखते हुए मैंने एनएसडी जाने का फैसला किया।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा यानी NSD में 6.30 बजे से प्ले शुरू होने वाला था। अथर्व को कुछ खिलाने के बाद उससे पूछा, बेटा नाटक देखने चलोगे ? पहले तो उसने नाटक के बारे में पूछा कि ये क्या होता है ? फिर मैंने उसे समझाया तो उसने हामी भर दी और हम लोग प्रगति मैदान से मंडी हाउस स्थिति NSD स्कूल तक बात करते, अथर्व के तमाम सवालों का जवाब देते, सुप्रीम कोर्ट को दिखाते हुए पैदल पैदल पहुंच गए। NSD के बारे में मैं पहली बार आलोक चटर्जी सर से सुना था । आलोक सर और अभिनेता इरफान खान NSD से ही पढ़े हैं और अपनी अदाकारी से लिए जाने जाते हैं । भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्विद्याल में पढ़ाई के दौरान मैंने कई बार आलोक चटर्जी सर के साथ प्ले भी किया। चूंकि पशुपति सर का इंतजार कर रहे थे तो इसलिए प्रांगण में ही चीजों को देख-समझ रहे थे, लोगों से पूछ रहे थे । साथ ही एनएसडी में नाटक को लेकर अथर्व के अनगिनत सवालों का जवाब भी दे रहे थे । और इस तरह से शाम के 6.30 हो गए।

एनएसडी में अभिनय करते कलाकार।

पशुपति सर आए… हम लोग प्ले देखने अंदर गए और जब तक प्ले खत्म नहीं हुआ तब तक नाटककारों की अदाकारी देख अथर्व हंसता रहा। उसे बहुत मजा आ रहा था। चूंकि मैं भी पहली बार इस संस्थान में प्ले देख रहा था तो आनंद की अनुभूति हो रही थी ।

प्ले खत्म होने के बाद हम लोग बाहर निकले, चाय-पानी किया और मेट्रो से कमरे की ओर चल पड़े । घर पहुंचते पहुंचते करीब रात के 10 बज गए । अथर्व बिल्कुल थक गया था लेकिन उसके सवाल नहीं थके । जब तक सो नहीं गया एनएसडी में मंचित नाटक के बारे में ही सवाल करता रहा और दूसरी बार ले जाने के वादे के साथ सो गया ।

पशुपति शर्मा (दाएं) के साथ मित्र ।

एस के यादव, टीवी पत्रकार