अनिल सहनी के गोद लिए गांव पिलखी का हाल

अनिल सहनी के गोद लिए गांव पिलखी का हाल

ब्रह्मानंद ठाकुर

अनिल सहनी, पूर्व राज्यसभा सांसद

आदर्श गांव पर आपकी रपट सीरीज में हुकुम देव नारायण यादव और अनुप्रिया पटेल के गोद लिए गांव पर हमने अब तक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसी सीरीज में अब अनिल सहनी के गोद लिए गांव में पहुंचे ब्रह्मानंद ठाकुर। हमें इस शुरुआत की अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। कई और मित्रों ने अपने इलाके से सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिए गांव पर रिपोर्ट भेजने का वादा किया है। लखनऊ के साथी जयंत कुमार सिन्हा ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह के गाव से रिपोर्ट तैयार कर ली है। फिलहाल चलते हैं पिलखी और देखते हैं क्या है इस गांव का हाल।

चार साल पूरे हो गये राज्यसभा सांसद अनिल सहनी को मुजफ्फरपुर जिलान्तर्गत मुरौल प्रखंड के पिलखी गांव को गोद लिए हुए। ‘ कहां तय था चिरागां हर घर के लिए , रौशनी मयस्सर नहीं शहर के लिए ‘ वाली तर्ज पर यदि कहा जाय तो इस गांव में मूलभूत नागरिक सुविधाएं भी इस अवधि में  यहां के वाशिंदों को उपलब्ध नहीं कराई जा सकीं। अलबत्ता बैठकों, भाषणबाजी और आश्वासन  का दौर जरूर चलता रहा। कनीय से लेकर वरीय अधिकारियों तक ने  आश्वासन के सब्जबाग जरूर दिखाए। पिछले महीने राज्यसभा सांसद अनिल सहनी का कार्यकाल जब खत्म हुआ तो यहां के लोगों ने बस यही कहा – इस बार भी हम छले गये, आदर्श गांव का सपना चकनाचूर हुआ। न सडकें बनी, न अस्पताल चालू हुआ, बदहाल राजकीय नलकूप किसानों को मुंह चिढाते रहे। खेती और पशुपालन जब घाटे का व्यवसाय दिखाई देने लगा तो कुछ ने दूसरे राज्यों की ओर पलायन किया तो अधिकांश मजदूरों ने गांव के आस-पास चिमनी भट्ठा में अपनी जीविका की तलाश की। प्राथमिक शिक्षा पूरी कर किशोर उम्र के युवकों की आगे की पढाई का सपना टूटा। उन्होंने भी अपने कंधे पर घर- गिरस्ती का बोझ उठा लिया।


आदर्श गांव पर आपकी रपट-तीन

मुहिम के साझीदार- AVNI TILES & SANITARY

85-A, RADHEPURI EXTENTION, NEAR BUS STOP

M-9810871172,858598880

सांसद आदर्श गांव पर अगली रिपोर्ट जयंत सिन्हा की होगी। वो गृहमंत्री राजनाथ सिंह के गोद लिए गांव की तस्वीर हमसे साझा करेंगे। 


पीएम नरेन्द्र मोदी ने की अपील पर सांसदों ने अपने पसंद के गांव का चयन आदर्श गांव बनाने के लिए किया। राज्यसभा सांसद अनिल सहनी ने पिलखी गांव का चयन किया। इस राजस्व गांव में पिलखी, जुडावनपट्टी , कोरिगामा, वीराटोला और ठिकहा ये चार टोले हैं। अधिकांश पिछड़ी, अतिपिछड़ी, दलित और महादलित आबादी बहुल टोला। मुजफ्फरपुर – पूसा मार्ग पर अवस्थित पिलखी से करीब दो किलोमीटर दक्षिण जुडावनपट्टी और कोरिगामा  जाने के लिए दो सडकें हैं। एक पिलखी से जुडावनपट्टी भाया कोरिगामा एनएच 28 और सिहो रेलवे स्टेशन तक जाती है। करीब 5 कि.मी की लम्बाई  वाली यह आधी पक्की है और आधी कच्ची। कच्ची इसलिए कि सकरा और मुरौल प्रखंड की सीमा  से गुजरने के कारण  इसका पक्कीकरण बाधित है। इस बार बूढीगंडक नदी के तटबंध टूटने से इस इलाके में जो भयंकर तबाही मची थी उससे यह सडक गड्ढे मे तब्दील हो गई, जिसकी मरम्मत आज तक नहीं कराई गई है। जुडावनपट्टी से कोरिगामा तक की एक किलोमीटर सड़क के पक्कीकरण का कार्य चल रहा है। इस गांव तक जाने वाली दूसरी सडक गंगटी आश्रम  से जाती है। बाढ से यह सड़क भी पूरी तरह जर्जर हो चुकी है।

