रामनाथ कोविंद को ‘दलित चश्मा’ हटाकर भी देखें

रामनाथ कोविंद को ‘दलित चश्मा’ हटाकर भी देखें

राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को बधाई देते हुए पीएम मोदी, अमित शाह।

एस के यादव

क्या टीवी पर दिखने वाले, अखबारों की सुर्खियों में बने रहने वाले, हिंदू, मुस्लिम, दलित, अगड़ा-पिछड़ा करके चर्चा बटोरने वाले ही नेता होते हैं ? क्या ऐसे लोगों की वजह से पार्टियों का आस्तित्व है ? क्या ऐसे नेता ही दलों के कर्णधार हैं ? क्या सुर्खियों से बाहर रह कर काम करने वाला नेता नहीं है? क्या ऐसे लोग राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनने की योग्यता नहीं रखते ? ये सवाल इसलिए कि जब से बिहार के गवर्नर रामनाथ कोविंद को NDA ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर घोषित किया है तब से उनकी योग्यता पर नहीं उनकी जाति पर चर्चा हो रही है। ये चर्चा सिर्फ फेसबुकिया विद्वान ही नहीं कर रहे हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और जैन समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अमित शाह भी दलित, दलित कर रहे हैं। अमित शाह ऐसा क्यों कर रहे हैं सभी जानते हैं। चूंकि राजनीति में वोट का जो महत्व है उसकी तुलना में किसी और चीज का महत्व शायद ही हो। लेकिन कई अखबारों की हेडलाइन्स, न्यूज चैनल्स की सुर्खियों में जो दलित -दलित हो रहा है, उसका मकसद क्या है ? जो पत्रकार फेसबुक पर सक्रिय हैं वो भी कोविंद की योग्यता से ज्यादा उनके दलित होने पर विमर्श कर रहे हैं। एनडीए ने सर्वसम्मति से बिहार के गवर्नर कोविंद के नाम पर मुहर लगा दी है तो जाति को लेकर ही चर्चा क्यों ?

71 साल के रामनाथ कोविंद का जन्म 01 अक्टूबर 1945 को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के झींझक कस्बे के परौख गांव में हुआ था । प्राथमिक शिक्षा संदलपुर ब्लॉक के खानपुर गांव में मिली। कानपुर के डीएवी से लॉ की पढ़ाई की। बताया जा रहा है कि उसी वक्त सिविल सेवा के लिए भी इनका चयन हुआ था लेकिन गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद कोविंद सिविल सेवा छोड़कर बतौर वकील काम करते रहे । 1977-79 तक केंद्र सरकार की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट में वकील रहे। 1980-83 तक सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से स्टैंडिंग काउंसिल रह चुके हैं। साल 1990 में रामनाथ कोविंद बीजेपी से जुड़े। उन्होंने 1993 तक दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कुल 16 सालों तक प्रैक्टिस की है। 8 अगस्त 2015 को मोदी सरकार ने उन्हें बिहार का गवर्नर बनाया। रामनाथ कोविंद मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके निजी सहायक भी रहे। कानून के प्रकांड विद्वान बताए जाते हैं।

साल 1990 में कोविंद बीजेपी से जुड़े। उस वक्त बीजेपी की राजनीतिक गलियारों में हैसियत काफी सिमटी हुई थी। ऐसी स्थिति में कोविंद बीजेपी के साथ चल दिए थे। जो लोग आज बीजेपी से जुड़ने के लिए पागल हुए जा रहे हैं, शायद ऐसे लोग बीजेपी के उस दौर में नहीं जुड़ते। लेकिन रामनाथ कोविंद जैसे कई लोग बीजेपी को मजबूत बनाने का काम करते रहे। 1994 में राज्यसभा सांसद चुने गए और 12 साल तक यानि 2 टर्म सांसद रहे। कोविंद आदिवासी, होम अफेयर, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सामाजिक न्याय, कानून न्याय व्यवस्था और राज्यसभा हाउस कमेटी के चेयरमैन भी रहे। गवर्नर्स ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के भी सदस्य रहे हैं। 2002 में कोविंद ने संयुक्त राष्ट्र के महासभा को संबोधित किया। यही नहीं, छात्र जीवन में कोविंद ने अपने समाज की महिलाओं के लिए काम किया। ऐसा कहा जाता है कि वकील रहने के दौरान कोविंद ने ग़रीब दलितों के लिए मुफ़्त में क़ानूनी लड़ाई भी लड़ी। रामनाथ कोविंद की शादी 30 मई 1974 को सविता कोविंद से हुई थी। इनके बेटे का नाम प्रशांत और बेटी का नाम स्वाति है।

रामनाथ कोविंद का संसदीय क्षेत्र बुंदेलखंड का जालौन जिला पड़ता है। साल 2014 लोकसभा चुनाव में इन्हें टिकट नहीं मिला था लेकिन इनका कार्यक्षेत्र बुंदेलखंड ही रहा। बुंदेलखंड में जाटवों के बाद कोरी दूसरी सबसे बड़ी दलित जाति है। ये समुदाय पारंपरिक रूप से बुनकर है और बाकी दलितों से सोशल स्टेटस में ऊपर है। वीरांगना झलकारीबाई इसी बिरादरी की हैं। इस विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड में बीजेपी ने सभी सुरक्षित सीटों पर कोरी प्रत्याशी उतारे। अब रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया गया है। ये बीजेपी की गैर जाटव दलित राजनीति का महत्वपूर्ण पड़ाव है। और शायद इसीलिए बीजेपी ने योग्यता के साथ-साथ वोट बैंक को ध्यान में रखकर इनका नाम आगे किया। क्योंकि यूपी समेत पूरे देश में दलितों का कोई मजबूत नेतृत्व नहीं है और इसी का फायदा उठाकर बीजेपी दलितों को अपनी ओर खींचने की कोशिश में है। लेकिन इस समीकरण के बावजूद रामनाथ कोविंद में वो सभी योग्यता मौजूद है जो एक राष्ट्रपति में होनी चाहिए।

