थोड़ी सी जगह लिबरल डेमोक्रेट को भी दे दीजिए

थोड़ी सी जगह लिबरल डेमोक्रेट को भी दे दीजिए

राकेश कायस्थ

राजनीतिक शब्दावली में जिसे लिबरल डेमोक्रेट कहते हैं, मैं उसी तरह का आदमी हूं। वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के संपर्क में बराबर-बराबर रहा हूं, इसलिए झुकाव किधर है, यह तय कर पाना मुश्किल है। बहुत सी सामाजिक परंपराओं में आस्था है। धर्म भी मानता हूं, इसलिए परंपरागत अर्थ में आप मुझे दक्षिणपंथ की तरफ झुका आदमी समझ सकते हैं। मैं उन लोगों में नहीं हूं, जिन्हें अपनी इस पहचान से शर्म आये।

चक्कर ये है कि सेंटर लगातार खिसक रहा है, इसलिए वाम और दक्षिण के सारे हिसाब-किताब गड़बड़ा गये हैं। आजकल आडवाणी जी सेक्यूलर हैं और देश में बढ़ रही तानाशाही प्रवृति को लेकर घनघोर रूप से चिंतित है। कुत्ते के बच्चे तक की मौत पर जार-जार रोने वाले मोदी जी यकीनन लिबरल हैं और उमा भारतीजी की मानें तो अपने पंथ प्रधानजी मार्क्सवादी भी हैं। अब मोदीजी ये सब हो गये तो फिर योगीजी क्या कहलाएंगे? उन्हे राइट विंग नेशनलिस्ट कह लीजिये। मतलब खिसकते-खिसकते मुझे राइटिस्ट से अल्ट्रा लेफ्टिस्ट वाले कॉलम में ही आना होगा, कोई और जगह बचती नहीं है। बहुत सारे भाई लोगों की कृपा से जल्द ही मैं नक्सली और देशद्रोही भी कहलाउंगा।

विचारधाराएं उसी तरह खिसक रही हैं, जैसे नये प्रमाणिक संघी शोध के मुताबिक आर्यों की मूल तपोभूमि बिहार से खिसक कर नॉर्थ पोल जा पहुंची थी। मुझे उम्मीद है कि आने वाले वक्त में देशभर में अंबेडकर के बड़े-बड़े मंदिर बनेंगे, वैदिक रीति से उनमें प्राण प्रतिष्ठा होगी और उन्हें कोई अवतार घोषित किया जाएगा। लेफ्ट, राइट सेंटर आप जो भी हों, वो बातें अब ज्यादा मायने नहीं रखतीं। महत्वपूर्ण ये है कि आप इस सरकार के साथ हैं या नहीं हैं। अगर आप कहते हैं कि कुछ मामलों में साथ हैं और कुछ मामलों में नहीं हैं, तो यह नहीं चलेगा। आपको मजबूर किया जाएगा कि आप कोई एक रास्ता चुनें।

ज्यादातर लोगों ने अपना रास्ता चुन लिया है। वे नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, वसुंधरा राजे सिंधिया और मनोहरलाल खट्टर के साथ हैं। इनके साथ होने की इकलौती शर्त यही है कि आप कोई सवाल ना पूछें। बीजेपी के वोटर कभी ये नहीं पूछते कि हमने विकास के लिए वोट दिया तो ये बताइये कि पंद्रह साल में इंप्लायमेंट जेनेरेशन की रेट सबसे कम क्यों हैं, निर्यात सबसे निचले स्तर पर क्यों है या फिर नोटबंदी से सचमुच देश को क्या मिला? दरअसल बीजेपी के वोटरों ने विकास के लिए वोट दिया ही नहीं। उन्होंने जिस काम के लिए वोट दिया है वो काम देश और प्रदेश की सरकारें बखूबी कर रही हैं।

नरेंद्र मोदी भागवत जी के सपनों का भारत बना रहे हैं। योगी आदित्यनाथ मोदीजी के सपनों का प्रदेश बना रहे हैं। गोरक्षक और एंटी रोमियो दस्ते योगीजी के सपनों का समाज बना रहे हैं। मोरल पुलिसिंग से लेकर गोरक्षा के नाम पर होनेवाली हत्या तक जो कुछ भी इस समय हो रहा है, वो बीजेपी के वोटरों की उम्मीदों के अनुरूप हो रहा है। वोटर जश्न मना रहे हैं। कुछ बेचारे इज्ज़त बचाने के लिए पब्लिक पोश्चरिंग कर रहे हैं। बहुत बुरा हुआ, बड़ा शर्मनाक है, वगैरह, लेकिन समाज जिस रास्ते पर बढ़ रहा है, आने वाले दिनों में इस पोश्चरिंग की भी ज़रूरत नहीं रहेगी। पोश्चरिंग करने वाला भी सेकुलर कहलाएगा। खुलकर नाचिये क्या दिक्कत है?

अब रही बात हाय-हाय करने वालों की। उन्हें अपने आपसे पूछना होगा कि आखिर वे चाहते क्या हैं? अगर यह तस्वीर आपको वाकई डराती है तो फिर यह समय सड़क पर उतरने का है, दूसरा कोई और रास्ता नहीं है। राजनीतिक सवाल हमेशा राजनीतिक ताकत से हल होते हैं और राजनीतिक ताकत खैरात में नहीं मिलती। उसके लिए संघर्ष करना पड़ता है, जैसा बीजेपी ने दशकों तक किया। अगर आपकी चिंता सोशल मीडिया पर प्रोग्रेसिव इंटलेक्चुअल दिखने भर की है तो मौका आपके फलने-फूलने का है, जो कर रहे चुपचाप करते रहिये और सरकार में चोर दरवाजे से अपनी सेटिंग भी बनाये रखिये।


rakesh-kayasthराकेश कायस्थ।  झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय । खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ, टीवी टुडे,  बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों स्टार स्पोर्ट्स से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।