पंडितजीका गायन ही देश-राग है

देवांशु झा

pandit_bhimsen_joshi_2सन चौरासी की बात है। रेडियो पर दोपहर डेढ़ बजे शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम आता था। स्कूल के छात्रावास से घर आने वाले बड़े भैया उन दिनों शास्त्रीय संगीत में रुचि लेने लगे थे। एक दिन उस कार्यक्रम में भीमसेन जोशी का गायन हुआ। राग था- वृंदावनी सारंग। करीब आधे घंटे के बाद जब गाना खत्म हुआ तो भैया अभिभूत होकर बोल पड़े-‘ऐसा गायन पहले नहीं सुना। कैसा निर्झर सा प्रवाह है उनके गायन में’! हम दोनों भाई सोचते रहे कि कंठ की कला और नाद सौन्दर्य का ऐसा मेल भला कैसे संभव है। भीमसेन जोशी उनके जीवन में शास्त्रीय संगीत के प्रति गहरी रुचि पैदा करने वाले प्रणेता गायक बने। उनका गायन हमें सम्मोहित कर गया था। फिर धीरे-धीरे जब हमने उन्हें बार-बार सुनना, तस्वीरों में देखना शुरू किया तो जोशीजी अपने असाधारण आलाप और अपनी स्वत:स्फूर्त भंगिमाओं और अपने आभामंडलसे हमारे मनमें अधिष्ठाता गायक के रूप में विराजने लगे।

यूं तो बड़े हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायकों की सूची बहुत लंबी है लेकिन अपने अपूर्व स्वर और आकर्षक व्यक्तित्व से जादू करने वाले गायक कम हैं। बीसवीं सदी में उस्ताद बड़े गुलाम अली खान ऐसे ही गायक थे और दूसरा नाम पंडित भीमसेन जोशी का ध्यान में आता है। उनका नाम, उनका स्वर और व्यक्तित्व तीनों मिलकर एक समष्टि का निर्माण करते हैं, जिसे हम भीमसेन जोशी के नाम से जानते हैं। वो इस समष्टि में ही पूर्ण होते हैं, उसमें कोई काट छांट या संपादन संभव नहीं है। ये कोई हवा-हवाई आकलन नहीं बल्कि स्वयं सिद्ध है, जिसे बड़ी ही सरलता के साथ समझा जा सकताहै।

pandit_bhimsen_joshi_1अस्सी और नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर विविधता में एकता के विषय पर सिने कलाकारों, संगीतज्ञों और खिलाड़िय़ों की मंडली के साथ दो कैप्सूल बनाए गए थे, उन दोनों ही कैप्सूल की शुरुआत जोशीजी के सुर से होती थी। मिले सुर मेरा तुम्हारा और बजे सरगम हर तरफ से, गूंजे बन कर देश राग। उन सभी सिने तारक-तारिकाओं और दिग्गज कलाकारों के बीच भीमसेन जोशी की मौजूदगी सबसे मोहक और विराट है। वो सितारों के सितारे बन कर छा गए और जिन्हें शास्त्रीय संगीत की समझ नहीं या रुचि नहीं वो भी जोशी जी के गुरु-गंभीर स्वर को सुनकर स्तंभित रह गए थे । ये असर हम जैसे श्रोताओं के जीवन पर ताउम्र रहेगा। भीमसेन जोशी के संपूर्ण व्यक्तित्व का गुण-धर्म ही यही है।

उनके बचपन की कहानी बहुत दिलचस्प है, जो इस बात को प्रमाणित भी करती है कि संगीत के प्रति उनमें असीम अनुराग था और सहज भाव से था। बहुत छोटी उम्र में धारवाड़ के छोटे से शहर रोन में वो लोकगायकों और वाद्य मंडलियों के पीछे मोहित भागे चले जाते थे और संगीत सुनते हुए मीलों चलने के बाद थककर कहीं भी बेसुध पड़ जाया करते। निश्चय ही बेसुधी के उन क्षणों में सुर ने चुपके से उनकी आत्मा में स्थायी डेरा डाल दिया था, जिसे वर्षों के तप और अपनी अंतर्दृष्टि से उन्होंने सुघड़ स्थापत्य दे दिया। संगीत सीखने की पहली लौ जोशी जी की आत्मा में तब जली जब उन्होंने उस्ताद अब्दुल करीम खान की ठुमरी सुनी ।ग्यारह वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया, अगले तीन वर्षों तक वो गुरु की खोज में बीजापुर, पुणे, ग्वालियर, दिल्ली, कलकत्ता, लखनऊ, रामपुर की खाक छानते रहे। यह एक तरह का महाभिनिष्क्रमण ही था । उनका गृहत्याग भी ज्ञान प्राप्ति के लिए था, संगीत-सरोवर में उतरने के लिए वो घर से चुपचाप चल पड़े थे। हालांकि तीन साल के बाद पिता ने उन्हें जालंधर से खोज निकाला। जोशीजी घर वापस लौटे और जिन गुरु की तलाश में उत्तर भारत में भटकते रहे वो तलाश घर में ही पूरी हो गई। किराना घराना के धुरंधर गायक, सवाई गंधर्व ने उन्हें शिष्य बनाना स्वीकार कर लिया था। फिर धीरे-धीरे गुरु-शिष्य परंपरा में गायन की एक भीमसेनी काया बनती चली गई।