पीने का पानी क्या है इंतजाम 

स्कूल के कमरे में ही स्वास्थ्य उपकेंद्र

कोरिगामा और जुडावनपट्टी के लोगों को  पेयजल के लिए सिर्फ चापाकल का सहारा है। वरिष्ठ जेपी सेनानी और जन समिति के संस्थापक अध्यक्ष डी के विद्यार्थी बताते हैं कि इन दोनो गांवों मे 1977 में तत्कालीन विधायक शिवनन्दन पासवान के सौजन्य से चापाकल लगवाया गया था। आदर्श गांव के नाम पर सांसद ने यहां स्वच्छ पेयजल के मामले में कुछ भी नहीं किया। हर घर नल का जल भी इस गांव के लिए अभी सपना ही बना हुआ है। उन्होंने बताया कि 1977 से पहले जुडावनपट्टी और कोरिगामा में एक स्कूल तक नहीं था। यहां की जनता ने शांतिपूर्ण संघर्ष के माध्यम से 1977  में एक प्राइमरी स्कूल की स्थापना कराई। इस विद्यालय का नामाकरण लोक नायक जेपी के नाम पर करने की उनकी मांग आजतक पूरी नहीं हुई। फिलहाल यह विद्यालय मिड्ल स्कूल में अपग्रेड हो चुका है। यह संकुल विद्यालय भी है। दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि इसी स्कूल के एक कमरे में स्वास्थ्य उपकेन्द्र भी वर्षों से संचालित है।

सेहत की चिंता

कर्पूरी धर्मशाला

डीके विद्यार्थी बताते हैं कि कोरिगामा में महर्षि सहजानन्द- कर्पूरी धर्मशाला का निर्माण 2015 में कराया गया था।  इसका परिसर 10  कट्ठा में है, जो बिहार सरकार की जमीन है। इस खाली जमीन पर स्वास्थ्य उपकेन्द्र का भवन बनवा कर ग्रामीणों की अपेक्षाएं पूरी की जा सकती हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि सांसद और विधायक इसमें कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। पिलखी निवासी बुजुर्ग समाज सेवी  विनय कुमार  सिंह से जब सांसद आदर्श गांव की स्थिति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सपाट लहजे में कहा कि कुछ नहीं। वे इस बात से  भी आहत दिखे  कि गांव में करीब 8 करोड़ रूपये की लागत से निर्मित 30 शय्या वाले जननी- बाल सुरक्षा अस्पताल का भवन बन जाने के बावजूद सांसद ने आज तक उस अस्पताल को चालू कराने में कोई दिलचस्पी नहीं ली। इस अस्पताल के लिए यहां के एक ग्रामीण किशुनदेव चौधरी ने एक एकड़ जमीन दान में दी। आज से 6 साल पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके भवन का शिलान्यास किया था। भवन बन कर तैयार है। वे बताते हैं कि इस अस्पताल के लिए 50  कर्मियों का पद भी चार माह पहले सृजित हो चुका है।

 बिजली को लेकर शिकायत नहीं

 सांसद आदर्श गांव पिलखी में बिजली की स्थिति संतोषजनक है। हर गली-मुहल्ले में बिजली काफी पहले पहुंचा दी गई थी। बिजली आपूर्ति की स्थिति भी लगातार बेहतर हुई है। इसके बारे में किसी भी ग्रामीण को कोई शिकायत नहीं है। शिकायत है उन किसानों को, जिन्हें आज भी अपनी फसल की सिंचाई के लिए निजी नलकूप एवं विद्युत मोटर और डीजल पम्पसेट्स पर निर्भर रहना पड़ रहा है। गांव मे तीन राजकीय नलकूप हैं। एक तो पचास के दशक में गाड़ा गया था और दो लगभग एक दशक पहले। लेकिन ये तीनों नलकूप हाथी के दांत बने हुए हैं। इसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है। सांसद ने इन बंद पड़े नलकूपों को चालू करवा कर सस्ती सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में कोई पहल तक नहीं की। ऐसा यहां के किसान बताते हैं।

