नेहरू का कद छोटा कर पटेल को बड़ा नहीं बना सकते

नेहरू का कद छोटा कर पटेल को बड़ा नहीं बना सकते

ब्रह्मानंद ठाकुर

बंशी बाबा आज जब बहुत दिनों के बाद गांव आए तो  मनकचोटन भाई, बटेसर, झिंगुरी सिंह, फुलकेसर , बदरुआ, हुलसबा और परसन कक्का को साथ लिए हम बंशी बाबा के दूरा पर पहुंच गये उनसे मिलने। आजादी की लड़ाई मे  बंशी बाबा खूब जम कर भाग लिए और कई  बरस तक जेल में भी रहे। मगर  उनकी देशभक्ति  देखिए कि जब  अन्य स्वतंत्रता सेनानी पेंशन पाने के लिए एंडी-चोटी का जोर लगा रहे थे , तब बंशी बाबा ने यह कहते हुए पेंशन लेने से इन्कार कर दिया था कि उन्हें अपनी  देशभक्ति (मातृ भक्ति) की कीमत नहीं चाहिए। लिहाजा हमलोगों ने  सोचा कि  आज भारत के प्रथम  प्रधानमंत्री और बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू का 129 वां जन्म दिन है और उनके अनन्य सहयोगी  लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ उनके सम्बंधों को लेकर देश में सियासी घमासान मचा हुआ है तो क्यों न बाबा से इस मुद्दे पर विस्तार से बतियाया जाए ।

घोंचू उवाच पार्ट 20

हमलोगों को एक साथ आए देख बाबा की खुशी उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी।  ऊ परसन कक्का, मनकचोटन भाई  और हमको तो देखते ही पहचान गये मगर  अन्य नवतुरिया का परिचय  मैंने खुद बंशी बाबा से कराया।  बात गांव-घर के हाल-चाल, खेती-पथाड़ी और लड़िकवन सब के पढ़ाई लिखाई से होते हुए जब देश की राजनीति पर आई तो मैंने बंशी बाबा से सीधे पूछ दिया, ‘बाबा, आप स्वतंत्रता सेनानी हैं। गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू, बिनोवा जी और जयप्रकाश बाबू जैसे महान लोगों के साथ आजादी की लड़ाई में  आप शामिल रहे हैं । सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182  मीटर ऊंची प्रतिमा स्थापित करने और नेहरू को बदनाम करने के पीछे कैसी राजनीति छिपी हुई है?’

बंशी बाबा मेरे सवाल पर कुछ देर तक मौन रहे । फिर एक नजर हमलोगों पर डालते हुए कहने लगे ‘ देखो  इतिहास में यह तथ्य दर्ज है कि राष्ट्रीय आजादी आंदोलन की दो मुख्य धारा थी। समझौतावादी और गैरसमझौतावादी। गैर समझौतावादी धारा के नायक सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारी थे, जबकि समझौतावादी धारा के नायक थे महात्मागांधी, पंडित नेहरू, वल्लभाई पटेल आदि। समझौतावादी धारा के  नेताओं को क्रांतिकारी गतिविधियां बिल्कुल पसंद नहीं थीं। एक सच्ची घटना बताता हूं। तब बंगाल विशेष रूप से क्रांतिकारियों का केन्द्र था। शांति घोष और सुनीति चौधरी नामक दो किशोरियों ने बंगाल में कुम्मिला के जिला मैजिस्ट्रेट स्टीवेंस को उनके बंगले पर गोली मार कर हत्या कर दी। बाद में इन दोनों किशोरियों को आजीवन कारावास की सजा मिली। तब सरदार पटेल ने इन दोनों क्रांतिकारी किशोरियों को नारी जाति का कलंक बताया था। इतना ही नहीं, पटेल ने देश की आजादी की आखिरी लडाई 1946 की नौसेना  की बगावत का विरोध  किया था।  यह सही है कि देश को  आजादी समझौतावादी धारा के रास्ते मिली । नेहरू  और पटेल देश के  आजादी आंदोलन के बड़े नेता थे । आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण की भूमिका में इन दोनों में से किसी को कमतर नहीं आंका जा सकता। पटेल नेहरू के अनन्य सहयोगी थे।  आज आरएसएस और भाजपा  पटेल को नेहरू से अलग कर उन्हें हिन्दुत्व की राजनीति का नायक बताने पर तुली हुई है। यह सारा दुष्प्रचार भाजपा अपने छिपे हिन्दुत्ववादी  एजेन्डे को लागू करने के लिए कर रही है। वैसे भी भाजपा और आरएसएस के पास आजादी आंदोलन के विरासत के रूप में   सावरकर के माफीनामा के सिवा  कुछ भी नहीं है।