अपने स्वरों की शुद्धि, ठहरी हुई तान के विलंबित तारतम्य, निर्झर जैसे प्रवाह, तकनीकी दक्षता, नाद सौन्दर्य, अतुलनीय नियंत्रण और विस्मयकारी विविधता के साथ पहले सुर से समापन के अंतिम विलय तक वो आपको बांधे रखते हैं। उनके उदार गायन में ग्वालियर घराने के बोल-तानों की चित्रमय उपस्थिति, आगरा घराने की लयबद्ध भव्यता, जयपुर घराने की कंठ की पूर्ण मुक्ति में गढ़ी गई कलाकारी और अंतत: किराना घराने की मौलिकता एक साथ है। वो कई घरानों को धारण करते हैं। उनके तराशे हुए स्वरों में हिन्दुस्तानी गायकी का श्रेष्ठ मिश्रण है, जो किसी और कंठ में दुर्लभ है।दरअसल जोशी जी एक विलक्षण गायक थे जो अपने सुरों की प्रभा से शास्त्रीय संगीत की सैद्धांतिक सीमाओं के पार उतर जाते हैं और हर वर्ग के श्रोता को एक उदात्त भावभूमि पर ले जाकर छोड़ देते हैं ।

pandit_bhimsen_joshi_3उनकी ईश्वरीय आवाज पीड़ा और परमानंद के भिन्न धरातलों की परतें खोल देती है और समान सरलता के साथ खोलती है। वो जिस उत्साह के साथ तोड़ी और कल्याण जैसे बड़े राग को विविधता में पेश करते हैं, उसी उत्साह से उनके छोटे रूप, राग भूप और अभोगी का निर्वहन करते हैं। इन दोनों भिन्न स्थितियों में श्रोता उनके गायन की गहराई और शक्ति का अनुभव कर सकता है जो भीतर अपनी परतें जमाती चली जाती है। कहां गायन को उठाने के लिए क्या त्याग देना जरूरी है ये उन्हें अच्छी तरह से पता था, इसीलिए वो कई बार निष्ठुर होकर बोल-तानों में माधुर्य से मुंह मोड़़ लेते हैं। आश्चर्य होता है कि वो किस तरह प्रकारांतर से अपने स्वरों को चमकीले और कोमल रंग प्रदान करते हैं और ऐसा करते हुए उनके कंठ को कोई कष्ट भी नहीं होता है। सूक्ष्म तानों को पकड़ना और क्षण भर में अपने गायन के सौन्दर्यशाली वैभव से परिचय करा देना, उनकी महानता है। उनके आलाप, बढ़त और बंदिश जहां समानुपातित और नियंत्रित हैं, ख्याल गायन में जहां उनका रेंज समुद्र की तरह विशाल है वहीं भाव गीत, ठुमरी, भजन और अभंग में वो सरलता से सुवासितहैं। उनके कई भजनों और मराठी अभंगों में रामया सीताराम का उच्चारण मात्र विह्वल कर जाता है। ऐसा लगता है साक्षात विट्ठल ही उनके स्वरों में गा रहे हैं। देव विट्ठळ तीर्थ विट्ठल… आताकोठे धावे मन तुझे चरण देखी लिया.. मन राम रंगी रंगले.. .सुमति सीताराम…कायाही पंढरी आत्माहा विट्ठल..चतुर्भुज झूलत श्याम हिंडोले..राजस सुकुमार मद नाचा पुतला जैसे अनेक भजनों को सुनते हुए ये अनुभव किया जा सकता है।

