बदलाव बाल क्लब-इस धार से ठंडी हवा आती तो है!

बदलाव बाल क्लब-इस धार से ठंडी हवा आती तो है!

ब्रह्मानंद ठाकुर

बदलाव बाल क्लब की कहानी कार्यशाला की शुरुआत जितने हलचल भरे वातावरण में हुई समापन उससे कहीं ज्यादा धमाकेदार रहा। बच्चों से साथ वक़्त कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। इस दौरान समाज के हर तबके का सहयोग मिला। साहित्यकार, रंगकर्मी, शिक्षक, समाजसेवी, अधिकारी सभी ने बदलाव बाल क्लब की इस मुहिम की तारीफ की। कार्यशाला के समापन समारोह के मुख्य अतिथि रहे तीन पीढ़ियों को शिक्षित कर चुके 90 साल के हरिवंश नारायण सिंह। पेशे से शिक्षक रहे हरिवंशजी ने बच्चों को सर्टिफिकेट के साथ आशीर्वाद भी दिया और सफलता का मंत्र भी। उन्होंने कहा कि जरूरत हैं हमें दृढ संकल्पित होने की, अगर हम मन में ठान लें तो कुछ भी मुश्किल नहीं और सफलता हमेशा हमारे कदम चूमेगी।

समारोह में शामिल युवा कवि, गज़लकार और प्राध्यापक डाक्टर पंकज कर्ण ने दुष्यंत कुमार की पंक्तियां ‘इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है। नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है और कहीं पर धूप की चादर बिछा के बैठ गये, कहीं ये शाम सिरहाने लगा के बैठ गये’’ सुना कर बच्चों में नया जोश भरा। समापन समारोह में बच्चों ने अपनी पेंटिंग का भी प्रदर्शन किया। खास बात ये रही कि बच्चों ने कार्यशाला में अलग-अलग दिन शामिल हुए संचालक- विन्देश्वर, दीपक जी, रुबी गुप्ता, सुरेन्दर् प्रसाद, राजीव कुमार और रंगकर्मी सुनील कुमार की कहानी को चित्रों के जरिए प्रदर्शित किया और मणिकांत,  शिवकांत और शीलमणि ने इन चित्रों को अपने कैमरे में कैद किया।

बंदरा प्रखंड के युवा प्रखंड विकास अधिकारी विजय कुमार पिछले कई दिनों से बच्चों के साथ वक्त बिता रहे थे। अपने व्यस्त कार्यक्रम के बाद भी वो काफी देर तक बच्चों को सुनते रहे। विजय जी का पेंटिंग से गहरा नाता रहा है, लिहाजा उन्होंने कहानी को तस्वीरों के जरिए कैनवास पर उकेरने में बच्चों की काफी मदद भी की। बीडीओ विजय ने बाल क्लब की इस मुहिम को बच्चों के भीतर साहित्य और संस्कृति से संस्कारित करने वाला अदभुत प्रयास बताया। विजयजी ने कार्यशाला के दौरान बच्चों को स्वरुचि से (सरकारी खजाने से नहीं) किताबें लाकर भेंट की। साथ ही बीच में एक दिन कार्यशाला के दौरान बच्चों को नास्ता के साथ-साथ गिफ्ट का भी इंतजाम कराया।

सच कहूं तो वर्कशॉप के आखिरी दिन मेरे मन में बार-बार यही भाव आ रहा था कि ‘अभी न जाओ छोड़ कर कि मन मेरा भरा नहीं’। छोटे छोटे, प्यारे-प्यारे हंसते-खिलखिते बच्चों की कहानी कार्यशाला के समापन की बात से ही मन उदास सा होने लगा, लेकिन इस उम्मीद से दिल को सुकून भी मिल रहा था कि एक दिन बच्चे फिर जुटेंगे, आम का बगीचा फिर बच्चों से गुलजार होगा। लिहाजा, बच्चों की उत्सुकता को देखते हुए प्रेमचंद जयंती के मौके पर 31 जुलाई को पेंटिंग प्रतियोगिता और कहानी प्रतियोगिता का ऐलान भी किया गया।


ब्रह्मानंद ठाकुर। BADALAV.COM के अप्रैल 2017 के अतिथि संपादक। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। गांव में बदलाव को लेकर गहरी दिलचस्पी रखते हैं और युवा पीढ़ी के साथ निरंतर संवाद की जरूरत को महसूस करते हैं, उसकी संभावनाएं तलाशते हैं।