मूक बधिर अभिनेता और मंच का नैसर्गिक आकर्षण

मूक बधिर अभिनेता और मंच का नैसर्गिक आकर्षण

संगम पांडेय

अपनी निःशब्द प्रस्तुति ‘लव योर नेचर’ में निर्देशक युमनाम सदानंद सिंह ने मंच पर एक छोटा-मोटा जंगल ही उतार दिया है। किसी पहाड़ी जगह पर इस जंगल में एक बंदा अपने एक बंदर के साथ रहता है। जंगल के बीच उसका छोटा-सा घर है। घर के पास एक हैंडपंप लगा है जहाँ गाँव की औरतें पानी भरने आती हैं। बीच-बीच में एक डाकिया और कुछ गाँव वाले भी। इस रमणीक दृश्य में बंदर बने अभिनेता एम इनाओतोन सिंह की मौजूदगी देखने लायक है। उसका मुँह खुला रहता है और खाली वक्त में वह बैठा सिर पर हाथ फेरता और खुजलाता है। वरना मंच के बीच में लटकी दो पट्टियों में जाकर बिल्कुल उल्टा लटक जाता है या फिर लंबी छलाँग मारकर झाड़ियों के पार बैकस्टेज में ओझल हो जाता है। वह केला भी लापरवाही से आधा ही खाकर फेंक देता है, और पता नहीं कूड़ेदान में जाकर क्या ढूँढ़ता है। या मंच के बीचोबीच दोनों टाँग फैलाकर पसर जाता है।

एम.इनाओतोन एक मूक-बधिर अभिनेता हैं और उनके अभिनय में कहीं कोई शोशेबाजी नहीं है। निर्देशक बंदर के रंग-ढंग दिखाने के लिए उन्हें चिड़ियाघर वगैरह ले गए थे। प्रस्तुति के बाद जब दर्शकों ने उनके लिए हवा में हाथ लहराए तब भी उनकी संजीदगी में कोई खास फर्क दिखाई नहीं दिया। इंफाल के सदानंद सिंह साढ़े तीन से भी ज्यादा बरसों से माइम में ही काम कर रहे हैं। लेकिन उनके यहाँ यह चेहरे को पोतने वाली प्रचलित माइम नहीं है, बल्कि उसका सीधा सा अर्थ है—मूकाभिनय।

प्रस्तुति में माहौल को अच्छी डिटेलिंग के साथ तैयार किया गया है। एक अदना सी थीम पर यहाँ मंच लगातार काफी व्यस्त है। साइकिल पर आया डाकिया बंदर से डर रहा है। डर की उसकी मुखमुद्राएँ देखने लायक हैं। पानी भरने आईं औरतों की मूक चर्चाओं के हावभाव में भी उनकी सीधी-सादी दुनिया स्पष्ट दिखती है। इसी क्रम में संगीत, समूह-नृत्य और इसी तरह के कई दृश्य हैं। फिर पर्यावरण बनाम टेक्नालाजी के मुद्दे पर बनी इस प्रस्तुति में उद्योगपतियों की फौज और उनकी मशीनें घुस आती हैं, जिससे हिंसा पैदा होती है। गाँव के सीधे-सादे लोगों के बरक्स उद्योगपति बुरे लोग और कार्टून किस्म के तौर-तरीकों वाले हैं।

लगातार एक ही दृश्य होने के बावजूद प्रस्तुति काफी कसी हुई है। एक क्षण को भी उसमें कोई ढीलापन दिखाई नहीं देता। सदानंद सिंह किसी तीखेपन, किसी चाक्षुष चमत्कार के बजाय एक नैसर्गिकता के जरिए दर्शक को बाँधते हैं। उसके मंच विधान में एक अपनी ही गहराई है, जो वहाँ हो रही गतिविधियों से इतर भी दर्शक को जोड़े रखती है।


संगम पांडेय। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। जनसत्ता, एबीपी समेत कई बड़े संस्थानों में पत्रकारीय और संपादकीय भूमिकाओं का निर्वहन किया। कई पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। नाट्य प्रस्तुतियों के सुधी समीक्षक। हाल ही में आपकी नाट्य समीक्षाओं की पुस्तक ‘नाटक के भीतर प्रकाशित’।