रामलीला में मंच से पहले ‘मारीच वध’ क्यों?

रामलीला में मंच से पहले ‘मारीच वध’ क्यों?

अभिनेता नवाजुद्दीन और साथी कलाकार ।
अभिनेता नवाजुद्दीन और साथी कलाकार ।

शंभु झा

जब जिंदगी दिल्ली नहीं थी, तब की बात है । तब रामलीला देखने का बड़ा उत्साह रहता था। बचपन से लेकर कॉलेज के दिनों तक रामलीला का इंतजार बेसब्री से करता था। रामलीला का मंचन कभी स्थानीय कलाकार करते थे तो कभी बाहर से भी नाटक मंडली बुलाई जाती थी। कुल मिलाकर बड़ा आनंद आता था।

उस समय तो इतनी समझ नहीं थी (वैसे सच तो यह है कि अब ही मैंने कौन से समझदारी के झंडे गाड़ दिए हैं) लेकिन जब कभी फ्लैशबैक में जाता हूं तो लगता है कि वो रामलीलाएं सिर्फ एक ड्रामा नहीं, एक सामाजिक संदेश होती थीं। मुझे यह जानने की काफी उत्सुकता रहती थी कि रामलीला में कौन सा किरदार कौन कलाकार निभा रहा है। अगर कोई पुरुष कलाकार महिला का पात्र निभा रहा होता था (ज्यादातर मामलों में ऐसा ही होता था) तब तो यह जिज्ञासा और बढ़ जाती थी कि इस बार सीता का रोल कौन करेगा और सूर्पणखा कौन बनेगा, लेकिन न मैंने कभी पूछा और न कभी किसी ने बताया कि रामलीला में एक्टिंग करने वाला फलां कलाकार इस या उस धर्म का है।

कभी यह सवाल ही नहीं उठा कि मारीच, रावण, मेघनाद या फिर श्रीराम या लक्ष्मण के गेट-अप में जो अभिनेता स्टेज पर उतरा है, उसका मजहब क्या है। हमें तो इस बात से मतलब होता था कि कौन किस रोल में जंचता है। किस भोंदू एक्टर को संवाद याद नहीं रहते हैं, पर्दे के पीछे से ‘प्रॉम्पट’ करना (पर्दे के पीछे छिप कर एक आदमी धीमे स्वर में डायलॉग बोलता है, और स्टेज पर मौजूद कलाकार उसे सुनकर दोहराता जाता है) पड़ता है और कौन पांच-पांच वाक्य के संवाद फर्राटे से ‘डिलीवर’ करता है। इसका धर्म से कोई लेना-देना है, यह बात बुद्धि, विवेक और तर्कशक्ति तीनों से परे थी।

गांव के कलाकारों के साथ रिहर्सल करते अभिनेता नवाजुद्दीन ।
गांव के कलाकारों के साथ रिहर्सल करते अभिनेता नवाजुद्दीन ।

दो दिन पहले जब पता चला कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी को मुजफ्फरनगर में रामलीला में अभिनय करने से रोक दिया गया है तो मैं हिल गया। पहले तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है। मैंने फौरन क्रॉसचेक किया और ये देख कर हैरान रह गया कि शिव सैनिकों ने नवाजुद्दीन को उनके ही गांव की रामलीला में रोल नहीं निभाने दिया। नवाजुद्दीन रामलीला में मारीच का किरदार निभाने वाले थे लेकिन शिव सैनिक सरासर पॉलिटिकल गुंडई पर उतर आए और कहा कि वो किसी मुसलमान को रामलीला में हिस्सा नहीं लेने देंगे।

नवाजुद्दीन क्या करते वो लौट गए लेकिन साथ ही ये भी कहा कि अपने इलाके की रामलीला में एक्टिंग करना उनके बचपन का सपना था। नवाजुद्दीन आज एक स्टार कलाकार हैं। सलमान खान से लेकर मनोज वाजपेयी तक के साथ हिट फिल्में दे चुके नवाजुद्दीन सिद्दीकी की अभिनय प्रतिभा का लोहा पूरा देश मानता है, फिर भी उनका ख्वाब है कि वो अपने गांव की रामलीला के स्टेज पर उतरें। इसके लिए नवाजुद्दीन मुंबई से मुजफ्फरनगर आए। वो बाकायदा मारीच के रोल के लिए रिहर्सल भी कर रहे थे लेकिन शिव सैनिकों ने बीच में आ कर बवाल खड़ा कर दिया।

