गंगा के दियारे में अफीम की खेती का सच क्या है?

गंगा के दियारे में अफीम की खेती का सच क्या है?

⁠⁠⁠मोहन मंगलम

कुछ साल पहले राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम ने गंगा दियारे का दौरा कर दियारे की धरती को मशरूम उत्पादन के लिए उपयुक्त बताया था। इसके लिए वैज्ञानिकों की टीम ने दियारे के किसानों के बीच मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण शिविरों का भी आयोजन किया था ताकि दियारे के किसान मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में नया कृतिमान स्थापित कर सकें। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण लेने के बाद आधा दर्जन से अधिक किसानों ने मशरूम की खेती को आजमाया भी लेकिन हाल के दिनों में गंगा दियारे में जो कुछ देखने को मिला उससे पुलिस प्रशासन समेत क्षेत्र के आम किसानों के होश उड़ गए।

कम मेहनत में अधिक रुपये कमाने की ललक में किसानों ने दियारे में अफीम की खेती शुरू कर दी है। दियारे में हो रही चर्चाओं पर भरोसा करें तो यह सब पिछले पांच साल से चल रहा है लेकिन अब जाकर प्रशासन तक ये जानकारी पहुंची है। हरकत में आये पुलिस प्रशासन ने गंगा दियारे के उत्तरी धमौन, दक्षिणी धमौन, चेतनपुर, किनायतपुर चकसीमा आदि गांवों में लगभग पांच एकड़ में लगी अफीम की फसल को नष्ट किया। हालांकि मामला उजागर होने बाद ताराधमौन,जाैनापुर, दरबा, सुलतानपुर आदि गांवों के किसानों ने पुलिस के पहुंचने से पहले खेत की जुतायी कर फसल को नष्ट कर दिया। अनुमान यह लगाया जा रहा है कि गंगा दियारे में 15-20 एकड़ में किसानों ने अफीम की फसल लगी रखी थी।

कहा जा रहा है कि इस क्षेत्र के अधिकतर लोगों का संबंध बंगाल के फरक्का, मालदह आदि क्षेत्रों में है। लोगों का कहना है कि वहीं से अफीम के बीज भी यहां तक पहुंचे। घर के पिछवाड़े से शुरू हुई यह खेती धीरे-धीरे कट्ठा व एकड़ में तब्दील हो गई। जब लोगों को कमाई होने लगी तो कुछ किसान फरक्का और मालदह से अफीम की खेती के जानकारों को भी बुला लाए। यहां से उपजने वाले अफीम को फरक्का और मालदह आदि शहरो में खपाया जाने लगा। धीरे-धीरे दियारे में अफीम के किसानों की संख्या बढ़ती चली गई। पूर्व में इस कारोबार में एक-दो लोग ही शामिल थे लेकिन अफीम किसानों की संख्या बढ़ी तो आपसी तकरार भी बढ़ा जिससे मामला पुलिस तक पहुंचा।

छापेमारी के बाद पुलिस अनुमान लगा रही है कि दस कट्ठे में अफीम की खेती से पांच करोड़ रुपये तक की आमदनी होती है। पुलिस का मानना है कि गंगा दियारे में अफीम के खरीदार शंखा चूड़ी बेचने के बहाने घुमा करते थे। अफीम की खेती करने वाले लोग शंखा चूड़ी ले लो की आवाज पर समझ जाते थे कि अफीम का  खरीदार है। लोग उससे अफिम का सौदा करते थे। अब पुलिस इस पूरे नेटवर्क की तफ्तीश में जुट गई है।


मोहन मंगलम। समस्तीपुर के निवासी मोहन मंगलम ज़मीनी मुद्दों पर लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे हैं। हिंदुस्तान और प्रभात खबर जैसे प्रतिष्ठित अख़बारों से जुड़े रहे।

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