एक महाकवि को कुत्तों से इस तरह हो गया इश्क

एक महाकवि को कुत्तों से इस तरह हो गया इश्क

एम अखलाक

यूं तो आपने महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री को गोद में कुत्तों को खेलते-खिलाते कई बार देखा होगा। लेकिन, बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि उन्हें कुत्तों से प्रेम हुआ कैसे? आइए जानते हैं महाकवि के ही शब्दों में- “बहुत पहले की बात है। निराला निकेतन के लिए जमीन खरीद चुका था। मकान बनाने की तैयारी चल रही थी। मेरी जमीन के सामने प्रतिदिन एक कुत्ता आकर खड़ा हो जाता। शुरू में मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। फिर वह मेरी निगाहों में चढ़ गया। उसे फटकार कर बहुत बार भगाने की कोशिश की, लेकिन विफल रहा। वह घूम फिर कर आ धमकता। मुझे निहारते रहता। मैं उसे देखकर दंग रह जाता। पता नहीं मुझे कैसे उससे लगाव हो गया। फिर तो वह मेरे साथ ही रहने लगा। मैंने ईश्वर का उपहार समझ कर उसे स्वीकार कर लिया। मुझे लगा कि पूर्व जन्म में उससे मेरा कोई रिश्ता रहा होगा, तभी भागने का नाम नहीं ले रहा। तभी से कुत्ते भी मे रे वफादार साथी बन गये। देखिए ना, किस तरह मेरी गोद में उछल-कूद रहे हैं। अब इस कुतिया को ही देखिए, इसने चंद रोज पहले ही इन बच्चों को जन्म दिया है, बच्चे मेरी गोद में खेल रहे हैं और यह मेरे बगल में आराम से बैठी है। इसे पता है कि बच्चे सुरक्षित हैं।”

यह रोचक संस्मरण आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने नवंबर 2009 में सुनाया था। मौका था ‘कौआ’ नामक साहित्यिक पुस्तक के लोकार्पण का। तब सेहत ठीक नहीं होने के कारण वह निराला निकेतन के मंच तक नहीं पहुंच पाये थे। जिस बरामदे में रोजाना बैठते हैं, वहीं पुस्तक का लोकार्पण किया था। शहर के दर्जनों साहित्यकार, प्रकाशक और मीडियाकर्मी इसके गवाह बने थे। इस मौके पर आचार्य ने कोई औपचारिक भाषण तो नहीं दिया, लेकिन बज्जिका रामायण के रचयिता अवधेश्वर अरुण से करीब एक घंटे बातचीत की थी। इसी दरम्यान उन्होंने अपने पशु प्रेम का यह वाक्या भी सुनाया था।

बहरहाल, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के संरक्षण में प्रकाशित होने वाली ‘बेला’ पत्रिका के संपादक विजय शंकर मिश्र के अनुसार निराला निकेतन का निर्माण 1950 में हुआ था। वर्तमान में यहां विनायक और भालचंद्र नामक दो कुत्तों और 40 गायों की समाधि है। ये दोनों महाकवि को बहुत प्यारे थे। 1997 में भालचंद्र और 1998 में विनायक ने इनका साथ छोड़ दिया। आचार्य कहते हैं कि व्यक्ति से धोखे की गुजांइश रहती है, लेकिन पशु जिससे प्रेम करता है, तन-मन से उसी का हो जाता है। फिलहाल, आचार्य के पास तीन कुत्ते और छह गायें हैं जिन्हें दिलो-जां से प्यार करते हैं। उनकी पहली गाय का नाम कृष्णा था।


एम अखलाक। मुजफ्फरपुर के दैनिक जागरण में वरिष्ठ पद पर कार्यरत एम अखलाक कला-संस्कृति से गहरा जुड़ाव रखते हैं। वो लोक कलाकारों के साथ गांव-जवार के नाम से बड़ा सांस्कृतिक आंदोलन चला रहे हैं। उनसे 09835092826 पर संपर्क किया जा सकता है।

2 thoughts on “एक महाकवि को कुत्तों से इस तरह हो गया इश्क

  1. महाकवि के भावनात्मक पक्ष की परत दर परत खोलती कितनी शानदार रपट !

    बधाई अखलाक जी को

  2. aarchya janki. B. Shastri ki mritu par shradhanjali hetu ek visheshank prakashit hua thaa, kya wo hame mil sakte hain.. ? Pdf or doc me. Usme ek lekh vidwan lekhak b.s. Mishra ka bi thaa.

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