मार के डर से ईमान की बात न कहूं क्या ?

मार के डर से ईमान की बात न कहूं क्या ?

                                       वीरेन नंदा

ये किस्से मेरे नहीं, उनके हैं; जिनकी जिंदगी के किस्से मेरे संग साथ गुजरे। या जिनके साथ गाहे बगाहे जुड़ा । इन किस्सों में शामिल पात्र इस किस्सागोई की बुनियाद रखने को वर्षों से उकसाता रहा । बल्कि रह-रह कर सच की उंगली से मिर्ची सा लहकाता रहा । और उस लहर से सुसुआता-किस्सों का सूत्र पकड़ने तब से बेचैन । बेशक उन किस्सों को गढ़ने में, पात्र या तो उनके स्वयं में मौजूद रहे हैं या फिर उनकी अच्छाईयों, बुराइयों, करतूतों, कारगुज़ारियों, चालाकियों या  चालबाजियों में ।

इस मुल्क की सच्चाइयाँ,- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सर्वोपरि सांस्कृतिक सच्चाइयाँ यूँ ही सन्निपातग्रस्त नहीं होती । या हो रही है। इस दुष्काल में उन जिंदा किस्सों की ओर क्यों ले जा रहा आपको ? जहाँ जिंदा लोग मुर्दा हुए जा रहे और मुर्दा जिंदों की गति सांस बन रहे हों ।

इन किस्सों में किसके कपड़े उघड़ जायेंगे, कौन नंग धरंग हो जायेगा? कौन मुँह पर रूमाल डाल मुँह छुपायेगा? कि मारने मरने पर उतर आयेंगे ? इन सबका जबाब भी इन किस्सों के पात्र ही बतायेंगे । तिल का ताड़ और पहाड़ को राई बताने वाले आप से टकराएंगे । इन किस्सों को सुन पढ़ बहुतों गालियां देंगे कि आनंद लेंगे । चिड़चिड़ाएँगे कि धकियांगे। यह उनके अपने भीतर के पात्र बयाँ कर देंगे । इन तमाम बातों की परवाह से परे, कि – मार के डर से ईमान की बात न    कहूँ क्या ?

ये हलफनामा है मेरी जिंदगी में आये उन संगी-साथियो का । जिनमें कई दोस्तों ने यह कहने का हौसला दिया। उनमें पहला नाम मेरी जाने जाना का है । उसका तकलिया कलाम ” आई हेट यू ” , जिस पर मेरा कहना -” सेम टू यू ”  ने, किस्से को पेश करने का सूत्र यूँ पकड़ाया कि किस्सों का पिटारा खुल – खुलखुलाकर रेंगने लगा।   तो चलिए शुरू करते हैं किस्सागोई।

वीरेन नंदा के किस्से पार्ट 1

घर से सटे दक्षिण आम और लीची के पेड़ों से अटा पड़ा भरा है-बड़ी ईदगाह । ईद और बकरीद के नमाज़ समय हीं यह लकदक हो चमक उठता वर्ना जंगल झाड़ से पटा रहता। साँप, नेवला, उदविलाव जैसे प्राणी इसके रखवाले होते । केवल ईद बकरीद के वक़्त ये नमाज़ पढ़ने कहीं और कूच कर जाते थे।

हवा के मन्द झोंकों से लीची और आम के पत्ते पुलकित हो रहे थे। घोंसलों में चिड़ियाँ लौटने लगी थी। चुनमुन चोंच निकाल चीखने लगे थे। सूरज पश्चिम को अपनी लाल चुनरी पहना ओझल होने को व्याकुल था। पक्षियों का कलरव बढ़ने लगा। जुगनुओं की टिम टाम शुरू हो गई थी। एक जुगनू खिड़की की राह घुस कर मेरे कमरे को रौशन करने की कोशिश कर रहा था। आकाश में तारे कुनमुनाने लगे थे कि फोन की घण्टी घनघनाई।

‘ लो, आ गया बाबा का बुलावा ‘ – आंटा गूँथती बेग़म ने व्यंग की प्रत्यंचा खींची। और आंटा का लोदा दोनों हाथों से उठा मुझे दिखा मरोड़ते हुए बोली- ‘किसी दिन ऐसे हीं मरोड़ दूँ उसकी गर्दन ! छोड़ता ही नहीं पिंड, मी ! हुआ नहीं सूरज अस्त कि बजाई घण्टी मस्त होने को ! ‘

चाय का गिलास रख फोन रिसीव करने उठा तो बेगम लोदे को कठौती में फटाक से पटक कर मुक्का बरसाते मंगलाचरण गाने लगी।

‘कौन’ –  फोन उसी का था। ज्योतिशाचारणी से आंखें चुरा पूछने का नाटक किया।

‘ क्यों कविवर,चलेंगे …तर करने तबियत ? – उधर से लेखक ने आवाज दी।

‘ क्या हुआ तबियत को ‘ –  अनजान बन पूछा तो बेगम ने लोदा पर ताबड़तोड़ घूंसा जड़ते हुए बोली –

‘ दारू बिना तबियत खराब होगी ! और क्या ‘… ‘ जाओ ढारो ढरवाओ ! मुफ्त खोर जनवादी बाबा को !

मेरी एक लिपिस्टिक भारी लगती है और उस साले पर बोतल उड़ेलना ‘ बाकी बात दाँतों से पीस पीस दे-दनादन लोदे पर उतारने लगी !

‘ बहुत दिन भय निकले ‘ – कातर स्वर उभरा फोन पर।

‘ चौबीस घण्टे ही तो बीते हैं ‘- टालने का उपक्रम किया तो खींसे निपोडती आवाज़ मिमियायी -‘ अब आप कथा पिता हो गए ! कवि मर्म भी समझा करें…..वर्षों की तरह लगते हैं चौबीस घण्टे ! और नीना देवी के साथ घण्टा भर गुजारना, घड़ी घण्ट हो जाना है…जानते ही हैं आप मेरा सबकुछ…कि उनके साथ मेरा… !’ -घण्टों चल पड़ने वाले किस्सागो के किस्से से निजात पाने विराम लगाना ही उचित था – ‘चलिये, मगर अपने भरोसे !’ – कहकर फोन काटा और कपड़ा बदलने उठा।

‘ आज लगता है रोटी काफी मुलायम बनेगी ‘ – कंघी करते हुए चुटकी ली तो दहाड़ी बेगम -‘ आई हेट यू ‘! और फिर चकला, बेलन, तवा, चिमटे का झन झनर पनर देख आहिस्ता से घिसक जाने में ही भलाई समझा और बाहर निकल ठंढी सांस ली।

मुहल्ला से निकल एक रिक्शे पर हम दोनों सवार हुए तो रिक्शेवाले ने पूछा- ‘किधर चलना है साब !’

‘ छोटी कल्याणी ‘ – हमारा समवेत स्वर उभरा….                                                                                                               ( जारी…..)


वीरेन नन्दा।  बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति समिति के संयोजक। खड़ी बोली काव्य -भाषा के आंदोलनकर्ता बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री पर बनी फिल्म ‘ खड़ी बोली का चाणक्य ‘ फिल्म के पटकथा लेखक एवं निर्देशक। ‘कब करोगी प्रारम्भ ‘ काव्यसंग्रह प्रकाशित। सम्प्रति स्वतंत्र लेखन। मुजफ्फरपुर ( बिहार ) के निवासी। आपसे मोबाइल नम्बर 7764968701 पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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