जोशीजी शुद्धतावादी गायक थे लेकिनउन्होंने खुदको किसी सीमा में नहीं बांधा। उन्होंने सिनेमा के लिए गाया, पार्श्व गायकों के साथ गाया। जब लता और मन्नाडे जैसे गायकों ने उनके साथ गाने में हिचकिचाहट जताई तो उनका उत्साहवर्धन भी किया। बसंतबहार फिल्म में मन्ना डे उनके साथ गाने के लिए तैयार नहीं थे। गाना था- केतकी गुलाब जूही चंपकवन फूले। तब जोशीजी ने मन्नादा का उत्साह बढ़ाया। इसी तरह भजन गाने की बात आई तो लता मंगेशकर उनके साथ गाने से हिचक रही थीं लेकिन भीमसेन जोशी के कहने पर उन्होंने साथ में गाया। इस एल्बम के कई भजन यादगार हैं.. राम का गुणगान करिए और सुमति सीताराम तो बहुत लोकप्रिय और भावप्रवण हैं। जोशी जी कहा करते थे कि गायन हमेशा श्रोता के लिए करो, उनकोध्यान में रख कर करो, जबकि कुमार गंधर्व जैसे गायक मानते थे कि गायन स्वांत: सुखाय होना चाहिए। जब हम जोशीजी के गाने में उतरते हैं तो साफ पता चलता है कि वो क्यों श्रोताओं के लिए गाने की बात करते थे। उन्होंने अपने संगीत को इतना तराश लिया था कि वहां श्रोता और गायक में कोई भेद ही नहीं रह गया। दोनों एक हो गए थे। दरअसल संगीत में यह एक तानसेनी ऊंचाई पा लेने जैसी उपलब्धि है, जहां श्रोता और गायक का एकात्म हो जाता है ।

pandit-bhimsen-joshi 4जीवन में उन्हें गायन के अलावा दो और चीजें प्रिय थीं। एक अपनी फियट कार और दूसरी मदिरा। मदिरा तो एक समय उन पर मोहिनी की तरह हावी होती जा रही थी और उनका अनन्य प्रेम, उनकी महान कला कुम्हलाने लगी। कई बार शराब के नशे में वो स्टेज पर अपने सुरों से भटके लेकिन उनके जीवन में संगीत का मोहपाश सबसे प्रबल था। मदिरा की आदत छूटनी ही थी सो छूटी और सुरों ने जैसे अगला-पिछला सब हिसाब एक साथ कर लिया। इस कोहरे को चीरने के बाद उनकी कला उमड़ आई। उन्होंने अपने जीवन का श्रेष्ठ गायनकिया। पंडित भीमसेन जोशी उस कड़ी के अंतिम मूर्धन्य गायक थे, जिनसे भारतीय शास्त्रीयसंगीत का आकाश दीप्तिमान है। वो उन चंद गायकों में से एक थे जो उत्तर और दक्षिण में समादृत रहे। बीसवीं सदी के महान गायकों में अब्दुल करीम खान, सवाई गंधर्व, गंगू बाई हंगल, फैयाज खान, बड़े गुलाम अली खान, खानसाहब अमीर खां, डीवी पलुस्कर, केसर बाई केरकर, मोगु बाई कुर्डीकर, हीरा बाई बड़ौदेकर विनायकराव पटवर्धन, नारायण राव व्यास, कुमार गंधर्व, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, मल्लिकार्जुन मंसूर जैसे बड़े नाम हैं। इस श्रृंखला को जोशीजी ने अपने स्वरों से समृद्ध किया है। उनकी परंपरा के गायक गायिकाओं में अब किशोरी अमोणकर ही बची हैं। नए गायकों में कुछ बड़े प्रतिभाशाली जरूर हैं जिन्होंनेअपनी अलग लीक बनाई है लेकिन गायन में भीमसेनी ऊंचाई को छूने वाला फिलहाल कोई नहीं दिखता।

लेखक और समालोचक विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं कि पंडित जी को सुनते हुए ‘बादल राग’ कविता को पढ़ने का अनुभव होता है। मेघ और वंर्षा का जैसा भव्य शब्द संयोजन और ध्वनि सैौन्दर्य इस कविता में है कुछ वैसा ही भाव उनके सुरों से आता है… निश्चय ही भीमसेन जोशी उस बादल राग के गायक हैं जो निदाघ में लंबी प्रतीक्षा के बाद गाढ़ा नीला रंग लिये पूरे आकाश पर उमड़ आता है। उनके आलाप में उसी मेघमय आसमान का सौन्दर्य है और जब वो बरसता है तो सबकुछ सराबोर हो जाताहै । जोशी जी का गायन अनन्य, आत्मीय, आदरणीय और देश-कालसे परे है।

devanshu jha


देवांशु झा। उन चुनिंदा पत्रकारों में शामिल हैं जो व्यावसायिक मजबूरियों में चाहे खुद को संयमित कर ले जाएं, लेकिन उनकी छटपटाहट दूसरे प्लेटफॉर्म पर अभिव्यक्ति का रास्ता ढूंढ ही लेती है। कुछ लोग उन्हें खारिज करने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन उनकी दलीलों को पूरी तरह नज़रअंदाज करना आसान नहीं होता। आप उनसे 9818442690 पर संपर्क कर सकते हैं।


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