 आज आरएसएस और भाजपा जिस हिन्दू राष्ट्र की वकालत कर रहे हैं क्या उन्हें पता है कि  जब साम्प्रदायिकता से लड़ते हुए पंडित नेहरू बार-बार यह कह रहे कि धर्मनिरपेक्ष राज्य  के  अतिरिक्त दूसरा कोई भी राज्य सभ्य नहीं हो सकता। सरदार पटेल   ने तो इससे एक कदम आगे बढ़कर हिन्दू राष्ट्र की चर्चा को एक पागलपन भरा विचार तक कह दिया था। जाहिर है कि साम्प्रदायिकता और हिन्दू राष्ट्र के  पक्षधर भाजपा और आरएसएस के आदर्श ऐसे धर्मनिरपेक्ष विचारधारा वाले पटेल कभी भी नहीं हो सकते। कौन नहीं जानता कि पटेल राष्ट्रीय एकता के पक्षधर थे। वे  आजीवन जनसंघ और वर्तमान भाजपा के पैतृक  हिन्दुत्ववादी संगठन आरएसएस के कट्टर विरोधी  रहे। महात्मागांधी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने ही संघ  पर प्रतिबंध लगाते हुए उसके हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में बंद करा दिया था लेकिन पंडित नेहरु ने पटेल से कहा था कि किसी को जेल में डाल कर नहीं बल्कि उसकी विचारधारा से संघर्ष करना है। तब जाकर संघ के कार्यकर्ता जेल से रिहा हुए।  पंडित नेहरू को जिस बात के लिए  हमलोग याद करते हैं, वह है उनकी विचारधारा।  भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद  भारत को  ‘हिन्दू इण्डिया’ बनाने की जब मांग होने लगी तो नेहरू ने उस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष भारत की परिकल्पना को साकार रूप दिया। उनके इसी प्रयास का  नतीजा है कि भारत आज भी दुनिया के महान लोकतांत्रिक देशों मे शुमार है।

बाबा थोड़ी देर के लिए रुके। हमलोगों की तरफ प्रश्न भरी निगाह से देखा, मानो पूछ रहे हों’ समझ रहे हो मेरी बात ? ‘मैंने कहा, ‘हां बाबा, आपसे महापुरुषों के बारे मे सुनना अच्छा लगता है । जरा नेहरु जी की वैज्ञानिक दृष्टि पर भी कुछ कहिए । ‘बाबा फिर शुरू हो गये, ‘ देखो, किसी भी देश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए विज्ञान और तकनीक का विकास जरूरी होता है। इसलिए पंडित नेहरू ने  साइंटिफिक टेम्पर की बात की । अंधविश्वास, अंध आस्था और पुरानी परम्परा से बाहर निकल कर वैज्ञानिक युग में प्रवेश करने का आह्वान किया। कौन नहीं जानता है कि आजादी से  3 साल पहले  हमारे देश में 30 लाख लोग भूख से मरे थे। औद्योगिक विकास शून्य था। एक छोटी मशीन तक हम नहीं बना सकते थे। पंडित नेहरू ने अपने 15 साल के कार्यकाल में 4 प्रतिशत विकास दर हासिल कर एक मिशाल कायम की थी। आज हमारे देश के कर्णधार 5-6 प्रतिशत विकासदर हासिल करने में ही हांफ रहे है । उन्होंने बच्चों को देश का भविष्य बताते हुए उन्हें इस तरह से गढ़ने की बात कही जिससे वह भविष्य की चुनौतियौं का साहस पूर्वक सामना कर सके, चुनौतियों से घवराए और भागे नहीं आज बालदिवस है?  इस दिन को इसी रूप में समझने की जरूरत है। जानते हो, नेहरू को कोसने वाले और पटेल को गले लगाने वाले लोग आज वास्तव में क्या कर रहे  हैं ?

आज देश को फिर उसी पुराने अंधविश्वास की ओर धकेला जा रहा है, जिससे बाहर निकलने की बात कभी पंडित नेहरू ने कही थी। जानते ही हो, वैज्ञानिकों के सम्मेलन में हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री कह ही चुके हैं कि भारत में प्राचीन काल में प्लास्टिक सर्जरी हुआ करती थी । एक इंसान के ऊपर हाथी का सिर लगाना प्लास्टिक सर्जरी से ही सम्भव हुआ था । गांधारी के 100 पुत्र  स्टेम सेल के जरिए हुए थे।  हमें टेस्टट्यूब बेबी बनाने आता था इसलिए हमने कर्ण को घड़े से पैदा किया। आदि आदि। बताओ  उच्च तकनीक की बात करने वाले किसी देश का प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी जब प्राचीन परिकल्पनाओं को ही विज्ञान बताने लगे तो इससे देश का कैसे भला हो सकता है ?

आज ये लोग कह रहे हैं कि नेहरू की जगह यदि वल्लभ भाई पटेल प्रधानमंत्री  होते तो इस देश का नक्शा ही कुछ और होता। जबकि सच्चाई यही है कि यदि पटेल प्रधानमंत्री हुए होते तो आज न भाजपा होती और न आरएसएस। इसे सरदार के तत्कालीन जनसंघ और आरएसएस के प्रति  नजरिए से बखूबी समझा जा सकता है। इससे बड़ी बिडम्बना क्या हो सकती है कि साम्प्रदायिक घृणा फेलाने, माब लिंचिंग की घटनाओं को अंजाम देने, अनुसूचित जाति और अल्पसंखयकों पर लगातार हमला करने वाले, धर्मनिरपेक्षता के ताने बाने को ध्वस्त करने वाले लोग आज सरदार पटेल को अपना आदर्श मान रहे हैं। उनकी 182 मीटर ऊंची प्रतिमा का नाम स्टेचु आफ यूनिटी  रखा गया है। भाई, यह सब धोखा है। इतना कह कर बाबा चुप हो गये। मैंने यह कहते हुए बंशी बाबा से चलने की इजाजत मांगी कि बाबा , कद प्रतिमाओं के बडे बनाए जा सकते हैं ,लोगों के नहीं।


ब्रह्मानंद ठाकुर। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं।