क्या फिरोज की ‘लोकतांत्रिक’ सोच  से चिढ़ती थी ‘इंदू’ ?

क्या फिरोज की ‘लोकतांत्रिक’ सोच से चिढ़ती थी ‘इंदू’ ?

अजीत अंजुम

फिरोज जहांगीर गांधी। इंदिरा गांधी के पति। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के दामाद। राजीव गांधी और संजय गांधी के पिता। परिचय से देखें तो धमक दिखती है लेकिन इतिहास के आइने में देखें तो एक ऐसा शख्स दिखेगा, जो अपनी इसी पहचान से परेशान रहने लगा था। निधन से कुछ ही दिन पहले फिरोज ने अपने दोस्तों से कहा था- “उनकी जिंदगी का अब कोई मायने नहीं है। जीने में अब रखा ही क्या है।” फिरोज गांधी देश के सबसे ताकतवर परिवार के सदस्य होकर भी इतने परेशान क्यों थे ? इंदिरा-फिरोज की जीवनी लेखकों की मानें तो उनकी परेशानियों और बेचैनियों की वजह उस रिश्ते की गांठ में छिपी थी, जो नेहरु परिवार से जुड़ा था।

फिरोज-इंदिरा की अनसुनी कहानी पार्ट-3

फ़ाइल फोटो

गांधी की मौत से ठीक दो साल पहले 1958 वो साल था, जब इंदिरा से उनके नाकाम रिश्ते की कहानियां सरेआम होने लगी थी। फिरोज गांधी खुद भी अपने करीबी दोस्तों से प्रधानमंत्री नेहरु से अपनी दूरियों का जिक्र करने लगे थे। इंदिरा गांधी अपने प्रधानमंत्री पिता के साथ तीन मूर्ति भवन में रहती थीं। फिरोज गांधी पीएम हाउस छोड़कर सांसद कोटे से आबंटित अपने बंगले में शिफ्ट हो गए थे। किसी के पूछने पर वो गर्व से बताते भी थे कि मैंने पीएम हाउस जाना छोड़ दिया है। मैं वहां तभी जाता हूं जब मेरे बेटे छुट्टियों में आते हैं। एक बार इंदिरा गांधी की करीबी रिश्तेदार स्वरुप रानी ने फिरोज से पूछा- “तुम पंडित जी के साथ क्यों नहीं रहते हो? उन्हें राजनीतिक कामों में मदद भी मिलेगी और अपने दामाद का साथ भी।” फिरोज गांधी ने तीन बार नो, नो, नो कहकर जवाब दिया- “दामाद को अपने ससुर के साथ बिल्कुल नहीं रहना चाहिए। स्वरुप रानी ने पूछा- “ क्यों “ फिरोज का जवाब था- “लोग सोचेंगे कि मैं उनके पावर का फायदा उठा रहा हूं। अपने ससुर से चालीस मील दूर रहना चाहिए। अगर वो पूरब जाएं तो आपको पश्चिम जाना चाहिए। अगर वो उत्तर जाएं तो आपको दक्षिण जाना चाहिए। अगर आप ऐसा करेंगे तभी अपनी शख्सियत बना पाएंगे। मैं खुद अपना व्यक्तित्व बनाना चाहता हूं। मैं संसद में भी स्वतंत्र छवि बनाना चाहता हूं। “फिरोज से स्वरुप रानी के इस संवाद का जिक्र BERTIL FALK ने अपनी किताब FEROZE, THE FORGOTTEN GANDHI में किया है। पिछले साल ही छपी फिरोज गांधी की इस बायोग्राफी को पढ़ते हुए लगता है कि फिरोज गांधी उन दिनों नेहरु के दामाद की अपनी राष्ट्रीय छवि से मुक्त होने के लिए बेचैन थे। अपने करीबी दोस्तों से वो अपनी इस बेचैनी का जिक्र भी करते थे। सईद जफर नाम के एक दोस्त को फिरोज अक्सर कहा करते थे- “ मैं दामाद के अलावा कुछ भी नहीं हूं।“

फिरोज गांधी प्रधानमंत्री के दामाद होकर सरकार के मुखर आलोचकों में शामिल हो गए थे। इंदिरा गांधी के जीवन लेखक प्रणय गुप्ते ने अपनी किताब ‘मदर इंडिया‘ में लिखा है- “ फिरोज पीएम हाउस में हमेशा खुद को आउटसाइडर की तरह मानते थे, जबकि उनकी पत्नी इंदिरा और दोनों बेटे राजीव-संजय वहीं रहते थे। फिरोज की मौजूदगी में न तो नेहरु बहुत सहज रह पाते थे, न नेहरु के सामने फिरोज। इसी वजह से फिरोज ने वहां आना-जाना बहुत कम कर दिया था“। इसी किताब में इस बात का जिक्र है कि कई मौकों पर नेहरु फिरोज को सार्वजनिक तौर पर नजर अंदाज करते थे। फिरोज नेहरु के रवैये से नाराज होकर उनके सामने तो चुप रह जाते थे लेकिन अपनी पत्नी इंदिरा से इस बात को लेकर शिकायत करते थे। ऐसे में इंदिरा अपने पिता के पक्ष में हो जाती थीं। दोनों में तनाव हो जाता था। कई बार ऐसा भी होता था कि नेहरु और फिरोज एक रुम में होकर भी एक दूसरे से बात नहीं करते थे। ऐसे में इंदिरा को दोनों के बीच संवाद का जरिए बनना पड़ता था। इसी किताब के मुताबिक एक बार तो तीन मूर्ति भवन में ज्यादा मेहमान आ जाने की वजह से फिरोज को पीएम हाउस के कंपाउंड में टेंट में रात गुजारनी पड़ी थी। फिरोज को ये सब बुरा लगता था। वो अपने साथियों से इन बातों का जिक्र भी किया करते थे।

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कहने को तो फिरोज गांधी रायबरेली से कांग्रेस के सांसद थे। फिर भी संसद में कई मौकों पर उन्होंने नेहरु और उनकी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था। 1958 में फिरोज गांधी ने संसद में सनसनीखेज मूंदड़ा कांड का खुलासा किया था। इस खुलासे के दौरान नेहरु को संसद में लगातार असहज होना पड़ा। फिरोज के तेवर और खुलासे की वजह से नेहरु सरकार के वित्त मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और उद्योगपति मूंदड़ा को जेल जाना पड़ा। इसके बाद भी मौके-बेमौके वो नेहरु सरकार की नीतियों का विरोध करते रहते थे। ये बात नेहरु से ज्यादा कई बार इंदिरा को नागवार लगती थी। तब तक इंदिरा गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बन चुकी थीं। फिरोज पार्टी फोरम पर कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी और नेहरु के फैसलों को चुनौती देते थे। पति-पत्नी के बीच सबसे बड़ा और घोषित टकराव तब हुआ जब केरल में नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार को बर्खास्त करने की साजिश होने लगी। इंदिरा गांधी हर हाल में केरल की सरकार को लॉ एंड आर्डर खराब होने के नाम पर बर्खास्त करवाना चाहती थी और फिरोज एक चुनी हुई सरकार को हटाने के खिलाफ थे। कहा जाता है कि इसी बात को लेकर एक दिन तीन मूर्ति भवन के डायनिंग टेबल पर इंदिरा और फिरोज के बीच जबरदस्त तनातनी हो गई। फिरोज ने चिल्लाकर इंदिरा को फासिस्ट तक कह दिया। उस दौर के मशहूर पत्रकार जनार्दन ठाकुर की मानें तो कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गई इंदिरा गांधी को पहली बार उन्हीं के पति फिरोज गांधी ने फासिस्ट कहा था। खाने की मेज पर तब प्रधानमंत्री नेहरु भी बैठे थे। केरल की सरकार की बर्खास्त करने की बात चलने पर फिरोज ने इंदिरा गांधी से कहा- “ ये बिल्कुल ठीक नहीं होगा। आप जनता के साथ धोखा कर रही हैं। YOU ARE A FASIST “ । नेहरु परेशान होकर दोनों के बीच के नोंकझोंक को देख रहे थे। इंदिरा फासिस्ट होने के आरोप को झेल नहीं सकीं। उन्होंने फिरोज से कहा- “ मुझे फासिस्ट कैसे कह सकते हो। मैं ये सहन नहीं कर सकती “ । इतना कहकर इंदिरा गांधी डायनिंग ह़ॉल से तमतमाते हुए बाहर निकल गईं। हुआ वही, जो इंदिरा गांधी ने ठान लिया था। फिरोज की हार हुई। केरल की सरकार बर्खास्त हुई। आजाद भारत में पहली बार इस तरह किसी सूबे की सरकार को बर्खास्त किया गया था।

फिरोज लगातार इस बात को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर खुलकर इंदिरा और नेहरु से अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे। यहां तक की कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक में भी फिरोज गांधी ने केरल के मुद्दे पर खुलकर सरकार का विरोध किया। इंदिरा को लगने लगा था कि फिरोज ही उनके सबसे बड़े राजनीतिक शत्रु बन रहे हैं । यहां तक नेहरु ने उन दिनों कुछ लोगों के सामने कहा था कि फिरोज के विरोध का ये तरीका भूलने या माफ करने लायक नहीं है। इंदिरा ने उन्हीं दिनों अपनी अमेरिकी दोस्त और लेखिका DOROTHY NORMAN को फिरोज से अपनी नाराजगी के बारे में काफी विस्तार से लिखा भी था। 21 जुलाई 1959 को लिखी चिट्ठी में इंदिरा ने लिखा- “ ऐसा लग रहा है जैसे परेशानियों का समुद्र मुझे निगलता जा रहा है। घरेलू मोर्चे पर फिरोज हमेशा मेरे वजूद को चुनौती देते रहते हैं। मेरे कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से लगता है वो ज्यादा ही दुश्मनी निकाल रहे हैं। सबसे हैरत की बात तो ये है कि फिरोज और उनके कुछ दोस्त हमारे कुछ मंत्रियों के साथ मिलकर बड़ी परेशानी खड़ी कर रहे हैं। “ इस चिट्ठी में इंदिरा ने केरल के मामले का जिक्र करते हुए फिरोज पर इल्जाम लगाया था कि वो वामपंथियों से मिले हुए हैं। हमारे कुछ नेता भी उनका साथ दे रहे हैं। अमेरिकी लेखिका और दोस्त को लिखी इंदिरा की चिट्ठी से ये साफ जाहिर होता है कि दोनों के बीच झगड़े की जड़ दोनों का मूल स्वभाव और अहं की टकराटहट में छिपी थी। फिरोज के बारे में उस दौर के ज्यादातर लोगों का मानना है कि वो उदारवादी थे। वामपंथ की तरफ थोड़ा झुकाव होने की वजह से वो इंदिरा की तुलना में ज्यादा लोकतांत्रिक थे। उधर इंदिरा को इस बात की तकलीफ थी कि मेरे पति और पीएम के दामाद होने के बावजूद फिरोज कई मुद्दों पर विपक्ष की तरह तेवर दिखाते हुए विरोध करते हैं।


10570352_972098456134317_864997504139333871_nअजीत अंजुम। बिहार के बेगुसराय जिले के निवासी। पत्रकारिता जगत में अपने अल्हड़, फक्कड़ मिजाजी के साथ बड़े मीडिया हाउसेज के महारथी। बीएजी फिल्म के साथ लंबा नाता। स्टार न्यूज़ के लिए सनसनी और पोलखोल जैसे कार्यक्रमों के सूत्रधार। आज तक में छोटी सी पारी के बाद न्यूज़ 24 लॉन्च करने का श्रेय। इंडिया टीवी के पूर्व मैनेजिंग एडिटर।