 तालीम के क्या हैं इंतज़ाम

पिलखी का दो कमरे का वह स्कूल जिसे अंग्रेजों ने 1927 में बनवाया था।

इस गांव में शिक्षा की स्थिति पहले भी काफी बेहतर रही है। गांव का एकमात्र प्राथमिक विद्यालय, पिलखी 1927 में स्थापित हुआ था। फिर मध्य विद्यालय में उत्क्रमित हुआ। आज यह उत्क्रमित हाई स्कूल है। वैसे इस हाई स्कूल में पूर्णकालिक हेडमास्टर तो नहीं हैं, लेकिन 5  विभिन्न विषयों के शिक्षक यहां पदस्थापित हैं। अंग्रेज के जमाने का बना विद्यालय भवन का दो कमरा आज भी उन बीते दिनों की याद दिला रहा है। बौद्धिक जगत में इस गांव का बड़ा ही गौरवपूर्ण मौजूदगी रही है। देवनारायण सिंह, श्रीमती सुधा सिंह, अशोक कुमार सिंह ( पूर्व मुख्य सचिव ,बिहार सरकार ) इसी गांव की माटी में पैदा हुए हैं। देवनारायण सिंह, श्रीमती सुधा सिंह शिक्षा विभाग के  सर्वोच्च पदाधिकारी रह चुके हैं।  आज भी यहां के अनेक लोग विभिन्न क्षेत्रों मे ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं। बावजूद इसके आज यहां शिक्षा की रोशनी धूमिल होती जा रही है। पिलखी के अलावे जुडावनपट्टी में एक मिड्ल स्कूल और कोरिगामा मे एक अजा प्राइमरी स्कूल है।

झोपड़ी में छिप गया इंदिरा आवास

फकीरा पासवान का परिवार- ये फकीरी कब मिटेगी?

मेरी मुलाकात हुई कोरिगामा टोला के फकीरा पासवान से। इन्होंने अपने इंदिरा आवास के सामने फूस की दो झोपड़ी इस तरह खड़ी कर रखी है कि इन्दिरा आवास दिखाई ही नहीं देता। वे बताते हैं कि उनका इन्दिरा आवास 16 साल पहले बना था। मात्र एक कोठरी है। कोठरी की छत से जब चट्टानें टूट कर गिरने लगीं तो उसके आगे खाली जमीन में फूस की झोपडी बना ली। उसी में  सपरिवार गुजारा करते हैं। इन्दिरा आवास बनाने की उनकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। तब 20 हजार रुपये इस योजना से मिला था। कहते हैं तीन हजार रुपये तो उनके पास पहुंचने से पहले ही बंट गए। गांव के चिमनी मालिक से ईंट खरीदा। लोकल बालू और ईंट वाली गिट्टी की व्यवस्था चिमनी मालिक ने ही की थी। बांकी रुपये ईटभट्ठा मालिक के चिमनी में 3 साल मजदूरी कर चुकाया। कुछ दिन सब कुछ ठीक रहा। फिर छत से पपड़ी उखर कर छोटी-छोटी चट्टानें गिरने लगीं। हादसे के डर से घर में सोना ही छोड़ दिया।

फकीरा ने शौचालय बनवाया, दरवाजे न जाने कब लगेंगे

फकीरा की मुसीबत ने यहीं उसका पिण्ड नहीं  छोडा। जब स्वच्छता अभियान शुरू हुआ तब हर घर शौचालय निर्माण  की बात होने लगी। कहा गया कि बना लो, 12000  रूपये मिलेंगे। फकीरा को शौचालय निर्माण  में हुआ खर्च मुंहजवानी याद है। ईंट 1400 अदद , सीमेंट 11 बैग , बालू एक टेलर , एस्बेस्टेस सीट 2 अदद – 1300 रुपये, मिस्त्री रिश्तेदार था, इसलिए मजदूरी नहीं लिया। अब गेट लगाना  बांकी है। दो  शौचालय बनवाया है। एक पुरुष और एक महिला के लिए। दोनों मे दरबाजा लगाने का  खर्च 2400  रुपये मिस्त्री मांग रहा है। लिहाजा दरबाजा अभी तक नहीं लगा है। इसके बाद शौचालय टंकी में रिंग डालना है। उसकी अलग एजेन्सी है। वह 4000  रुपये लेगा। फकीरा कहते हैं, रिंग का चार हजार रुपये काटकर उसे मिलेगा आठ हजार। वह भी जब मिलेगा तब न ? अभी तो पांच रूपये सैंकडा ब्याज पर कर्ज लेकर शौचालय बनवाए हैं।