अब सवाल ये है कि मान लीजिए कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने दलितों को अपने पाले में करने के लिए जाति का कार्ड खेला है, तो क्या ये कार्ड चलेगा ? पत्रकार महेंद्र यादव अपने फेसबुक वॉल पर लिखते हैं- ये कार्ड-वार्ड क्या है ? कार्ड खेलने वालों के साथ जनता जो खेल खेलती है वो सिर्फ जनता ही जानती है। बानगी मैं देता हूं । ज्यादा पुरानी नहीं , नई ही है।
1- कांग्रेस ने एक कार्ड खेला था कुछ साल पहले, सचिन को राज्यसभा भेजने का। फिर इसे और पुख्ता करते हुए उन्हें भारत रत्न दे दिया गया। सोच ये थी सचिन समर्थक इससे खुश हो जाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
2- एक कार्ड आंध्र में खेला, बंटवारे का, फिर मुकरने का। इस बीच केंद्र में थोक के भाव मंत्री बनाए गए। वाईएसआर के निधन के बाद रोसैय्या फिर रेड्डी कार्ड खेला गया। आंध्र और तेलंगाना में कांग्रेस की दुर्गति सबको पता है।
3- जब सिख कार्ड खेला गया , तब पंजाब में लगातार दो बार कांग्रेस को हारना पड़ा।
4- बंगाली राष्ट्रपति देकर कांग्रेस को कौन सी बढ़त मिल गई बंगाल में ?
5- अखिलेश ने स्वच्छ छवि का जो कार्ड खेला। उसका हश्र सबने देखा। माया के मुस्लिम कार्ड का हाल बताने की जरूरत है?
6- दलित वोट मिलने की गारंटी 19 में ? इस कार्ड के जरिए ? मेरे तमाम मित्र इसे बीजेपी का सुपर स्ट्रोक बता रहे हैं। लेकिन कार्डों का हश्र अक्सर कार्डों के साथ आने वाले जोकर जैसा ही होता है। बिहार में जीतनराम मांझी कार्ड का हस्र भी एक उदाहरण है।

बीजेपी संसदीय बोर्ड की मीटिंग की अध्यक्षता करते पीएम मोदी ।

दिक्कत ये नहीं है किे बीजेपी दलित कार्ड खेल रही है। वो राजनीतिक दल है जाहिर सी बात है वो राजनीति ही करेगी और सभी समीकरणों का ध्यान रखेगी। विपक्षी दल भी जाल फेंककर या कटिया लगाकर ‘मछली’ पकड़ते हैं। ये कोई नया एजेंडा नहीं है। हमें दिक़्क़त है शब्दावली से, मंशा से। ‘बुद्धिजीवी’ वर्ग का दलित शब्द पर बार-बार इतना जोर क्यों ? अगर देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाले व्यक्ति की जाति बार-बार ज़ोर देकर बता रहे हैं तो मतलब आप उस वर्ग की खिल्ली उड़ा रहे है? कितने लोग जानते है कि स्वर्गीय के.आर. नारायणन, दलित वर्ग से ताल्लुक रखते थे ? उनका जब चयन हुआ तो इतना ढिंढोरा नहीं पीटा गया। जब 2012 में प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बने थे तो क्या मीडिया ने चलाया था कि ब्राह्मण देश का राष्ट्रपति बना? कांग्रेस ने खेला ब्राह्मण कार्ड ? फिर रामनाथ गोविंद के मामले में ऐसा दोहरापन क्यों? योग्यता का सम्मान कीजिए और भावी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को शुभकामनाएं दीजिए। अगर कोई भ्रष्टाचार का आरोप है या अपने किसी रिश्तेदार को लाभ पहुंचाने का आरोप है तो सवाल उठाइए।

2 thoughts on “रामनाथ कोविंद को ‘दलित चश्मा’ हटाकर भी देखें

  1. नमस्कार मै आपके बिचार से पुर्ण तया सहमत हूँ धन्यवाद राकेश धन्यवाद राकेश सिंह परमार पूर्वांचल समाज

  2. बडा ही सटीक विश्लेषण ।कावलियत किसी जाति विशेष की बपौती कभी नहीं रही। मनुष्य के ग्यान , बुद्धि , और उसकी मनुष्यता को जाति के खाऔचे मे डाल कर देखने वालो को दिनकर की ‘रश्मिरथी ‘एक बार पढ लेना चाहिए जिसमें कर्ण ने परशुराम से लेकर द्रोणाचार्य जैसे गुरु का पर्दाफाश किया है। आज हमारे मुल्क को जाति की नहीं पुरुषार्थ की जरूरत है मेरे दोस्त । ऐसी अनर्गल बातें करने वालों के खुद का कद छोटा हो जाता है।

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