महोबा की जलमुहिम के नायक तारा पाटकर

महोबा की जलमुहिम के नायक तारा पाटकर

 

कीर्ति दीक्षित

विरोध प्रदर्शनों की मानव श्रृंखलाएं हमने बहुत देखीं, पर आज ये तस्वीरें देखिये और इनमें मुस्कुराती मानव श्रृंखलाओं को आत्मसात कीजिए, क्योंकि  समाज उत्कृष्टता सरकार के कालों से नहीं ऐसी प्रेरणाओं से ही प्राप्त कर सकता है।

लाल बाबाई बाने में खिचड़ी दाढ़ी में दिखने वाले इन शख्स का नाम है, तारा पाटकार, पूर्व में पत्रकारिता से जुड़े रहे और आज एक आन्दोलन बन चुके हैं, विरोध प्रदर्शन का नहीं उत्साह का, विश्वास का। तारा जी उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के रहने वाले हैं, अपने क्षेत्र के विकास के लिए लम्बे समय से संघर्षरत हैं, अपने इलाके में एम्स जैसे अस्पताल की मांग के लिए महीनों उपवास पर रहे, इसके अतिरिक्त सड़क, बिजली, शिक्षा जैसे तमाम मुद्दों को लेकर प्रायः संघर्षरत रहते हैं। रोटी बैंक जैसी संकल्पना के प्रणेता हैं। किन्तु आज ये एक ऐसा उदाहरण बन गये हैं जो कहता है कि प्रयास कभी विफल नहीं होता।

महोबा का ऐतिहासिक गोरखगिरी पहाड़ बाबा गोरखनाथ की सिद्धस्थली मानी जाती है, यहाँ पर एक तालाब भी है, किन्तु पठारी क्षेत्र होने के कारण अब ये तालाब सूख चुका था, इसको पुनर्जीवित करने के लिए एक दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता थी, मार्ग अत्यंत दुर्गम है, ऊंचाई भी लगभग दो हजार फीट है अतः जेसीबी जैसी मशीनों का पहुंच पाना लगभग असंभव ही था, सरकारी, प्रशासनिक मदद के लिए ज्ञापन दिये गये लेकिन स्थिति वही जो हमेशा से रहती है, आपके ज्ञापन की तस्वीरें किसी अखबार की कतरन बनकर रद्दी में बिक जाती है और ज्ञापन पत्र किसी फाइल में दबकर कीट पतंगों का भोज्य बन जाता है।

 लेकिन यदि मन दृढ़ संकल्पित हों तो किसी की आवश्यकता नहीं होती, आज से लगभग बीस दिन पहले तारा पाटकार जी एवं उनके दो चार साथियों ने मिलकर इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया, प्रातः साढ़े पाँच बजे से उनका कार्यक्रम आरम्भ होता और शाम अंधेरा होने तक चलता, बिना किसी शोर के, बिना किन्ही नारों के, बिना किसी अपेक्षा के! अपने कर्म में रत ये लोग इस सिद्ध बाबा के तालाब की खुदाई और पहाड़ पर स्वच्छता का अभियान चलाने लगे थे, पर उनके निष्काम भाव ने शहर के सैकड़ों लोगों को इस काम को करने के लिए प्रेरित किया है, क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या महिलाएं, युवा हर वर्ग के लोग आज इस जून की जलाती धूप में श्रमदान में लगे हैं, इस महायज्ञ में जो श्रमदान करने में असमर्थ हैं वे इन लोगों के लिए भोजन आदि की व्यवस्था करते हैं, सफाई उपकरण आदि की व्यवस्था कर रहे हैं, सारा शहर मानो एक आन्दोलन बन गया हो, नेताओं से लेकर प्रशासनिक अमलों को भी इस आन्दोलन में आना ही पड़ा।

बाबा गोरखनाथ का ये तपाश्रम आज एक और तप का साक्षी बन गया है, बिना किसी शिकायत, और आशा के तसले उठाते ये लोग श्रम तपस्वी हो गये हैं, इनके चेहरों पर बिखरी ये मुस्कान एक आत्मसंतुष्टि का भाव है साथ ही संदेश है कि यदि समाज अपनी बेहतरी के लिए स्वयं आगे बढ़कर जुट जाएगा तो सरकारें, प्रशासन, संस्थाएं सबको आपके साथ आना ही होगा। वर्षों से समाज के विकास के लिए नंगे पैर चलने वाले इस समाजसेवी को देखकर शिवमंगल सिंह जी की ये पंक्तियां सत्यार्थ प्रकाशित हो उठती हैं।

गति प्रबल पैरों में भरी फिर क्यों रहँ दर-दर खड़ा

जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पड़ा

जब तक न मंजिल पा सकूँ तब तक मुझे ना विराम है

चलना हमारा काम है।


कीर्ति दीक्षित। उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के राठ की निवासी। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट रहीं। पांच साल तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों में नौकरी की। वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता। जीवन को कामयाब बनाने से ज़्यादा उसकी सार्थकता की संभावनाएं तलाशने में यकीन रखती हैं कीर्ति। जनऊ नाम से प्रकाशित आपका पहला उपन्यास काफी चर्चा में रहा ।