किसानों का दर्द तो समझो ‘सरकार’

किसानों का दर्द तो समझो ‘सरकार’

ब्रह्मानंद ठाकुर

इन दिनों पूरा हिंदुस्तान लाइन में खड़ा नज़र आ रहा है । शहर से लेकर गांव तक एक जैसी तस्वीर देखने को मिल रही है ।  ऐसा लग रहा है पहली बार देश में समानता आई हो । बस फर्क इतना है कि जिन बेइमानों को जेल में होना चाहिए था वो मौज कर रहे हैं और ईमानदार जनता  अपना काम छोड़ लाइन में ईमानदारी की कीमत चुका रहा है । वैसे देश का हर ईमानदार नागरिक पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले से खुश है, लेकिन क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं कि आम लोगों की समस्याओं को समझे । सिर्फ बातें करने भर से काम नहीं चलता और ना ही भावनात्मक बातों से देश का पेट भरता है । किसान अनाज उगा नहीं पाएगा तो हर कोई भूखा हर जाएगा ।  पिछले दो दिन मैं मुजफ्फरफुर के ढोली में तिरहुत कृषिमहाविद्यालय गया। गेहूं का बीज जो लेना था।

फाइल फोटो
फाइल फोटो

यहां बीज का वितरण 9नवम्बर से शुरू हुआ यानी ठीक उसी दिन जिस दिन से देशभर में कुछ जगहों को छोड़ 500और1000के नोट अमान्य करार दे दिए गए । मैं अपने जरूरत के मुताबिक बीच लेना चाहा तो पैसा रुकावट बनकर खड़ा हो गया, उस पैसे की कीमत एकाएक खत्म हो गई जिसे मैंने ईमानदारी से कमाई थी । बीज केंद्र पर कर्मचारी पुराने पैसे लेने को तैयार नहीं हुए लिहाजा मैंने निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र डॉ.देवेन्द्र प्रसाद से फोन पर बात की।उन्होंने बीच का रास्ता निकालते हुए जरूरत के हिसाब से बीज लेने के लिए डीडी या सम्बंधित बैंक खाते में आरटीजीएस करने की सलाह दी। कुल मिलाकर उस दिन मुझे बीच नहीं मिला और मुझे खाली हाथ घर लौटना पड़ा । खैर अगले दिन मैंने अपने गांव के बैंक की शाखा से आर टी जी एस कर दिया और काउटर फाईल लेकर कई जगहों के चक्कर काटे और आखिरकार दूसरे दिन मुझे खेत में बुआई के लिए बीच मिल गयावो हजार  ।

prabhat-khabarवो तमाम किसान अब भी निराश थे जो दूसरे जिले से यहां बीच लेने आए थे ।उन्हें तो सरकार के फैसले के बारे में ठीक से पूरी जानकारी भी नहीं मिली थी हालांकि दूसरे दिन किसानों को इतना पता चल गया कि बैंक पुराने नोट ले रहे हैं पेट्रोल पंप समेत तमाम जगहों पर पुराने नोट चल रहे हैं तो किसानों ने विक्रय केंद्र अधिकारियों से पुराने नोट लेने का अनुरोध किया उनका तर्क था कि जब बैंक ऐसा नोट स्वीकार कर रहा है और बीज बिक्री का पैसा बैंक में ही जमा होना है तो 500और1000का नोट लेने में क्या हर्ज है । मुझे भी उनका यह तर्क दमदार और उचित लगा लेकिन मेरे लगने से क्यावहां तो कोई यह समझने को तैयार नही था। लिहाजा ज्यादातर किसानों को निराश होकर लौटना पड़ा । उनके चेहरे पर हताशा और खीझ के भाव साफ देखे जा सकते थे, लेकिन किसानों का दर्द समझने की न सरकार को फुरसत दिखी ना स्थानीय मीडिया के पास किसानों तक पहुंचने का वक्त दिखा । हो सकता है किसानों का यह दर्द उनकी नजर में कोई अहमियत न रखता हो।

आखिर किसानों के प्रति कृषि वैज्ञानिक और अधिकारियों की इस बेरुखी का कारण क्या हो सकता है ? कृषि विश्व विद्यालय द्वारा उत्पादित विभिन्न फसलों के बीज गुणवत्ता की दृष्टि से किसानों के लिए काफी विश्वसनीय होता है। तभी तो मधुबनी ,बेगुसराय ,दरभंगा ,मोतिहारी ,हाजीपुर ,सीतामढी ,मुजफ्फरपुर के किसान खासकर रबी की खेती के मौसम में गेहूं,मसूर ,चना ,मटर, तोरी, पीला सरसो ,मक्का आदि के बीज के लिए इस कृषि कालेज का रुख करते रहे हैं। इस बार बड़े नोट के घनचक्कर में बीज के लिए आने वाले किसानों को निराशा ही हाथ लगी ।यह सवाल अब भी अपनी जगह कायम है कि क्या डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्व विद्यालय के वर्तमान कुलपति किसानों के हित मे 500और1000का नोट लेकर उन्हें कम से कम 24 नवंबर तक बीज नहीं दिला सकते या सरकार पेट्रोल पंप की तरह किसानों के विक्रय केंद्रों पर पुराने नोट का मान्यता नहीं दे सकती है । आखिर किसानों से इतनी बेरुखी क्यों दिखाई जाती है ?

brahmanand


ब्रह्मानंद ठाकुर/ बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के रहने वाले । पेशे से शिक्षक फिलहाल मई 2012 में सेवानिवृत्व हो चुके हैं, लेकिन पढ़ने-लिखने की ललक आज भी जागृत है । गांव में बदलाव पर गहरी पैठ रखते हैं और युवा पीढ़ी को गांव की विरासत से अवगत कराते रहते हैं । 

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