शौचालय का संकट

दुखनी देवी का अपना दुख है

यह हाल केवल फकीरा का ही नहीं बिन्दी देवी, गुंजन, फूलो देवी, इंदु देवी, रंजु देवी, केवला देवी, रबिना देवी , मीना देवी, प्रमिला देवी, कमली देवी आदि महिलाओं का भी है। ये महिलाएं जीविका समूह से जुड़ी हुई हैं। जीविका दीदियों के दबाव पर इन सबों ने 5 महीना पहले 5 रुपये मासिक सूद पर कर्ज लेकर शौचालय बनवा लिया है। मुरौल प्रखंड को अधिकारियों ने ओडीएफ घोषित कर दिया। अब इस मद में मिलने वाली राशि पर टकटकी लगी हुई है कि कब राशि मिले की करजा वापस कर चैन की नीद वे सो सकें। मुस्मात  दुखनी देवी को इस बात का दुख है कि अबतक उसका शौचालय नहीं  बना। जीविका दीदी से कहा तो उसने मुखिया के यहां जाने के लिए कहा। जब मुखिया से मिली तो उन्होंने खुद से बना लेने की बात कही। अब बेचारी वृद्धा कहां से पैसे का जुगाड़ करे कि शौचालय बनाए।

बिन्दी देवी से पूछता हूं कि सांसद अनिल जी ने आपके गांव को आदर्श गांव बनाने के लिए अबतक कितना कुछ किया है ? मेरे इस सवाल पर बिन्दी देवी  का जवाब होता है – इस टोले में तो वे कभी आए ही नहीं। एक अन्य महिला जो जीविका समूह से जुड़ी है ने कहा कि हां, सांसद  के स्चच्छता अभियान वाली मीटिंग मे गंगटी आश्रम पर वह गई थी। तब सांसद ने कहा था कि नौजवान साथ देंगे तो वे यहां पूरा विकास करेंगे।

कुछ बातें मुखिया के मुख से

यहां से निकल कर मैं सीधा रुख करता हूं पिरखी गजपति पंचायत की मुखिया सीता देवी के आवास का। मेरे साथ जेपी सेनानी डीके विद्यार्थी भी हैं। मुखिया से जब मेरी मुलाकात होती है तो मैं पहला सवाल उनसे आदर्श ग्राम की अवधारणा के बारे में पूछता हूं। वे बताती हैं कि सांसद आदर्श ग्राम में पार्क, स्टेडियम , अस्पताल, हर गली पक्की सड़क निर्माण, प्रकाश की व्यवस्था, शौचालय, सार्वजनिक शौचालय , हर घर नल का जल, हर किसी को शिक्षा, जागरुकता, स्वरोजगार, स्कूलों मे खेल गतिविधियां, बालविवाह, दहेजप्रथा का उन्मूलन कर  सांसद द्वारा गोद लिए गांव को आदर्श गांव के रूप में विकसित करना था। मेरे इस सवाल पर कि इसमें चार सालों में अबतक क्या उपलब्धि हासिल हुई है, मुखिया ने सपाट लहजे में कहा कि कुछ भी नहीं। हुआ बस इतना ही कि केवल आदेश -निर्देश देने के लिए नेता, मंत्री और अधिकारियों का दौरा होता रहा। बैठकें और मीटिंग चलती रही।

सांसद की चिंता- फंड कहां से आए

अनिल कुमार सहनी, पूर्व राज्य सभा सांसद

इसके बाद राज्यसभा सांसद ( अब पूर्व) अनिल सहनी की बारी थी। मैंने उनसे मोबाईल पर उनके द्वारा गोद लिए आदर्श गांव  पिलखी मे कराए गये विकास कार्यों की बाबत जब पूछा तो उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने इस मद में किसी अतिरिक्त फंड की व्यवस्था नहीं की। सांसदों को एक-एक गांव गोद लेकर उसे आदर्श गांव बनाने का फरमान जारी कर दिया। अब यह तो सम्भव नहीं कि बिना राशि के विकास योजनाओं का कार्यान्वयन कराया जा सके। लिहाजा कुछ भी ऐसा उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ जिसकी जानकारी दी जा सके।

उन्होंने बताया कि अपने फंड से एक आंगनवाड़ी भवन, सड़क, और महम्मदपुर गोखुल हाई स्कूल में चहारदीवारी का निर्माण कराया है। अब यह अलग बात है कि सांसद ने जिन योजनाओं की चर्चा की है, वह दूसरे गांव कार्यान्वित हुई हैं। पिलखी के जगदीश राय इस बात से क्षुब्ध हैं कि  यात्रियों के भीड़भाड़ वाली जगह पिलखी पुल चौराहे पर सांसद ने एक सार्वजनिक शौचालय निर्माण, प्रकाश व्यवस्था और एक चापाकल लगाने तक की जरूरत को भी नजरअंदाज कर दिया। राज्यसभा सांसद अनिल सहनी का कार्यकाल भी पिछले महीने समाप्त हो चुका है। इसके साथ ही सांसद  के गोद लिए गांव पिलखी के आदर्श गांव बनने का सपना भी टूट कर मानो बिलख रहा है।


ब्रह्मानंद ठाकुर। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं।


आदर्श गांव पर आपकी रपट

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आदर्श गांव पर रपट का इंतज़ार है