nawazddin2इसका पूरे देश में जबर्दस्त रिएक्शन हुआ, प्रतिक्रिया इतनी तीव्र थी कि बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने नवाजुद्दीन से मिल कर पूरे प्रकरण को ‘कूल डाउन’ करने की कोशिश की। शिव सेना के स्थानीय नेताओं का यह सियासी स्टंट निश्चित रूप से बैकफायर कर गया। नवाजुद्दीन सिद्दीकी तो मारीच बनने वाले थे, जो कि रामायण का एक छोटा विलेन है लेकिन इस पूरे खेल में शिव सेना की इमेज एक बड़ी विलेन जैसी बन कर उभरी, जिस पर शायद अब शिव सेना वाले भी पछता रहे होंगे।

मुझे जिस बात ने सबसे ज्यादा झकझोरा वह थी कि आखिर राम के देश में नवाजुद्दीन को रामलीला करने से कैसे रोका जा सकता है। मेरी पहली प्रतिक्रिया थी कि अगर नवाजुद्दीन को रोकने वाली शिव सेना हिंदुत्व की ब्रांड एंबेसडर है तो मैं इस तरह का हिंदू नहीं हूं। मेरा हिंदुत्व कहता है कि अगर कोई मुसलमान अभिनेता नवरात्रि के दौरान मुंबई से अपने गांव आता है और अपने गांव की रामलीला में रोल निभाता है तो ऐसे शख्स की इज्जत की जानी चाहिए, उसकी तारीफ की जानी चाहिए न कि उसे धमका कर बेइज्जत करके भगा देना चाहिए। इस लिहाज से शिव सेना ने जो किया वो हिंदुत्व को बदनाम करने वाली हरकत है।

nawazddin1रही बात भगवान राम की तो रामायण पढ़िए, रामचरितमानस का अध्ययन कीजिए, उसमें कहीं नहीं लिखा है कि श्रीराम केवल हिंदुओं के देवता हैं। राम तो इस पूरी सृष्टि के ईश्वर हैं। मेरी नजर में श्रीराम पूरे ब्रह्मांड के देवता हैं। वो ‘युनिवर्सल गॉड’ हैं। भगवान राम जितने उद्धव ठाकरे के हैं उतने नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भी हैं। जिसका मन साफ है, भगवान उसके हैं। रावण तो ‘हिंदू’ ही था ब्राह्मण था (मैं जानता हूं कि इस पर काफी ज्यादा बहस की गुंजाइश है, लेकिन फिलहाल लेख के विषय तक ही केंद्रित रहता हूं), लेकिन राम ने उसका वध किया और इसीलिए दशहरा मनाया जाता है।

हो सकता है कि नवाजुद्दीन का श्रीराम से जुड़ाव सिर्फ स्टेज तक सीमित हो और किसी हिंदू की भक्ति उसे मंदिर तक ले जाती हो। दोनों के विश्वास में फर्क हो सकता है। फिर भी नवाजुद्दीन से रामलीला में हिस्सा लेने का अधिकार तो नहीं छीना जा सकता है।nawazuddin-tweet
एक बात और कचोटती है कि आखिर एक समाज के रूप में हम कहां जा रहे हैं। बुढ़ाना, मुजफ्फरनगर जहां यह घटना हुई, वहां के लोगों ने इसका विरोध क्यों नहीं किया? अगर लोकल पब्लिक जरा एकजुटता दिखाती और नवाजुद्दीन के पक्ष में खड़ी हो जाती तो यह नौबत नहीं आती। लेकिन अफसोस है कि हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहां ‘स्मार्ट फोन’ सबके हाथ में है, लेकिन उसमें कोई ऐसा ‘एप्प’ नहीं है जो लोगों को ये समझा सके कि राम का कनेक्शन धर्म से नहीं दिल से है इस दुनिया में जो भी रावण नहीं है, वो राम है।


sambhuji profile

शंभु झा। महानगरीय पत्रकारिता में डेढ़ दशक भर का वक़्त गुजारने के बाद भी शंभु झा का मन गांव की छांव में सुकून पाता है। फिलहाल इंडिया टीवी में वरिष्ठ प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत। दिल्ली के हिंदू कॉलेज के पूर्व छात्र।

One thought on “रामलीला में मंच से पहले ‘मारीच वध’ क्यों?

  1. ये शिवसेना वाले राम को समग्रता.मे कब समझ पायेंगे ?

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